लैंड पूलिंग नीति

पंजाब सरकार पुन: विचार करे
विगत दिवस पंजाब सरकार द्वारा लैंड पूलिंग नीति को स्वीकृति देने के बाद उसके जो विवरण पेश किए गए हैं, उनके संबंध में पंजाब भर में प्रत्येक स्तर पर बड़ी चर्चा शुरू हो गई है। इस नीति के तहत किसानों की जो ज़मीनें ली जाएंगी, उनके संबंध में भी अधिसूचना जारी कर दी गई है।
जहां तक पंजाब का संबंध है, समय के व्यतीत होने के साथ और अनेक कारणों के कारण यह प्रदेश बहुत छोटा-सा बन कर रह गया है। इसके विस्तार में जाएं तो देश के विभाजन से पहले के पंजाब का क्षेत्रफल आज के भारतीय पंजाब से 5 गुणा अधिक था। 1947 में भारत के हिस्से इस प्रदेश का क्षेत्रफल सिर्फ 40 प्रतिशत आया और 1966 में यह क्षेत्रफल कम होकर 20 प्रतिशत ही रह गया। आज भी चंडीगढ़ और इससे बाहर रह गए पंजाबी भाषायी क्षेत्रों को पुन: प्राप्त करने की मांग अक्सर पंजाब में उठती रही है। आज पंजाब के पास सिर्फ 50,000 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल (एरिया) ही बचा है। सदियों से इस विशाल प्रदेश में कृषि ही उत्तम व्यवसाय बना रहा है। इसकी ज्यादातर आर्थिकता इसी व्यवसाय पर आधारित रही है। समय व्यतीत होने से अब परिवारों के बड़े होते जाने के कारण आम किसान के पास प्रति परिवार ज़मीन बेहद कम हो गई है। तेज़ी से होते शहरीकरण और मूलभूत ढांचे के विकास के लिए पुलों, सड़कों, रेलवे लाइनों और अन्य आधुनिक साधनों के विस्तार के लिए ज़मीन लिए जाने के कारण किसानों के पास ज़मीनें और भी कम हो रही हैं। बड़े शहरों के साथ लगती उपजाऊ ज़मीनें शहरों के फैलाव का हिस्सा बनती रही हैं। युवाओं के विदेशों में जाने के रूझान के कारण और अन्य पारिवारिक कारणों के दृष्टिगत भी किसान ज़मीनें बेचने के लिए मज़बूर होते रहे हैं।  किसानों को लम्बी अवधि तक फसलों के लाभकारी मूल्य न मिलने के कारण और  ऋण के बोझ के कारण भी उनकी ज़मीनें बिकती रही हैं। चाहे भूमि अधिग्रहण एक्ट 2013 की धारा-10 में स्पष्ट रूप से यह लिखा गया है कि उपजाऊ ज़मीन रेलवे, सड़कों, पॉवर लाइनों और नहरों के अलावा किसी अन्य काम के लिए सरकार द्वारा नहीं ली जा सकती, परन्तु अधिक शहरीकरण के कारण इन ज़मीनों का क्षरण ज़रूर होता रहा है।
यहां कभी बहुसंख्या में लोग गांवों में रहते थे, परन्तु आधुनिक ज़िन्दगी के तेज़ बहाव के कारण अब 42 प्रतिशत से भी अधिक जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में रह रही है। चंडीगढ़ बनने से और इसके नज़दीकी क्षेत्र मोहाली में भी व्यापक स्तर पर ज़मीनें लेने (एक्वायर) करने से प्रदेश का पुआध का क्षेत्र लगातार तेज़ी से शहरी क्षेत्र बनता जा रहा है। यहां सैकड़ों ही गांवों की धड़कती ज़िन्दगी फैक्टरियों, होटलों, कालोनियों और बड़ी-बड़ी दुकानों में बदल गई है। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे यह क्षरण पुआध के क्षेत्र को ही निगल जाएगा। स्वाभाविक रूप से इससे सदियों से वहां बसती जनसंख्या इस चमक-दमक में पूरी तरह बेगानी होकर गुम हो जाएगी।
