किसानों को मालामाल करने वाली मालाबार नीम
मालाबार नीम जिसे मेलिया डबिया भी कहते हैं। किसानों के लिए दीमकरोधी लकड़ी का एक बहुत ही फायदेमंद स्रोत है। क्योंकि इसका पेड़ लगाने के महज दो साल के भीतर ही सफेदे की तरह तेजी से बढ़ता हुआ आठ से दस फीट का हो जाता है। मालाबार नीम की खेती मुख्यत: कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल के मालाबार इलाके में बड़े पैमाने पर होती है। प्लाईवुड उद्योग, पैकिंग उद्योग, फर्नीचर आदि में इसकी भारी मांग होने के कारण यह पेड़ किसानों के लिए आर्थिक रूप से बहुत ही लाभदायक है। क्योंकि एक तरफ जहां यह बहुत तेजी से बढ़ता है, वहीं दूसरी तरफ इस इमारती लकड़ी वाले नीम के पेड़ को न तो बहुत ज्यादा पानी की ज़रूरत होती है और न ही बहुत ज्यादा पानी से इसको कोई नुकसान भी होता है। यही वजह है कि यह बहुत कम बारिश वाली जगह में भी आसानी से हो जाता है और केरल के मालाबार इलाके में भी जहां काफी अच्छी बारिश होती है, वहां यह काफी पाया जाता है।
मालाबार नीम के पेड़ को बो कर बड़ा करने से बेहतर है कि इसे नर्सरी से खरीदकर लगा लें, इससे इसे तैयार करने में एक-दो साल कम लगेंगे। मालाबार नीम के पेड़ की खेती सभी तरह की मिट्टी में हो जाती है। मार्च और अप्रैल का महीना इसकी बुआई के लिए सबसे उपयुक्त होता है, लेकिन पौधे नर्सरी से लेकर लगाना हो तो जुलाई-अगस्त या किसी महीने भी आराम से इसे लगाया जा सकता है। मालाबार नीम की सबसे अच्छी बात यह है कि इसकी लकड़ी में दीमक नहीं लगती और पांच साल में ही इसकी लकड़ी परिपक्व हो जाती है। यही नहीं एक पेड़ से कम से कम पांच बार लकड़ी हासिल होती है। पेड़ को नीचे से काट देने पर फिर से यह पनप जाता है और कम से कम पांच बार तो यह पनपता ही है। मालाबार नीम की लकड़ी के बहुत उपयोग है। यह भवन निर्माण, कृषि उपकरणों, माचिस की तीलियां, तरह तरह के फर्नीचर, पेंसिल और संगीत के वाद्ययंत्रों को बनाने आदि के काम आती है। मालाबार नीम के पौधे को बहुत ज्यादा खाद पानी की भी ज़रूरत नहीं होती। अगर एक एकड़ में मालाबार नीम के पौधे एक से डेढ़ हजार लगा दिए जाएं तो पांच साल बाद ये कम से कम 25 से 30 लाख रुपये दे जाते हैं। अगर 4 एकड़ में इनकी खेती की जाए और पांच साल के बजाय आठ साल तक इंतजार किया जाए तो मालाबार नीम की यह खेती एक से डेढ़ करोड़ तक की कमाई करा देती है, क्योंकि तब इसकी लकड़ी वजन की बजाय फुट के हिसाब से बिकती है, इससे कीमत अच्छी मिलती है।
हाल के सालों में इस पेड़ की लकड़ी से बड़े पैमाने पर पैकिंग बॉक्स बनने लगे हैं, जिसकी वजह से इसकी आपूर्ति से ज्यादा मांग हो गई है। इसलिए किसान आठ से दस साल का इंतजार करने की बजाय पांच साल में ही, जब एक मालाबार नीम का पेड़ औसतन डेढ़ से दो टन का हो जाता है और 500 से 600 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर इसकी लकड़ी बिकती है, तभी लोग इसे बेंच देते हैं। लेकिन अगर किसी किसान के पास आठ से दस साल तक इसके पेड़ को बचाकर रखने का धैर्य है तो फिर उसकी कमाई दो से ढाई गुना बढ़ जाती है। मालाबार नीम के पौधों की नर्सरी तैयार करके भी किसान अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। क्योंकि आज पूरे देश में किसान इसकी खेती करने के लिए उत्सुक हैं और यह स्वाभाविक ही है, क्योंकि इससे अच्छी खासी कमाई हो जाती है। अगर कोई किसान इस पेड़ को बड़ा करके बेंचने के बजाय इसकी नर्सरी तैयार करके बेचता है, तो आमतौर पर प्रति पौधा 80 से 100 रुपये तक में बिक जाता है और थोक के भाव में भी 40 से 50 रुपये प्रति पौधा आसानी से बिक जाता है। यही कारण है कि तमाम किसान इन दिनों इस नीम के पौधे की नर्सरी का कारोबार भी करते हैं। हिमाचल में विलासपुर-कांगड़ा, उत्तराखंड में देहरादून, छत्तीसगढ़ के रायपुर में किसान इसकी नर्सरी का ठीक ठाक कारोबार करते हैं। मालाबार नीम का पेड़ घनी छाया देने वाला होता है इसलिए यह खेतों की मेड में या बागीचों के चारो तरफ बाउंड्री बनाने में भी काम आता है। क्योंकि इसकी सघनता के कारण बागीचे के अंदर के पौधे अनावश्यक हवा और धूल मिट्टी से बचे रहते हैं।
मालाबार नीम की लकड़ी ही नहीं इसके बीज और इसकी पत्तियां भी अच्छी खासी कीमत पर बिकती हैं। पत्तियों से खाद बनती है, बीज से नये पौधे तैयार होते हैं साथ ही इसके बीज से निकलने वाले तेल की औषधि बाज़ार में अच्छी खासी मांग है। इसमें त्वचा की समस्याओं को दूर करने वाले कई गुण पाये जाते हैं। इसलिए मालाबार नीम के तेल का त्वचा को फायदा पहुंचाने वाले साबुन बनाने में इस्तेमाल होता है। दांतों और मसूड़ों की समस्याओं के लिए भी उपयोगी होने के कारण इसका टूथपेस्ट में भी इस्तेमाल होता है। दाद, खाज, खुजली और कई तरह की त्वचा संबंधी दूसरी परेशानियों में भी यह बहुत उपयोगी है। इसलिए मालाबार नीम के तेल की भी बाज़ार में अच्छी मांग है। इसलिए मेलियासी वनस्पति परिवार का यह ऊष्ण कटिबंधीय पेड़ किसानों के लिए बहुत उपयोगी है। जैसा कि इसके नाम से पता चलता है यह तमिलनाडु के पश्चिमी क्षेत्र और केरल का मूलत: पेड़ है, जो अपने सीधे और बेलनाकार तने के कारण इमारती लकड़ी के बाजार में बहुत उपयोगी है और लकड़ी में अच्छे खासे पल्प होने के कारण इसकी लकड़ी की प्लाईवुड, लुगदी और कागज के उत्पादन में भी महत्वपूर्ण भूमिका है। यह पहले मूलत: दक्षिण भारत में ही उगता था, लेकिन अब इसकी पूरे देश में खेती हो रही है। वनीकरण के लिए यह एक शानदार पेड़ है।
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