अपरिचय

जनरल कालोनी के ऊपर वाले र्क्वाटर में एक युवती को टाइफाइड हो गया है, जिसकी देखभाल करने वाला वहां कोई नहीं है। मंडी और मनाली के बीच, कुल्लू से कुछ पहले ब्यास-सतलुज लिंक का प्रोजैक्ट देखने के लिए विगत दो वर्ष से बुलाया जा रहा हूं। पंडोह में अपने एक दोस्त के पास एक रात ठहरने को इसलिए रुक जाता हूं, कि सुबह पहले बैरियर के बाद दशहरा-मेला देखने को निकल जाऊंगा। परन्तु क्या पता था कि यह ठहराव मेरे जीवन की एक अद्भुत गति बन जाएगा।शुक्र की रात, सैकेंड शिफ्ट में ड्यूटी ऑफ करके युवती अपने एक कमरे के घर में स्वस्थ लौटी थी। अचानक, रात के तीसरे पहर उसे थोड़ी-सी ठंड महसूस हुई। आंखों में नींद घिरी होने के कारण शायद वह पिछली खिड़की का शीशा गिराना भूल गई थी, उसने सोचा। लिहाफ हटाते हुए स्लीपर पहनकर, भारी मन के वह बाथरूम में घुसी और चारपाई पर आने से पहले उसने ध्यान से देखा तो पिछवाड़े में खिड़की का शीशा गिरा हुआ था। ठीक, उसे भ्रम हुआ होगा।पिछले साल मैं मुम्बई था, उससे भी पिछले साल शायद शिमला। इस बार वैसे ही प्रोग्राम तय-सा हो गया था। यूं उधर से कई ़खत भी आ चुके। इस बार मुझे जाना ही होगा। आगे कई बार टाल चुका था, हर बार तो क्षमा नहीं किया जाएगा। तीन छुट्टियों के साथ चार दिन की अर्न्डलीव जोड़ लूंगा। और आगामी शनि-रवि मिलाकर नौ दिन बाहर रहूंगा, इसी लालच में अपने पहुंचने की पूर्व सूचना मैं तार द्वारा भिजवा देता हूं। लगभग उसी समय मैं फोन पर सीट, मंडी-कुल्लू ट्रांसपोर्ट में बुक करवा लेता हूं। उधर इंतजार हो रहा होगा, आश्वस्त हूं।रजाई के साथ कम्बल मिलाकर ओढ़ने पर भी युवती का शरीर ठंडक महसूस कर रहा था। उसे अंदर कम्पकम्पी लग रही थी। लेटे-लेटे ही उसने बैड स्विच ऑन किया। सफेदी-पुती दीवारों की सारी रोशनी आधी मुंदी आंखों में चुभने लगी। करवट बदलकर युवती ने तिपाई पर पड़े ट्रांजिस्टर को एक ओर खिसका कर यंगमैन के टेढ़े पड़े डिब्बे में से थर्मामीटर निकाला। तकिये के नीचे से रिस्ट वॉच निकाल कर टाइम नोट किया और टैंप्रेचर देखने लगी।जिस उत्साह से बस ठीक समय पर चली थी, उसने डयोढ़े हौंसले के साथ, पैंतालिस मिनट लेट बस, जरल के अड्डे पर रुकी। रास्ते में मैं आज रात का टाइम-टेबल चाक आऊट करता रहा था या चढ़ती-उतरती सवारियों की मार्किंग। मेरे ठीक पीछे कुछ लोग ध्यानपूर्वक कमेंटरी सुन रहे थे तो बाईं ओर कोई सरदार साहिब (जो सम्भवत: पहली बार ही इस रूट पर स़फर के लिए निकले थे, और अपेक्षाकृत युवा लगने का ढोंग रचे हुए थे : सूखी पहाड़ियों पर या चीड़ के दूर दिखाई दे रहे ऊंचे वृक्षों पर, अपने कमैंट्स, सीट मेट को बलात दे रहे थे)। युवती को गले के इन्फेक्शन के कारण बुखार था और चूंकि उस कालोनी में यह कोई नई बात नहीं थी, इसलिए उसे फिक्र नहीं करना चाहिए। क्लोरोमाइस्टीन का इंजेक्शन देते हुए कालोनी के कम्पाऊडर ने उसे सांत्वना दी। युवती कम्पाऊडर के या कैमिस्ट के, किसी के भी काम आ सकती है, यही सोचकर उसने कम्पाऊडर को बुला भेजा था। पहले सन्देश पर कैमिस्ट ने जो कैप्सूल और टैबलेट्स युवती को दिए थे। उनसे युवती का कुछ बिगड़ने या संवरने वाला नहीं, यह सब उसे कम्पाऊडर ने ही बताया। वैसे इससे पहले यहां आकर युवती कभी बीमार नहीं हुई। बहुत हुआ तो कभी सिरदर्द या जुकाम हो जाता, जिसका उपचार उसके पास-अम्मबा की दी हुई देसी चाय थी। (क्रमश:)