भूकम्प और इसका जन्म

भूकम्प का नाम सुनते ही हर व्यक्ति एक क्षण के लिए कम्पित सा हो जाता है और सोचने पर विवश हो जाता है कि कहीं ऐसा न हो जाये कि हम रात में चिर निद्रा में हों और उस समय भूकम्प का तेज़ झटका आ जाये और फिर हम हमेशा के लिए सो जायें। देखा जाए तो इन्सान का यह सोचना बिल्कुल सच ही है क्योंकि भूकम्प है ही ऐसा दर्दनाक पहलू कि इसके तीव्र गति में होने से जान-माल का नुकसान हो जाता है। यहां तक कि पहाड़ों में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ सकती हैं, इमारतें खंडित हो सकती हैं। अब यह भी जानना आवश्यक है कि भूकम्प होता क्या है? हमारी पृथ्वी अनेक प्रकार की शैलों से मिलकर बनी है। यदि इनमें कभी दरार पड़ जाये तो पृथ्वी कांप उठती है। इसे ही भूकम्प कहा जाता है। जब शैलों में दरारें तेज़ गति से तथा ज्यादा पड़ती हैं और काफी समय लेती हैं तो भूकम्प बहुत खतरनाक होता है।
सामान्यत: तेज भूकम्प को ही भूचाल कहते हैं। पृथ्वी की शैलों में दरारें क्यों पड़ती हैं? इसके कई कारण हैं जैसे-किसी ठोस वस्तु का अचानक टूटना, विस्फोट द्वारा कम्पन, टैंकों, रेलगाड़ियों या भारी वाहनों के चलने से, कई मंजिला इमारतों के भार से, खदानों के ढहने, भूस्खलन आदि से, लेकिन तीव्र भूकम्प का कारण भूमि का भ्रंश या दरारें -तलों पर धंसना अथवा सरकना होता है। 
जब पृथ्वी की शैलों या भूमिपटल पर तनाव बन जाता है तो वह शैल टूट जाती है। सामान्यत: इसकी चेतावनी कुछ समय पहले हल्के झटकों के रूप में होती है। इसे पूर्व प्रघात कहते हैं। फिर जिस स्थान पर पहले हल्का झटका आया था वह उश्वम स्थान होता है, जिसे अभिकेन्द्र कहते हैं, वहां तीव्र झटका आता है। इसे उत्तर प्रघात कहा जाता है। इसे ही भूचाल कहा जाता है।
भूकम्प की तीव्रता को रिक्टर पर मापा जाता है। साधारणत: पृथ्वी पर छोटे-छोटे कम तीव्रता के भूकम्प हर पल आते रहते हैं लेकिन उनकी गति इतनी धीमी होती है कि महसूस नहीं किया जा सकता। इसी कारण धरती पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता।  जब कभी भी तीव्र भूकम्प आता है तो शैलों के टूटने पर ऊर्जा का उत्सर्जन भी होता है। यही ऊर्जा पृथ्वी को चीरते हुये बाहर निकलती है और विनाशलीला उत्पन्न कर देती है। यह ऊर्जा इतनी अधिक मात्र में होती है कि कई किलोमीटर दूर से ही इसकी चमक देखी जा सकती है। 
आज यह ज्ञात हो चुका है कि पृथ्वी की प्लेटें 200 मिलियन वर्ष पूर्व एक साथ थी मगर अब यह अलग-अलग होकर कई भागों में बंट गयी हैं जैसे-उत्तरी अमरीका, दक्षिणी अमरीका, अफ्रीका, एशिया, अंटारर्टिक आदि। भारतीय प्लेटें एशिया के अन्तर्गत हैं।
इन प्लेटों के अलग होकर उत्तरी दिशा में बढ़ने से ही हिमालय का जन्म हुआ है लेकिन यह आज से लगभग 65 मिलियन वर्ष पूर्व में बनना प्रारम्भ हुआ था। आज भी भारतीय प्लेटें 4 से 5 सेमी. प्रतिवर्ष ‘तिब्बतन प्लेट’ के नीचे जा रही हैं जिसके कारण हिमालय पर्वत 4 से 5 सेमी. प्रतिवर्ष और ऊंचा होता जा रहा है तथा इसके कारण भारतीय प्लेटों पर अधिक बल भी कार्य कर रहा है। इन्हीं बलों का परिणाम था 1993 में आया महाराष्ट्र का लाटूर भूकम्प। (उर्वशी)