‘वैलेंटाइन डे’ की सार्थकता को समझें युवा 

आज के लिए विशेष

वैसे तो प्रेम का इज़हार करने का कोई विशेष दिवस निर्धारित नहीं किया जा सकता, क्योंकि प्रेम कब किस तरह और किस रूप में प्रकट हो जाए, इसका कोई निश्चित मापदण्ड नहीं है। फिर भी बाज़ार की ताकतों ने प्रेम का इज़हार करने हेतु 14 फरवरी का दिन (वैनेंटाइन डे) निश्चित कर ही दिया। जब दिवस बन ही गया है तो मनाया भी जाएगा। यह दिवस मनाने वालों को तो बस इस दिन का इंतज़ार रहता है। 
भारतीय संस्कृति में ही प्रेमोत्सव है अर्थात् फरवरी और मार्च का पूरा महीना ही भारतीय बसंतोत्सव रूप में मनाते हैं। इस समय प्रकृति भी मानो प्रेममय हो जाती है और रंग-बिरंगे भूलों के रूप में अपने प्रेम का इज़हार करती है। भारतीय संस्कृति में प्रेम को पवित्र माना गया है और यही कारण है कि इस पर्व के साथ पवित्रता भी है। 
ऐसा नहीं है कि 14 फरवरी को ही प्रेम दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व के अलग-अलग भागों में फरवरी की अलग-अलग तारीखों को प्रेम दिवस के रूप में मनाया जाता है। कहीं इसे ड्रैगोबेटे के तौर पर मनाया जाता है तो कहीं सिपंदरमजगन के रूप में। यही नहीं कहीं-कहीं तो इसे अलग-अलग महीनों की अलग-अलग तारीखों को भी मनाया जाता है। भारतीय संस्कृति में प्रेम को बेहद पवित्र और अनछुई-सी भावना समझा जाता है। आज के युवा भले ही वैलेंटाइन डे के रंग में रंगने लगे हों, परन्तु भारत में ऐसे ढेरों प्रेम के उदाहरण मिल जाएंगे, जो प्रेम की इस पवित्र भावना के घोतक हैं। 
इतिहास में शाश्वत प्रेम के अनेक उदाहरण मिल जाते हैं। समय के साथ प्रेम की परिभाषा, रूप और नज़रिये में बड़ा बदलाव आया है। यूं कहें तो प्रेम के नाम पर अथित रूप में अश्लीलता की हद पार कर दी जाती है। प्रेम दिवस के रूप में वैलेंटाइन-डे धूम-धाम से मानाया जाता है, परन्तु इसके नाम पर पर्दे के पीछे क्या होता है, यह सब जानते हैं। एक समय था, जब प्रेम के लिए कोई बंधन, सरहद, अमीरी-गरीबी, ऊंच-नीच मायने नहीं रखती थी। प्रेम जैसे अढ़ाई अक्षर के शब्द में वाकय जादू होता था। यह ऐसी शाश्वत भावना थी, जिसमें डूबने के लिर हर प्रेमी-प्रेमिका का सपना होता था। प्यार की खातिर वे अपना त्याग करने के लिए तैयार रहते थे, लेकिन वक्त के साथ कुछ युवाओं की सोच में ऐसा बदलाव आया है कि प्रेम की परिभाषा ही बदल गयी है। 
युवाओं के लिए प्रेम की परिभाषा एक अटूट रिश्ते से हटकर सिर्फ  और सिर्फ  मौज-मस्ती तक सिमट कर रह गई है। वर्तमान में प्रेम में न वह सादगी है न ही विश्वास। प्रेम में त्याग की भावना खत्म होती जा रही है। अपने निहित स्वार्थ साधने की भावना पैदा होती जा रही है। वैश्वीकरण के कारण युवाओं के अन्दर एक अमूल-चूल परिवर्तन आया है कि वे बहुत ही कम समय में ज़िन्दगी का हर सुख पा लेना चाहता हैं। इसके लिए वह न तो समाज के बंधन को मानने के लिए तैयार हैं और न ही अपने व परिवार बंधन को। वैलेंटाइन डे हमारे लिए तभी सार्थक है जब इसे मनाने से हमारे जीवन की खुशियां दोगुनी होंगी, हमारे रिश्तों में मिठास बढ़ेगी और दूसरों की भावनाओं का सम्मान होने लगेगा। देखा जाए तो यह दिन सिर्फ प्रेमी-प्रेमिकाओं का ही नहीं है, बल्कि यह दिन तो उन सभी के लिए है जो हर रिश्ते में प्रेम चाहते हैं। दोस्ती का संबंध सबसे प्यारा और लंबे समय तक चलने वाला होता है, तो क्यों न इस दिन अपने मित्रों की सूची में और बढ़ोत्तरी कर ली जाए। आपस में प्रेम व सम्मान की भावना पनपे, ईर्ष्या खतम हो और लोग एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करें, तभी सही अर्थों में वैलेंटाइन डे सार्थक होगा।

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