असहनीय हो जाए जब दमा
दमा एक ऐसी बीमारी है जिसमें सांस की नली व श्वसन तंत्र में सूजन आ जाती है। इसके संकुचित होने से अत्यन्त तकलीफदेह खांसी, श्वांस कष्ट, कफ, सीने में भारीपन एवं सांस फूलने लगती है।
अस्थमा या दमा की बीमारी श्वसनतंत्र की संवेदनशीलता व कुछ उत्तेजक तत्व के बढ़ने से होती है जिससे श्वसनतंत्र संकुचित हो जाता है। दमा या अस्थमा किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है जबकि पुरुषों एवं स्त्रियों में यह बीमारी दो के सापेक्ष में एक को होती है।
इसका सबसे बड़ा कारण वायु प्रदूषण है। इसका सीधा प्रभाव फेफड़ों एवं श्वसन तंत्र पर पड़ता है। इनमें बच्चे अधिक व वयस्क कम हैं। पहले इसे बुजुर्गों की बीमारी एवं दमा, दम के साथ जाता है कहा जाता था पर यह अब सबका हो गया है।
यह अब दवाओं, खानपान एवं जीवन-शैली सुधार से नियंत्रित किया जा सकता है। इसकी तीव्रता एवं लगातार दौरों को काबू में किया जा सकता है। इसकी तात्कालिक व तीव्र असरकारक दवाएं भी आने लगी हैं।
अस्थमा क्या है - यह अस्थमा या दमा फेफड़ों की बीमारी है जो श्वांस नली को प्रभावित करती है और कुछ पदार्थों के प्रति संवेदनशील हो जाती है। इसमें श्वांस नली सिकुड़ जाती है जिससे फेफड़ों के रक्त को आक्सीजन प्रवाहित करने की क्षमता कम हो जाती है। पर्याप्त आक्सीजन के बिना शरीर॒ के अंग ठीक प्रकार से काम नहीं कर पाते हैं। इससे स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
यह दो प्रकार से अटैक करता है। एक्यूट अटैक या एपिसोडिक अस्थमा में अचानक आधी रात को सांस रुकने की परेशानी होती है। सीने में सांय-सांय की आवाज आती है। श्वसन क्रिया बढ़ जाती है। पल्स रेट 100 तक बढ़ जाती है। रोगी ज्यादा से ज्यादा सांस लेता है। क्रोनिक अटैक आने से सीने में खिंचाव महसूस होता है। सांस 25 से 40 बार प्रति मिनट चलने लगती है। कफ ज्यादा निकलने लगता है। मुख्यत: सुबह के समय एवं रात में तकलीफ बढ़ जाती है।
कारण
यह अस्थमा परिवार के किसी सदस्य को एलर्जी होने या स्वयं एलर्जिक होने से होता है। धूल, धुएं, परागकणों से, सुगंध से एलर्जी या ऐसी जगह पर काम करने गैस, धूल, धुआं होने से इस प्रकार का अस्थमा होता है। यह भाग-दौड़ से, अत्यधिक कफ एवं खांसी से, आनुवंशिक, हड़बड़ी करने पर, गरम होने पर, अति उत्साह या अत्यधिक चिंता व तनाव से भी होता है। अचानक मौसम में बदलाव से, धूम्रपान करने पर होता है। ज्यादातर यह संक्रमण, वायरल या एलर्जी से होता है।
लक्षण
सांस लेने में कठिनाई होती है। लंबे समय तक खांसी आती है। दौरे के समय गले व सीने में जकड़न होता है। श्वास बाहर निकलते समय सीटी की आवाज आती है। थकान अनुभव होती है। व्यायाम या शारीरिक कार्य करते समय जल्दी सांस फूलती है।
बच्चे में अस्थमा की पहचान
बच्चा ठीक से वाक्य पूरा नहीं कर पाता है। न खा सकता है और न ही रो सकता है। शरीर नीला पड़ने लगता है। पसलियों में सांस लेते समय गड्ढा पड़ने लगता है। सोचने समझने की क्षमता कम हो जाती है। बहुत ज्यादा पसीना आता है। सांस की गति बहुत तेज हो जाती है।
रोगी के लिए सावधानियां
तेज दुर्गंध व परफ्यूम से बचें। ठंडी या गर्म हवा में व्यायाम न करें। मौसम के अचानक परिवर्तन के समय सचेत रहें। धूल, धुआं एवं धूम्रपान से बचें। आइसक्रीम, कोल्डड्रिंक्स व ज्यादा ठंडी चीजें न लें। घर की एवं वहां की वस्तुओं की नियमित सफाई हो और सफाई के समय मरीज पास में न रहे। उसके पास स्प्रे का उपयोग कम हो।हर महीने डॉक्टर से जांच करवाएं। अपना निर्धारित इन्हेलर हमेशा अपने साथ रखें। योग व श्वास व्यायाम को बढ़ावा दें। डॉक्टर के कहने पर ही दवा बंद करें या बदलें।
पपीता, नींबू, अनार फल, अदरक की चाय, मेथी, पालक, आदि भाजी, कच्चा प्याज, लहसुन आदि का उपयोग कर सकते हैं। संयम, नियम व उपयुक्त जीवन-शैली से सब काबू में आ सकता है। दमा के रोगी पर हर मौसम की तीव्रता का प्रभाव पड़ता है किंतु सतर्क रहकर वह दमा के दौरों से बच सकता है। (स्वास्थ्य दर्पण)
-सीतेश कुमार द्विवेदी