भारत को ट्रम्प से सदैव सावधान रहने की ज़रूरत
अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से भारत को अत्यंत सावधान रहने की ज़रूरत है। क्योंकि एक तरफ वह जहां शंघाई कॉपरेशन बैठक में मोदी के जाने के बाद से उनके लल्लो चप्पो करने में लगे हैं, उनको अपना सबसे अच्छा दोस्त बता रहे हैं और भारत तथा अमरीका के मजबूत रिश्तों की दुहाई दे रहे हैं, साथ ही यह भी कह रहे हैं कि दोनों देशों के बीच व्यापार डील बस होने ही वाली है। वहीं दूसरी तरफ चुपके चुपके जी-6 देशों यानी फ्रांस, इटली, कनाडा, जापान और यूरोपीय यूनियन को अपने ढंग से उकसा भी रहे हैं कि वो भारत पर भारी से भारी टैक्स लगाए, जिसमें उनका सुझाव सौ प्रतिशत तक टैक्स लगाये जाने का है। बताइये भला यह कौन सी दोस्ती और कौन से मजबूत रिश्तों का फज़र् है कि एक दोस्त अपने दूसरे दोस्त पर कुछ देशों को भारी टैक्स लगाने के लिए उकसा रहा है? डोनाल्ड ट्रम्प बहुत अस्थिर मन:स्थिति के राजनेता हैं। अगर यह उनके व्यवहार का हिस्सा है, विश्वासघात का नहीं, तो भी भारत को अत्यंत सतर्क रहने की ज़रूरत है; क्योंकि वह ऐसे शख्स हैं कि बिना किसी शर्म लिहाज के आपको गुड़ दिखाकर ईंट मार सकते हैं।
दरअसल ट्रम्प हमेशा से खुद को एक बिजनेस मैन और डील मास्टर के रूप में पेश करते रहे हैं, इस पर उन्हें गर्व महसूस होता है। उनको लगता है कि दुनिया सिर्फ कारोबार से चलती है। इसलिए उनकी यह कोशिश रहती है कि हर संबंध में वह जिस सौदे पर हाथ डालें, वह पूरी तरह से खरा सौदा साबित हो। लेकिन भारत को लेकर उनका आंकलन गड़बड़ा गया है। वह जिस आसानी से मान बैठे थे कि भारत उनकी एक घुड़की के बाद सरेंडर कर देगा और हाथोंहाथ अमरीका की मर्जी के मुताबिक डील हो जायेगी, वह दूर-दूर तक कहीं नहीं हुई और इससे ट्रम्प न केवल झुंझला गये हैं बल्कि अपनी समूची ताकत से बौखलाने के बाद अब ठंडे दिमाग से इसे नई रणनीति के जरिये सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। वह चाहते हैं वह भारत से दोस्ती की गलबहियां डालकर हमें विश्वास दिलाएं कि दुनिया में एकमात्र भरोसेमंद भारत का कोई दोस्त है, तो वह ट्रम्प है और इसी बीच वे अपने जी-7 के शेष सहयोगी पर यह दबाव डाल रहे हैं कि वे भारत पर इतना टैरिफ लगा दें कि उसे झख मारकर अमरीका की शरण में आना पड़े।
हालांकि वो दिन गये, जब दोस्त का दोस्त, दोस्त और दोस्त का दुश्मन, दुश्मन हुआ करता था। आज छोटा से छोटा देश भी अपने संबंधों के लिए अपने हितों को ही प्राथमिकता देता है। इसलिए वे जिस फ्रांस, इटली, जापान और यूरोपीय यूनियन से उम्मीद कर रहे हैं कि वे भारत पर भारी भरकम टैक्स लगाकर भारतीय अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर दे, वे देश भला ट्रम्प को खुश करने के लिए ऐसा क्यों चाहेंगे? आखिरकार भारत 1.46 अरब लोगों का देश है, ट्रम्प के वित्त मंत्री को भले यह मलाल हो कि भारत इतना बड़ा देश होकर उनसे एक बोरी मक्का तक क्यों नहीं खरीदता? लेकिन यह बात तो है नहीं कि भारत कोई छोटा मोटा बाज़ार है। आज वास्तव में एकीकृत यूरोप से डेढ़ गुना और संख्याबल में चीन से भी बड़ा अगर कोई संगठित उपभोक्ता बाज़ार है, तो वह भारत का बाज़ार है। यहां अकेले कई ऐसी त्योहारी खरीदारी आती है, जब दुनिया के कई देशों के वार्षिक बजट के बराबर अकेले एक दिन में भारत में उपभोक्ता खरीदारी करते हैं। माना कि भारत और अमरीका के बीच 85 अरब डॉलर का वार्षिक कारोबार है और इसमें भारत अच्छी खासी लाभ की स्थिति में है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत सिर्फ इसी कारोबार की बदौलत जिंदा नहीं है।
