जीनी का क्रिकेट शौक

जीनी को इन दिनों क्रिकेट का ऐसा चस्का लगा है कि उसके लिए हर वक्त मैच और हर जगह खेल का मैदान ।  कभी बॉलिंग तो कभी बैटिंग... सोते-जागते, उठते-बैठते जीनी के दिमाग में क्रिकेट ही क्रिकेट घूमने लगी। चूंकि वह हर समय अपने साथ बैट नहीं रख सकता था इसलिए जब भी मौका मिलता... जीनी की बॉलिंग शुरू...। क्या घर...। क्या बाहर... वह हर हाथ में आने वाली वस्तुओं को बॉल की तरह उछालने लगा।चाहे आलू-प्याज हो या टमाटर...। मम्मी उससे कुछ भी मंगवाती तो जीनी उनके हाथ में थमाने की बजाय उसे बॉल की तरह उनकी तरफ उछाल देता। कई बार मम्मी उन्हें लपक लेती और कई बार उनसे कैच छूट जाता। कैच छूटने पर टमाटर तो फूट ही जाते थे। जीनी के बॉल बनाकर फेंके गए आलू से एक बार जब लॉबी में वाशबेसिन के पास लगा शीशा टूट गया तबसे मम्मी के मन में डर ही बैठ गया। क्या पता कौनसा सामान टूट जाये। ‘जीनी! क्रिकेट का खेल मैदान में खेला जाता है, घर में नहीं। कहकर मम्मी जीनी पर गुस्सा करती लेकिन जीनी पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ता। ‘बॉलिंग की प्रैक्टिस कर रहा हूँ’, कहकर वह कंधे उचका देता।  हर समय जीनी के हाथ बॉलिंग करने की स्टाइल में ही घूमते दिखाई देते। यहाँ तक कि सड़क पर चलते-चलते भी वह हर समय अपने हाथ ही घुमाता रहता। जीनी का हाथ किसी भी ठोस बस्तु को देखते ही घूम जाता। अपने से बड़े बच्चों को क्रिकेट खेलते देखकर उसका भी मन खूब मचलता लेकिन क्योंकि वह अभी छोटा था इसलिए कोई भी उसे अपनी टीम में नहीं लेना चाहता था। एक दिन जीनी अपने घर की छत पर खड़ा बच्चों को क्रिकेट खेलता हुआ देख रहा था। कुछ देर देखने के बाद वह भी उनकी तरफ  चल दिया। रास्ते में सड़क के किनारे पड़े गोल पत्थर को देखते ही उसके हाथ मचलने लगे। उसने पत्थर को उठाया और बॉल की कल्पना करते हुये अपना पूरा दम लगाकर पत्थर को उछाल दिया।वहीं कुछ दूरी पर एक कुत्ता बैठा था। जीनी का उछाला गया पत्थर उस कुत्ते को लगा और कुत्ता भड़क गया। वह भौंकता हुआ जीनी पर झपटा।जीनी इस हमले के लिए तैयार नहीं था। वह कुत्ते से डर कर पलटा और अपने घर की तरफ  भागने लगा। जीनी जितना तेज भाग रहा था कुत्ता भी उतनी ही तेजी से उसके पीछे दौड़ रहा था। आगे-आगे जीनी। पीछे-पीछे कुत्ता..। भागता-भागता जीनी हाँफने लगा। उसे पेट में लगने वाले इंजेक्शन को याद कर दर्द महसूस होने लगा।घबरा कर जीनी ने अपना पेट कस कर पकड़ लिया और अधिक तेजी से भागने लगा। तभी उसे सामने अपने घर का गेट दिखाई दिया। जीनी की सांस में सांस आई। वह दौड़कर घर के भीतर घुसा और तुरंत गेट बंद कर दिया।घर के बाहर खड़ा कुत्ता अब भी भौंक रहा था। जीनी ने अपनी उखड़ी हुई सांस को संयत किया और घर के भीतर चला गया।
पसीने-पसीने हुआ जीनी घर में घुसा। माँ उसे देखकर मुस्कुराई ‘जीनी! जरा फ्रिज में से निकालकर दो टमाटर तो पकड़ाना...। ना-ना...। रहने दे। मैं खुद ही ले लूंगी।’ माँ ने उसकी बॉलिंग याद आते ही कहा।  ‘अभी लाता हूँ।’ कह कर जीनी ने चुपचाप माँ को टमाटर थमा दिये। माँ उसे आश्चर्य से देख रही ।  जब उन्हें पूरी बात पता चली तो वह भी परेशान हुईं।‘जीनी! खेलना बहुत अच्छी बात है लेकिन खेल सिर्फ  मैदान में ही खेले जाने चाहिए, हर कहीं नहीं। पहले भी तुम्हें समझाया था लेकिन मुझे लगता है कि अब तुम्हें उदाहरण सहित सबक मिल गया होगा।’ माँ ने हँस कर कहा तो जीनी ने अपनी गर्दन नीचे करके माँ की बात पर हामी भरी।

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