कच्चे मैडीकल और पैरा मैडीकल कर्मचारियों के साथ सौतेली माँ जैसा सलूक

गुरदासपुर, 9 अप्रैल (आरिफ) : कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए देश भर में लगी एमरजैंसी के बाद सरकार की ओर  से सेहत विभाग में कम वेतन  पर काम कर रहे एन.आर.एच.एम. और रुरल पंचायत विभाग के डाक्टर, नर्सें, फार्मासिस्ट, दर्जाचार और ओर कर्मचारियों को कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए फ्रंट फुट पर खड़ा कर दिया गया है। जबकि सालों का अनुभव रखने वाले और मोटा वेतन लेने वाले कर्मचारियों को सरकार की ओर से टस से मस भी नहीं किया गया। एन.आर.एच.एम. और पंचायत विभाग के सभी ही कर्मचारियों की ड्यूटियों संवेदनशील स्थानों पर लगी हुई है। जिसमें कोआरटाईन सैंटर, आइसोलेशन वार्ड, हवाई अड्डे, रेलवे स्टेशन, धार्मिक स्थान और अन्य भीड़-भाड़ वाले स्थान शामिल हैं। यह कर्मचारी पिछले 10 से 15 सालों से अपने पके होने की उम्मीद कर रहे हैं, एन.आर.एच.एम. का सारा ही मैडीकल और पैरा मैडीकल स्टाफ पूर्ण भर्ती  प्रक्रिया में से गुज़रा है। परन्तु आज भी यह कर्मचारी कम वेतन लेकर भी पके कर्मचारियों के बराबर काम कर रहे हैं। ज़िक्त्रयोग्य है कि राज्य में एन.आर.एच.एम. का 12000 और रुरल पंचायत विभाग का 3500 के करीब मैडीकल और पैरा मैडीकल स्टाफ इस जंग के मैदान में उतरा हुआ है। यह भी ज़िक्त्रयोग्य है कि राज्य के कई अस्पतालों में ओ.पी.डी. को पूर्ण तौर पर बंद कर दिया गया है और वहाँ मौजूद पैरा मैडीकल स्टाफ मुक्त करके बैक फुट पर रख लिया है। एन.आर.एच.एम. और पंचायती विभाग के कुछ मैडीकल और पैरा मैडीकल स्टाफ ने बहुत ही गंभीर अवस्था में अजीत समाचार के साथ बात करते हुए बताया कि उनके पास न तो पी.पी.ई. (स्व रक्षा किट) किटें हैं और न ही मास्क यां सैनेटाईज़र हैं। उन्होंने कहा कि इसी लिए 24 मार्च को डाक्टरों और सामाजिक संगठनों की ओर से माननीय सुप्रीम कोर्ट में इस सम्बन्धी रिट्ट पटीशन भी दाख़िल की गई थी और बीते दिनों माननीय अदालत ने सेहत विभाग को निर्देश दिए थे कि वह कर्मचारियों को मास्क, सैनेटाईज़र और पी.पी.ई. किट्टें प्रदान करवाएं।
वैंटीलेटर चलाना भी विभाग के लिए बनी सरदर्दी
आपातकालीन स्थिति में यदि कोई कोरोना वायरस से पीड़ित मरीज़ सामने आता है तो उसे वैंटीलेटर पर रखा जाना भी जरुरी हो जाता है। ऐसी हालत में रुरल पंचायत विभाग के कर्मचारियों को चलती जंग में वैंटीलेटर चलाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। हास्यप्रद बात है कि जो पके कर्मचारी विभाग में कई सालों से सेवाएं निभा रहे हैं, क्या उन्होंने कभी वैंटीलेटर नहीं चलाया होगा। ऐसी स्थिति में सालों का तजुर्बु रखने वाले पके कर्मचारियों को क्यों नहीं आगे लेकर आया जा रहा? 
अस्थाई तौर पर रजिस्टर होने वाले वालंटियरों की अपेक्षा में भी कम वेतन प्राप्त कर रहे हैं कच्चे कर्मचारी
हैरानी की बात है कि मुसीबत की इस घड़ी में सरकार के पास मैडीकल और पैरा मैडीकल स्टाफ की कमी है। जिसके लिए विभाग ने अस्थाई तौर पर वालंटियर रजिस्टर करने शुरू किये हैं। जिसमें उन्होंने कहा कि डाक्टर, स्टाफ नर्सें और फार्मासिस्ट जो विभाग में नहीं भी हैं। यदि वह विभाग को अपनी सेवाएं देनीं चाहते हैं तो उनमें से डाक्टर को प्रति दिन 3000 और स्टाफ नर्स और फार्मासिस्ट को प्रति दिन 1000 रुपया दिया जायेगा। जिसके साथ अगर हिसाब लगाया जाये तो एक डाक्टर प्रति महीना 90, 000 जब कि स्टाफ और फार्मासिस्ट 30, 000 प्रति महीना पैसा प्राप्त कर सकता है। जबकि सरकार के अपने कच्चे कर्मचारी जो 15- 15 साल से विभाग में काम कर रहे हैं। उनमें से एक डाक्टर जो प्रति महीना 25 से 30 हज़ार और स्टाफ नर्स 10 से 12 हज़ार प्रति महीना वेतन ले रही है।