सारे विशेषज्ञ खराब से खराब स्थिति में आंकलन करके देख चुके हैं कि ट्रम्प और अमरीका की सारी उठापटक के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में 0.5 से 0.6 प्रतिशत के बीच ही कोई कमी आ सकती है। अगर अमरीका की इस टैरिफ कड़ाई ने सबसे ज्यादा हमें प्रभावित किया, तब। ..और हां, इसके साथ ही यह बात भी अब खुलकर सामने आ गई है कि भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाये जाने के हमसे ज्यादा नुकसान अमरीका को होने शुरु हो चुके हैं। अमरीका में करीब 0.5 प्रतिशत तक की मुद्रास्फीति नज़र आने लगी है और यही कारण है कि अमरीकी कारोबारियों का ट्रम्प पर लगातार दबाव बढ़ रहा है कि वो भारत के साथ टैरिफ नीति पर किसी सकारात्मक निर्णय तक पहुंच जाएं। यही कारण है कि ट्रम्प अब अपनी डीलमेकर छवि को और तेज़ी से सक्रिय करके रातोंरात डील मास्टर के पासे पर पासे फेंके जा रहे हैं, जिसका एक पासा भारत को प्यार से सहलाना और यह यकीन दिलाना भी है कि अमरीका, भारत का करीबी और शुभचिंतक दोस्त है और उससे भी ज्यादा यह कि यह शुभचिंता और दोस्ती डील मास्टर ट्रम्प की बदौलत है।
दरअसल डोनाल्ड ट्रम्प जानते हैं कि इंडो-पेसिफिक रीजन में चीन को संतुलित करने के लिए भारत की अहमियत है। रक्षा सौदे, तकनीकी सहयोग, ऊर्जा साझेदारी, ट्रम्प जानते हैं कि ये सब भारत के साथ ग्रेट डील का हिस्सा तभी हो सकते हैं, जब भारत व अमरीका दोस्त हों। भारत अमरीका और ट्रम्प के बयानों से अपमानित महसूस न करे।
यह गलतफहमी पहले ट्रम्प को थी, लेकिन अब वह जान गये हैं कि भारत बिना रीढ़ का देश नहीं है। इसलिए अब वो भारत के गुणगान गाने लगे हैं। मोदी से दोस्ती का दम भरने लगे हैं लेकिन हमें नहीं भूलना चाहिए कि ट्रम्प चाहे ऊपर से कितनी यह सब बातें करें, उनकी राजनीति का असली मकसद अपने घरेलू मोर्चे को साधना है, जिसके लिए वह अमरीका फर्स्ट का हथियार इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके तहत उन्हें अमरीकी जनता को दिखाना है कि कैसे ट्रम्प दूसरे देशों पर कड़े टैरिफ प्रतिबंध लगाकर अमरीकी नौकरियां बचायी और अमरीकी उद्योगों को फायदा पहुंचाया है। वह भारत पर जी-6 देशों को भारी टैरिफ लगाने के लिए इसलिए उकसा रहे हैं ताकि अपने मतदाताओं से यह दावा कर सकें। आज दुनिया में कोई भी देश इस सोच के साथ कि भारत को साथ भी रखो और हर सौदे में उसे जमकर निचोड़ो, इस मंशा से भारत के साथ न भरोसा कायम कर सकता है, न दोस्ती और न किसी तरह की साझेदारी। इसलिए ट्रम्प को भी ऐसा कोई फायदा नहीं होने वाला। लेकिन ट्रम्प को यह समझ में आए, इसके लिए भारत को रणनीतिक तौर पर सावधान रहने की ज़रूरत है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर