नेत्रहीन उड़न परी स्नेहा दुमोगा

‘खेल से ही सब कुछ करना है, मैंने अपने देश का नाम ऊंचा करना है।’ जी, हां उत्तराखंड की बेटी स्नेहा दुमोगा कहती हैं कि ‘ऊंचे ख्वाबों के लिए दिल की गहराई से काम करना पड़ता है, यूं ही नहीं मिलती मंज़िल बुलंद हौंसला बनाना पड़ता है।’ स्नेहा दुमोगा का जन्म उत्तराखंड की पवित्र धरती पर पिता जसपाल दुमोगा के घर हुआ। स्नेहा दुमोगा ने जन्म लिया तो लगता नहीं था कि बच्ची में कोई शारीरिक खराबी है परन्तु जब वह बड़ी हुई तो उसे देखने में मुश्किल आने लगी और ज्यादातर हाथ के इशारों से काम लेने लगी तो माता-पिता को अहसास हुआ कि स्नेहा को कम दिखाई देता है और शीघ्र ही डाक्टरों ने भी यह पुष्टि कर दी कि स्नेहा की आंखों की रौशनी बहुत कम है उसे पूरी उम्र कम दिखाई देगा। कम रौशनी से एक बेटी किस प्रकार इस रंगमय ज़हान को देख सकेगी यह एक गहन चिंता का विषय बन गया परन्तु सब्र के अलावा और कोई रास्ता भी नहीं था। स्कूली शिक्षा दिलाने के लिए स्नेहा दुमोगा को देहरादून के नेत्रहीन स्कूल में दाखिल करवा दिया गया और शीघ्र ही खेलों के क्षेत्र में कम रौशनी वाली माता-पिता की लाडली बेटी ने सभी के दिलो-दिमाग को रौशन कर दिया और वह स्कूल में एक उडन परी के नाम से पहचाने जाने लगी और यह सब कुछ सम्भव हो सका उसके गुरुओं जैसे अध्यापक और कोच नरेश सिंह नयाल की दिन-रात की मेहनत से। स्नेहा दुमोगा 1500 मीटर, 5000 मीटर दौड़ती है और उसने दौड़ते हुए वर्ष 2018 में आई.बी.एस.ए. की खेलों में 2 स्वर्ण पदक अपने नाम किए हैं। वर्ष 2020 में उत्तराखंड महाकुम्भ खेलों में भी वह एक स्वर्ण पदक और एक रजत पदक जीत कर पूरे उत्तराखंड का गौरव बनीं। स्नेहा दुमोगा को यह सम्मान भी जाता है कि उसने उत्तराखंड की ब्लाइंड लड़कियों की क्रिकेट टीम में भी बल्ला लहराया है, यहीं बस नहीं उसने मैराथन में भी हिस्सा लेकर  ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का सन्देश दिया है और कम रौशनी वाली यह बेटी आज पूरे उत्तराखंड को रौशनमय कर रही है। स्नेहा दुमोगा के कोच नरेश सिंह नयाल ने बताया कि स्नेहा ने देहरादून के स्कूल से अपनी शिक्षा पूरी कर ली है अब वह दिल्ली के एक कालेज में उच्च शिक्षा हेतु जा रही है तथा वह अपने खेलों के इस स़फर को निरन्तर जारी रखेंगी तथा उनका आशीर्वाद और साथ हमेशा उसे मिलता रहेगा।

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