महात्मा गांधी का नाम स्मारकों के बोर्डों तक सीमित

अमृतसर, 2 अक्तूबर (सुरिन्द्र कोछड़) : महात्मा गांधी को सम्मान देते अमृतसर में लगभग एक दर्जन स्मारकों का नाम उनके नाम पर रखते तत्कालीन सरकारों और प्रशासन द्वारा अपना स्नेह प्रकट किया जाता रहा है, जबकि मौजूदा समय उक्त में बहुत स्मारकों के नाम सिर्फ स्थानीय नगर निगम के दस्तावेज़ों तक ही सीमित होकर रह गए हैं। वर्णनीय है कि 2 अक्तूबर 1952 में तत्कालीन सरकार द्वारा एक अहम फैसला लेते अमृतसर के हाल गेट का नाम बदल कर गांधी दरवाज़ा और इसके अंदर आबाद बाज़ार का नाम गांधी बाज़ार रख दिया गया। यह दरवाज़ा वास्तव में सन् 1876 में अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कर्नल सी.एच. हाल द्वारा अपने नाम पर तैयार किया गया था। उपरोक्त दरवाज़े का नाम बदलते समय दरवाज़े की दीवारों पर अंग्रेज़ी, पंजाबी और उर्दू में नया नाम गांधी दरवाज़ा तो लिखवा दिया गया पर देश को मिली आज़ादी के 72 वर्षों बाद भी यह नया नाम न तो स्थानीय लोगों की जुबान पर है और न ही सरकार द्वारा इसको मान्यता दी गई है। मौजूदा समय इसके दाएं और बाएं पंजाब पर्यटन विभाग के सूचना बोर्ड पर हाल गेट लिखकर गांधी दरवाज़े के नाम को नकार दिया गया है। इसी प्रकार जब दिसम्बर 1919 में इंडियन नैशनल कांग्रेस के स्थानीय एचीसन पार्क (गोल बाग) में हुए इजलास में महात्मा गांधी सहित अविभाजित भारत के कई उभरते नेता शामिल हुए तथा उस समय महात्मा गांधी के सुझाव पर अमृतसर में चाटीविंड दरवाज़े के बाहर स्वराज आश्रम की स्थापना की गई। 1 अगस्त 1920 को महात्मा गांधी ‘न मिलवर्तन’ आंदोलन शुरू किए जाने के बाद अक्तूबर महीने जब दोबारा अमृतसर आए तो वह कुछ दिन इसी स्वराज आश्रम में ठहरे और उसी दौरान वह स्थानीय खालसा कालेज भी गए। यह स्वराज आश्रम और उसके साथ जुड़े महात्मा गांधी की सब निशानियां मौजूदा समय पूरी तरह से लुप्त हो चुकी हैं। कांग्रेस के उक्त इजलास के बाद गुरुद्वारा आंदोलन समय जब महात्मा गांधी अमृतसर आए तो उस दौरान वह एचीसन पार्क में ठहरे। जहां यादगार पार्क का नाम गांधी पार्क रखा गया। मौजूदा समय न तो बाग में महात्मा गांधी के साथ संबंधित कोई यादगार मौजूद है और न ही वहां ‘गांधी पार्क’ के साथ संबंधित कोई तख्ती या पत्थर की शिला ही लगाई गई है।