त्यौहारों की खुशियां और स्वस्थ समाज का निर्माण

दिवाली देश के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। इसे खुशियों का प्रतीक माना जाता है। भारी संख्या में लोग इस दिन को विशेष उत्साह से मनाते हैं। खुशी की इस अभिव्यक्ति में अपनी सामर्थ्य के अनुसार खरीददारी करना, अपनी पसंद के खान-पान के सामान का प्रबन्ध करना, घरों और अन्य स्थानों को रौशन करना और प्रत्येक तरह के पटाखे और आतिशबाज़ी चलाना आदि दिवाली की गतिविधियों में शामिल हैं। इसे रौशनियों का त्यौहार भी कहा जाता है और यह कल्पना भी की जाती है कि यह दिन मन को रौशन करने में भी सहायक होगा। खुशियों के इस त्यौहार को इतने उत्साह से मनाया जाता है कि प्रत्येक वस्तु की बहुतायत हो जाती है। ज्यादातर इस गतिविधि में किसी तरह का अनुशासन नहीं रहता। 
दिवाली और अन्य बड़े त्यौहारों पर विशेष रूप में तरह-तरह के बनाए हुए बम, पटाखे, चकरियां और फुलझड़ियां चलाई जाती हैं। इनकी बिक्री करोड़ों में होती है। इन त्यौहारों के प्रसंग में दो बातों की ओर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना ज़रूरी है। इन दिनों में खान-पान की प्रत्येक तरह की वस्तुएं व्यापक स्तर पर तैयार की जाती हैं। इस अवसर का लाभ लालची लोग अधिक से अधिक उठाने का यत्न करते हैं। इन दिनों में भारी मात्रा में बनाई जाने वाली मिठाइयों में ज्यादातर मिलावट की जाती है।
मिलावटखोरी हमारे समाज को लगा एक ऐसा रोग है, जिससे पीछा छुड़ाना कठिन प्रतीत होता है। सरकारों के बड़े यत्न भी मिलावट पर नियंत्रण नहीं कर सके। इसलिए समय-समय पर सरकारें मिलावट करने वालों को कड़ी से कड़ी सज़ाएं दिलाने के लिए कानून भी बनाती हैं, परन्तु ज्यादातर ये कानून भी प्रभावशाली सिद्ध नहीं होते। इसके साथ ही वायु प्रदूषण का मुद्दा भी सामने आता है। आज देश भर के ज्यादातर स्थानों पर हवा इस सीमा तक प्रदूषित हो चुकी है, जिसे ठीक करने के लिए बड़े से बड़े यत्नों की ज़रूरत है। प्रतिदिन उठते धुएं और हवा में मिल चुके धूल-कणों ने मानवीय जीवन को दूभर करके रख दिया है। आज देश भर में लाखों ही व्यक्ति सांस की बीमारियों से पीड़ित हैं। इनसे होने वाली मौतों के आंकड़ों को पढ़-सुन कर दिल दहल जाता है। इसी कारण अब समाज कुछ सीमा तक सचेत हो रहा है। भारी संख्या में पर्यावरण प्रेमी खुशियों भरे त्यौहारों को एक नई दिशा की ओर केन्द्रित करने के लिए यत्नशील हो रहे हैं। इस संबंध में इस बार सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) के फैसले की ओर भी ध्यान दिया जाना बनता है। यह फैसला चाहे दिल्ली या उसके साथ लगते बड़े शहरों के लिए ही है परन्तु लक्ष्य यह निर्धारित किया जाना चाहिए कि इसे आगामी समय में देश भर में लागू किया जाए। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार दिल्ली और इसके साथ लगते शहरों में 18  से 21 अक्तूबर तक पटाखे चलाने के कुछ नियम तय किए गए हैं। निर्देशानुसार इस महानगर में कुछ घंटों के लिए ग्रीन (हरे) पटाखे चलाने की इजाज़त दी गई है। यह भी सन्तोषजनक बात है कि ज्यादातर वर्गों ने न्यायालय के इस फैसले पर संतुष्टि व्यक्त की है। इसका बड़ा कारण यह है कि सर्दी के आगमन के साथ ही दिल्ली की हवा बेहद दूषित हो जाती है। देश की राजधानी विश्व भर के देशों की राजधानियों में बेहद प्रदूषित मानी जाती है। अधिकतर तो इस मौसम में सांस लेना भी कठिन हो जाता है।
चाहे त्यौहारों पर पटाखे आदि चलाने तो इस प्रदूषण का मात्र एक कारण ही है परन्तु इस दूषित हुई आबो-हवा के लिए और भी अनेक कारण ज़िम्मेदार होते हैं, जिनकी ओर भी संबंधित प्रशासन को ध्यान देने की ज़रूरत है। जहां तक पटाखों और आतिशबाज़ी आदि का संबंध है, इस मामले में इन्हें बनाने वाली फैक्टरियों पर कड़े कानून लागू होने चाहिएं, ताकि उन्हें प्रदूषण फैलाने वाले इन पटाखों के स्थान पर ग्रीन (हरे) पटाखे बनाने के लिए ही प्रेरित किया जा सके। सूचना के अनुसार इन हरे पटाखों में प्रदूषण फैलाने वाले रसायनों की मात्रा बहुत कम होती है। इन्हें आगामी समय में और भी सुधारा जा सकता है।
सही अर्थों में देश भर में मनाये जाते त्यौहारों में अधिक खुशियां भरने के लिए इन बातों की तरफ पूरा-पूरा ध्यान देने की ज़रूरत है। नि:संदेह आज खाद्य पदार्थों में मिलावटखोरी और इसके साथ ही पानी और वायु प्रदूषण ने करोड़ों मनुष्यों के शरीर को जर्जर कर दिया है। हालांकि हम सभी जानते हैं कि एक स्वस्थ समाज का निर्माण स्वस्थ लोग ही कर सकते हैं। आज जिस पड़ाव पर मनुष्य पहुंच चुका है, स्वस्थ समाज का निर्माण उसका लक्ष्य होना चाहिए। इस संबंध में प्राप्त की गई उपलब्धियां ही मानव समाज के आगे बढ़ने का आधार बन सकती हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द 

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