जहां तक छोटे बड़े शहरों के आस-पास नई कालोनियां बसने का सवाल है, यह विस्तार मांग अनुसार ही हो रहा है। प्रदेश सरकार का फज़र् पहले ही बनाए गए कानूनों का उचित ढंग से इस्तेमाल करके इन शहरों के विस्तार को नियमबद्ध करने के लिए होना चाहिए परन्तु अब आम आदमी पार्टी की सरकार जिसका कार्यकाल सिर्फ डेढ़ वर्ष ही रह गया है, की ओर से ऐसी लैंड पूलिंग नीति लाना हमारी समझ से बाहर है। अधिसूचना के अनुसार लुधियाना ज़िले के ही 24 हज़ार एकड़ के अतिरिक्त पटियाला, संगरूर, बरनाला, बठिंडा, मानसा, मोगा, फिरोज़पुर, नवांशहर, जालन्धर, होशियारपुर, अमृतसर, तरनतारन, मोहाली, गुरदासपुर और पठानकोट आदि ज़िलों में सरकार लगभग 40,000 एकड़ ज़मीन लैंड पूलिंग के नाम पर एक्वायर करने जा रही है। हम यह महसूस करते हैं कि ऐसी योजना लाने और लागू करने से पहले सरकार को इसके प्रत्येक पहलू पर गहनता और विस्तारपूर्वक विचार-विमर्श करने की ज़रूरत थी। विशेष रूप से उन किसानों संबंधी जिनके पास ज़मीन टुकड़ों में रह गई है। इस योजना के अनुसार लैंड पूलिंग योजना के तहत आने वाली ज़मीन से किसान को प्रति एकड़ (8 कनाल) में से 2 कनाल ही रिहायशी और व्यापारिक प्लाट के रूप में मिल सकेगी।
किसानों का विशेष रूप से छोटे किसान का अपनी ज़मीन के साथ बहुत मोह होता है। वह वहां फसलों की बुआई करता है या बुआई करवाता है, सब्ज़ियां  उगाता है और इस ज़मीन के सहारे ज्यादातर कृषि आधारित और धंधे भी अपनाता है। इसी बात से ग्रामीण मज़दूर भी किसी न किसी तरह उसके साथ जुड़े होते हैं। यह ज़मीन उनका भी सहारा होती है। यदि छोटे किसान को मिट्टी के मोह से ही दूर कर दिया गया तो उसका दिल मोह के स्थान पर पत्थर बना दिखाई देगा। इसके साथ ही उसकी, उसके परिवार की और उसके साथ काम करने वाले मज़दूरों की इस व्यवसाय से जुड़ी पूरी सक्रियता खत्म हो जाएगी। सरकार को इस संबंध में भी गम्भीरता से सोचना होगा कि वह एक्वायर की गई 40 हज़ार एकड़ ज़मीन का कितने वर्षों में अपनी योजना के अनुसार इस्तेमाल कर सकेगी।
लुधियाना शहर पिछले दशकों में तेज़ी से फैला है। हमारी सूचना के अनुसार पिछले 25 वर्षों में इसके आस-पास का 4 हज़ार एकड़ क्षेत्रफल ही अब तक विकसित हुआ है। एकाएक इतनी बड़ी संख्या में किसानों से ज़मीनें लेकर सरकार इस पर कितने दशकों में प्रत्येक तरह का अपने अनुसार निर्माण कर सकेगी? उसके लिए यह सोचना भी ज़रूरी बनता है। विपक्षी पार्टियों ने इस योजना की घोषणा और इसका विस्तार सामने आने के बाद कड़ी प्रतिक्रिया प्रकट की है और आगामी समय में विपक्षी पार्टियों के अतिरिक्त किसान भी अलग तौर पर आन्दोलन कर सकते हैं, जिस तरह कि उनकी ओर से घोषणाएं भी की जाने लगी हैं। उन्होंने इस योजना संबंधी सरकार की नीयत पर भी संदेह प्रकट किया है।
हम समय रहते पंजाब सरकार को यह अपील करते हैं कि वह अपनी इस योजना पर पुन: विचार करे और इस संबंध में होने वाले प्रत्येक तरह के बिखराव को समय रहते समेटने का यत्न करे। हमें इस योजना का क्रियात्मक रूप में सफल होना बेहद कठिन और जटिल  दिखाई देता है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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