पेरिस पैरालम्पिक विजय की असाधारण कहानी

पेरिस पैरालंपिक में भारत का शानदार प्रदर्शन हमारे पैरा एथलीट्स की क्षमता, प्रतिभा व समर्पण का जीता जागता सबूत है। इन खेलों में हमारा यह आज तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है कि हमने 29 पदक (7 स्वर्ण, 9 रजत व 13 कांस्य) जीते हैं, जो कि टोक्यो 2020 के कुल 19 पदकों से 10 अधिक हैं। यह प्रदर्शन इस लिहाज़ से भी उल्लेखनीय है कि भारतीय दल को 25 पदकों की उम्मीद थी और मिले उससे 4 ज्यादा। दिल खुश करने वाला यह भी तथ्य है कि महिलाओं ने 10 पदक हासिल करके भारत को गौरान्वित किया है। हर पदक के पीछे प्रतिकूल परिस्थितियों पर विजय की एक असाधारण कहानी है। पुरुष जेवलिन (एफ 64) में सुमित एंटिल ने टोक्यो की तरह पेरिस में भी स्वर्ण पदक जीता। इसी तरह शूटर अवनि लेखरा ने भी पेरिस में अपने टोक्यो प्रदर्शन को दोहराया। वह दो पैरालंपिक गोल्ड जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं। 
पेरिस की सफलता यह भी बताती है कि खेलों में एक देश की किस्मत कितनी जल्दी बदल सकती है। लंदन 2012 व रिओ 2016 में भारत को क्रमश: 1 व 4 पदक ही मिल सके थे। टोक्यो 2020 में यह संख्या बढ़कर 19 हो गई और अब पेरिस 2024 में 29 हो गई है। इस अंतर का एक कारण यह भी है कि केंद्र व कॉर्पोरेट संस्थाओं ने फंड व भोजन संसाधनों में वृद्धि की है। लेकिन इसमें अधिक विस्तार की आवश्यकता है क्योंकि पेरिस में भारत ने 22 स्पर्धाओं में से केवल 12 में ही हिस्सा लिया था। इस सफलता के जोश में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे पैरा एथलीट्स को यश हासिल करने के लिए अपनी अपंगता के अतिरिक्त किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अपंग व्यक्तियों के लिए अपने देश में दोस्ताना वातावरण नहीं है। अपंग व्यक्तियों के अधिकार कानून, 2016 में प्रावधान रखा गया कि पांच वर्षों में सभी सार्वजनिक स्थलों को विकलांगों के अनुकूल बना दिया जायेगा, लेकिन इस संदर्भ में अभी तक कोई संतोषजनक कार्य नहीं हुआ है। 
केंद्र ने तो इस कानून के तहत योजनाओं के लिए बजट में भी कटौती कर दी है। इसलिए यह आश्चर्य नहीं है कि मेट्रो शहरों तक में निजी इमारतें व यातायात व्यवस्था विकलांगों के अनुकूल नहीं हैं। हमारे पैरा एथलीट्स की सफलता से यह याद आ जाना चाहिए कि हालात बेहतर करने से अपंग न केवल समाज में बराबरी का एहसास करेंगे बल्कि हर क्षेत्र में अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास करेंगे। कम से कम यह ज़िम्मेदारी तो हमारी बनती ही है। सफलता में पैरा एथलीट्स की अपनी लगन व हिम्मत से तो इंकार नहीं किया जा सकता, लेकिन इसमें कुछ अन्य तत्वों का भी योगदान रहा है। 
भारतीय दल के सभी 84 पैरा एथलीट्स को सरकारी योजनाओं का समर्थन प्राप्त था। उन्हें अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के लिए विदेशों में भेजा गया और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों से उन्हें गाइडेंस दिलायी गई। भारतीय पैरा एथलीट्स के लिए गेम्स विलेज में पहली बार रिकवरी सेंटर स्थापित किया गया, यह सुनिश्चित करने के लिए कि खेलों के दौरान अगर वह चोटिल हो जाते हैं तो उनके उपचार की पूर्ण व्यवस्था हो। कोचों व सपोर्ट स्टाफ की संख्या में वृद्धि की गई, टोक्यो 2020 में जहां इनकी संख्या 45 थी तो उसे बढ़ाकर 77 कर दिया गया। 
खेल विज्ञान का भरपूर इस्तेमाल किया गया, जिससे समय रहते चोटों के बारे में मालूम हो सका। राष्ट्रीय कैम्पों व एक्सपोज़र ट्रिप्स पर हर सप्ताह पैरा एथलीट्स के प्रदर्शन की समीक्षा की गई। चयन नीति अंतर्राष्ट्रीय स्तर की रही। फंड्स में 184 प्रतिशत का इज़ाफा किया गया। टोक्यो चक्र में 26 करोड़ रूपये खर्च किये गये थे, जबकि पेरिस चक्र (2021-2024) में 74 करोड़ रूपये खर्च किये गये। इन प्रयासों का नतीजा यह निकला कि कुछ नये पैरा एथलीट्स उभरकर सामने आये तो कुछ ने अपने प्रदर्शन को बेहतर किया। पहली बार खेलों में हिस्सा ले रहे नितीश कुमार ने बैडमिंटन (एसएल3) में गोल्ड जीता। सुहास आई यथिराज ने रजत जीता और बैडमिंटन में लगातार दो पदक जीतने वाले भारत के पहले खिलाड़ी बने। बैडमिंटन में ही थुलासिमाथि व मनीषा ने महिला युगल का भारत के लिए पहला पदक जीता। हरविंदर सिंह आर्चरी (पुरुष व्यक्तिगत रिकर्व ओपन) में पहले पैरालंपिक चैंपियन बने और शीतल देवी व राकेश कुमार की जोड़ी ने कंपाउंड आर्चरी व मिश्रित टीम स्पर्धा में भारत के लिए पहला पदक जीता। 
अवनि लेखरा की उपलब्धि का ऊपर ज़िक्र हो चुका है, लेकिन उनकी तरह शूटिंग में मनीष नरवाल ने भी टोक्यो के बाद पेरिस में पदक (रजत) जीता और ऐसा करने वाले पहले भारतीय पुरुष शूटर बने। प्रीति पाल ने इतिहास रचा कि ट्रैक इवेंट में पदक जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी बनीं। ऐसा पहली बार हुआ कि भारत के दो खिलाड़ी अजीत सिंह (रजत) व सुंदर एस गुर्जर (कांस्य) पुरुष जेवलिन थ्रो (एफ 46) एक साथ पोडियम पर खड़े हुए। पुरुष क्लब थ्रो (एफ 51) में भी दो भारतीय पोडियम पर थे- धर्मेन्द्र (गोल्ड) व प्रणव शर्मा (सिल्वर)। लेकिन भारत के सात पैरा एथलीट्स पदक के बहुत करीब आकर भी चूक गये यानी कि चौथे स्थान पर रहे। अगर इनको भी पदक मिल जाते तो भारत के कुल पदक 36 हो जाते जोकि टोक्यो तक उसके कुल 31 पदकों से भी ज्यादा होते।-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर