भारत-ईरान का महत्त्वपूर्ण समझौता

विगत दिवस भारत के ईरान के साथ उसकी चाबहार बंदरगाह को 10 वर्ष तक चलाने के संबंध में समझौते को कई पक्षों से महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। यह योजना वर्ष 2016 में शुरू की गई थी जिसके द्वारा भारत ने भू-मार्ग के स्थान पर समुद्र द्वारा ईरान की चाबहार बंदरगाह तक पहुंचना था तथा उसके बाद ईरान के सिसतान सूबे में भारत का रेल द्वारा अ़फगानिस्तान तक सम्पर्क बनाया जाना था।
पाकिस्तान ने वाघा सीमा से ़खैबर दर्रे तक का मार्ग, जो अ़फगानिस्तान की सीमा के साथ लगता है, भारत को व्यापार के लिए इसका उपयोग करने की इजाज़त देने से हमेशा आना-कानी की है। भारत इस मार्ग द्वारा अ़फगानिस्तान, ईरान तथा मध्य एशिया के देशों के साथ व्यापार करने का इच्छुक रहा है, परन्तु पाकिस्तान की ओर से इसके लिए ऐसी शर्तें भी लगाई जाती रही थीं, जो भारत के लिए स्वीकार करना कठिन होती थीं। चाबहार बंदरगाह भारत को समुद्र द्वारा ईरान के साथ जोड़ने के लिए सबसे नज़दीकी मार्ग है। यहां से अ़फगानिस्तान तथा मध्य एशिया के देशों के साथ भारत हर तरह के संबंध कायम कर सकता है। भारत के सदियों से इन देशों के साथ अनेक तरह के संबंध रहे हैं, क्योंकि भारत की ज़मीनी सीमा अ़फगानिस्तान के साथ जुड़ती थी। पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के बाद ऐसा संबंध जुड़ने में अक्सर रुकावटें पैदा होती रही हैं तथा इसके लिए अन्य वैकल्पिक ढंग-तरीके अपनाये जाते रहे, जो समय तथा दूरी के कारण प्राकृतिक न बन सके। अब चाबहार बंदरगाह के प्रबन्ध द्वारा भारत अ़फगानिस्तान सहित मध्य एशिया के दर्जनों अन्य देशों के साथ भी आसानी से जुड़ सकेगा।
पहले इन देशों से पाकिस्तान की सीमा द्वारा हज़ारों वर्षों तक लोग भारत आते रहे हैं। इन देशों में अज़रबाइजान, उज्बेकिस्तान, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, तुर्केमेनिस्तान आदि देश शामिल हैं। वर्ष 2016 में चाबहार बंदरगाह के संबंध में भारत, ईरान तथा अ़फगानिस्तान का समझौता हुआ था। पाकिस्तान ने भी ऐसा ही एक समझौता चीन के साथ ग्वादर की बंदरगाह संबंधी किया हुआ है। इस समझौते के संबंध में अन्तर्राष्ट्र्ीय मंच पर भी अनेक रुकावटें आईं। अमरीका भारत के ईरान के साथ ऐसे समझौते के लिए सहमत नहीं था। उसके दबाव के कारण कई अन्य देशों ने भी इस बंदरगाह के बेहतर निर्माण के लिए ज़रूरत के अनुसार भारत को सहयोग देने से आना-कानी की, जिस कारण इसके पूर्ण होने की सम्भावनाएं मद्धम पड़ गईं। इस संबंध में भारत की आलोचना भी होती रही। अब एक बार फिर इस समझौते पर हस्ताक्षर होने से जहां तीनों संबंधित देशों में रिश्ते और भी अच्छे हो सकेंगे, वहीं भारत के लिए भी मध्य-एशिया तथा उससे आगे जुड़े देशों के साथ व्यापार के अतिरिक्त अन्य हर तरह का मेल-मिलाप बढ़ाना सम्भव हो सकेगा। 10 वर्षीय यह समझौता इस क्षेत्र में व्यापार को बढ़ाने के साथ-साथ सांस्कृतिक साझेदारी पैदा करने में भी सहायक होगा। 
आज के माहौल में भारत की ओर से ईरान के साथ संबंध बढ़ाना भी बेहतरी की ओर एक कदम माना जा सकता है। कुछ वर्ष पूर्व ईरान के राष्ट्रपति के भारत आने से भी आपसी रिश्तों को अधिक सम्बल मिला था। भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी कुछ वर्ष पहले ईरान के नेताओं के साथ अ़फगानिस्तान सहित फारस की खाड़ी की सुरक्षा के साथ जुड़े मामलों पर भी गम्भीर चर्चा की थी। अब हुए ऐसे महत्वपूर्ण समझौते से चीन की इस क्षेत्र में विस्तारवादी नीतियों पर भी अंकुश लगने की सम्भावना बन गई है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द