बेहद ज़रूरी है अनुशासन 

यह तो सर्वविदित है कि कोई भी राष्ट्र अनुशासन के बिना उन्नति नहीं कर सकता। इसके लिए साहित्य, इतिहास एवं संस्कृति में समरसता अनिवार्य है। साहित्य इतिहास को संजोकर रखता है। संस्कृति की झलक इससे ही मिलती है। इस तरह देखा जाये तो उपरोक्त तीनों एक-दूसरे के पूरक हैं। इनमें से एक की भी कमी होने पर तीनों का तो महत्व ही समाप्त हो जाता है। यह समाज के लिए दर्पण है। इन तीनों में समरसता लाने हेतु अनुशासन अति आवश्यक है। अत: अच्छा साहित्य रचा जाये, अच्छा साहित्य पढ़ा जाये तभी हमारे इतिहास एवं संस्कृति की रक्षा की जा सकती है और लोगों के सामने इनकी स्पष्ट झलक दिखलाई देगी।

-वीरेन्द्र शर्मा