जीवन के उत्साह और निराशा के बीच की पगडंडी

कोरोना महामारी ने घातक प्रहार किया है और परिणामस्वरूप चोंतरफा नुकसान की खबरें आ रही हैं। वह नुकसान परिवार के प्रिय सदस्य से वंचित रह जाने का है, या वित्तीय। लॉकडाऊन से कारोबार ठप्प हो गये तथा महंगाई और बेरोज़गारी ने अलग कहर ढाना आरम्भ कर दिया। कोरोना की दूसरी लहर में तो महंगाई का विकराल रूप नज़र आया है। आंकड़ों के अनुसार थोक महंगाई पर 12.94 प्रतिशत के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गई और खुदरा मुद्रास्फीती 2 प्रतिशत बढ़ गई है। महंगाई के इन आंकड़ों का मतलब है कि आम उपभोक्ता की सांस अटकी हुई है। पिछले पांच महीने से बाज़ार में महंगाई ऊपर और ऊपर ही जाती रही। अर्थशास्त्री बेतहाशा इज़ाफे का कारण पैट्रोलियम पदार्थों की दरों में आया अनियंत्रित उछाल मान रहे हैं। आज ऐसा लगने लगा है कि पैट्रोल और डीज़ल केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों के लिए बेबसी का आलम है। सरकारें जनता की पुकार, जनता के दर्द को लगातार अनसुना कर रही है। पैट्रोलियम पदार्थों पर केन्द्र के कर व अतिरिक्त राज्यों के अपने टैक्स लगाये जाते हैं। देखा जाये तो पिछले 6 सप्ताह में ही चौबीस बार पैट्रोल-डीज़ल की कीमतों में वृद्धि हुई है और होती चली जा रही है। इसे अभूतपूर्व बताया जा रहा है। चुनाव के समय 18 दिनों तक कोई भी वृद्धि नहीं हुई तो अब सारी कमी पूरी करने पर सरकार ने कमर कस ली है। यह काफी गौरतलब मामला है जिस पर विचार ज़रूरी है।
जाने-माने वैज्ञानिक हॉकिंग ने दुनिया से विदा लेने से पहले एक लेख में दुनिया के पांच संकटों से घिरा होने की बात की थी जिनमें से कोई एक विश्व विनाश का कारण बन सकती है। उनके अनुसार ये संकट अणविक युद्ध के, पर्यावरण के, कृत्रिम बौद्धिकता के, नई सदी में विचारधारा की मृत्यु के और पांचवां आतंकवाद के रूप में देखा जा सकता है। आज हालत यह है कि सभी समझदार लोग इस संकटों को स्वीकार कर रहे हैं परन्तु सुलझाने का ज़रा भी प्रयास नहीं कर रहे। कोविड-19 भी ऐसा ही एक संकट है जो चीन से आरम्भ हुआ और फिर कोई देश इससे बच नहीं पाया। अलग-अलग देशों में लाखों-लाख लोग इस संकट से घिरे और लाखों जान गंवा बैठे। वैज्ञानिक डाक्टर इसके खात्मे का उपचार नहीं बता पा रहे।
जहां तक महंगाई का सवाल है पैट्रोलियम दरों में लगातार बढ़ोतरी के साथ-साथ खाद्य तेलों में 30.4 प्रतिशत फल 11.96 प्रतिशत दालें 9.3 प्रतिशत बढ़ चुकी है। कपड़े, फुटवियर, ट्रांसफार्मेशन में भी वृद्धि की वजह पैट्रोलियम पदार्थों को ही माना जा रहा है। कोरोना ने लोगों की आय को बुरी तरह प्रभावित किया है। सो यह दोहरी चोट है जो आम आदमी को झेलनी पड़ रही है।
एक और विकट समस्या बताई जा रही है। दुनिया के कुछ बड़े देशों के शासक अपने-अपने देश में आये कोरोना संकट को देखते हुए चीन को इस संक्रमण की वजह बताकर दुनिया में विश्व युद्ध जैसा वातावरण बनाना चाह रहे हैं। कोरोना संकट दुनिया का ऐसा पहला संकट है जिस पर पहले से किसी ने कुछ भी नहीं सोचा था। दुनिया में बाढ़-सूखा, भूकम्प जैसी आपदाएं आती रही हैं। परन्तु इनमें से कोई भी वैश्विक संकट नहीं था। आज अगर दुनिया एक जैसे वैश्विक संकट से घिर गई है तो इसका हल भी वैश्विक स्तर पर आपसी सहयोग से क्यों न हो।
संकट की घड़ी में धार्मिक संस्थाओं ने जिस सकारात्मकता का परिचय दिया है वह प्रशंसनीय है। कोरोना खत्म होने पर हमें वह दुनिया नज़र आएगी जो उससे पहले थी। इस बची हुई दुनिया, इसकी हिम्मत, इनके जीने के संघर्ष को बताया। सरकार को अपने वित्तीय संकट का हल आम आदमी पर बोझ डाल कर नहीं, अपितु बेपरवाह खर्चों में कटौती कर ही निकालना चाहिए। नई पीढ़ी सकारात्मकता को देखना चाहती है।