क्या बदल रही है भारत की तिब्बत नीति ?

हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में 14वें दलाई लामा का 90वां जन्मदिन मनाने के बाद लौटते हुए अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने नई दिल्ली में पत्रकारों से बात करते हुए दो महत्वपूर्ण बातें कहीं। एक, अरुणाचल प्रदेश तिब्बत के साथ अपनी सीमा साझा करता है न कि चीन के साथ। दूसरी यह कि यारलुंग त्संगपो नदी पर चीन जो दुनिया का सबसे बड़ा बांध बना रहा है, वह टिक-टिक करता हुआ ‘वाटर बम’ (पानी के रूप में बम) है, जिससे पूरी सियांग पट्टी बर्बाद हो सकती है। खांडू के बयान से कुछ अहम प्रश्नों का उठना स्वाभाविक है। जब भारत ने अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार के दौरान 2003 में तिब्बत पर चीनी सम्प्रभुता को स्वीकार कर लिया था, तो अब खांडू यह क्यों कह रहे हैं कि अरुणाचल प्रदेश की सीमा चीन से नहीं तिब्बत से मिलती है? इसमें कोई दो राय नहीं कि यारलुंग त्संगपो नदी पर विशाल चीनी बांध अरुणाचल प्रदेश के बड़े इलाके के लिए बहुत बड़ा खतरा है, तो सवाल यह है कि इसे बनने से रोकने या इसके खतरे से बचने के लिए नई दिल्ली क्या कर रही है व उसके पास क्या योजना है?
दरअसल, अब जब वर्तमान दलाई लामा अपने जीवन के 90 बसंत पूर्ण कर चुके हैं, तो उनके उत्तराधिकारी (15वें दलाई लामा) के चयन की चर्चा ने ज़ोर पकड़ लिया है। तिब्बती जीवन में दलाई लामा का आध्यात्मिक प्राधिकरण बहुत ज़बरदस्त है। नये दलाई लामा की चयन प्रक्रिया के विशाल भू-राजनीतिक प्रभाव संभव हैं। भारत का दृष्टिकोण इस संदर्भ में एकदम स्पष्ट है कि इस मुद्दे पर फैसला केवल तिब्बत के आध्यात्मिक गुरु की इच्छाओं और स्थापित बौद्ध परम्पराओं के अनुसार ही हो और इसमें चीन अनावश्यक हस्तक्षेप न करे। दलाई लामा का कहना है कि उनका उत्तराधिकारी चीन के बाहर पैदा होगा। दूसरी ओर चीन दलाई लामा के पद के महत्व को अच्छी तरह से समझता है, इसलिए उसने 14वें दलाई लामा के भारत में 66 वर्ष के निर्वासन के दौरान भी तिब्बती लोगों पर अपना दलाई लामा थोपने का प्रयास नहीं किया है, लेकिन वह इस महत्वपूर्ण तिब्बती संस्था पर कब्ज़ा करने के लिए सही अवसर की प्रतीक्षा में है कि वर्तमान दलाई लामा के निधन के बाद वह ल्हासा के पोटाला पैलेस पर अपना दलाई लामा थोप दे। 
इन परस्पर विरोधी नज़रियों को लेकर नई दिल्ली व बीजिंग के गलवान 2020 से चले आ रहे कमज़ोर व तानापूर्ण संबंधों पर अतिरिक्त दबाव पड़ रहा है। ताइवान में चीन के आशंकित सैन्य अभियान, टैरिफ  युद्ध व अन्य कारणों से अमरीका भी नये दलाई लामा के चयन में दिलचस्पी लेने लगा है। अमरीकी कांग्रेस ने हाल ही में एक द्विदलीय प्रस्ताव पारित किया है जो बीजिंग के किसी भी हस्तक्षेप को ठुकराते हुए इस बात की पुष्टि करता है कि केवल दलाई लामा को ही अपना उत्तराधिकारी चुनने का हक है। समय आने पर भारत व अमरीका मिलकर दलाई लामा के चयन में सहयोग भी कर सकते हैं। इसका अर्थ है कि भू-राजनीतिक शतरंज के खेल के केंद्र में तिब्बत की वापसी हो गई है। खांडू के बयान को इस पृष्ठभूमि में देखना आवश्यक है। उनके अनुसार, अगर आप भारत के नक्शे को गौर से देखेंगे तो भारत के ‘किसी राज्य की सीमा सीधे चीन से नहीं मिलती है’। अरुणाचल प्रदेश तीन देशों से अपनी सीमा साझा करता है। भूटान के साथ लगभग 150 कि.मी., तिब्बत के साथ लगभग 1,200 कि.मी. और पूरब की तरफ  म्यांमार के साथ लगभग 550 कि.मी.। 
अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेमा खांडू के मुताबिक ‘1950 में चीन ने तिब्बत पर जबरन कब्ज़ा किया, इसलिए आधिकारिक तौर पर अब तिब्बत चीन के नियंत्रण में है, जिससे इन्कार नहीं किया जा सकता, लेकिन मूलत: हम तिब्बत से ही सीमा साझा करते हैं।’ दरअसल, पंक्तियों के बीच में खांडू बीजिंग की अरुणाचल प्रदेश पर अवैध व बेतुकी दावेदारी को खारिज कर रहे हैं और यह भी कह रहे हैं कि तिब्बत पर उसने अवैध व जबरन कब्ज़ा किया हुआ है, इसलिए नये दलाई लामा के चयन में उसका हस्तक्षेप अनावश्यक व अस्वीकार्य है। गौरतलब है कि चीन अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताता है, जोकि पूर्णत: निराधार है। उसने अरुणाचल प्रदेश के कुछ गांवों का अपने तौर पर नामकरण भी किया हुआ है। खांडू के बयान से यह स्पष्ट व उचित संदेश दुनिया को जाता है कि भारत व चीन चूंकि कोई सीमा साझा करते ही नहीं, इसलिए चीन ने तिब्बत पर जबरन कब्जा करके ज़बरदस्ती का सीमा विवाद खड़ा किया हुआ है। 
चीन तिब्बत पर अपने नियंत्रण को समाप्त करे और उसके बाद नई दिल्ली व ल्हासा अपने देशों के बीच की सीमा को निर्धारित कर लेंगे। खांडू ने बीजिंग पर वहां वार किया है, जहां उसको सबसे ज्यादा दर्द होता है। खांडू ने चीन द्वारा यारलुंग त्संगपो नदी, जो अरुणाचल प्रदेश में आकर ब्रह्मपुत्र नदी बन जाती है, पर विशाल हाइड्रोइलेक्ट्रिक बांध बनाने के सिलसिले में भी गंभीर चिंता व्यक्त की है। यह संसार की सबसे बड़ी नदियों में से एक है। प्रस्तावित बांध की अनुमानित लागत 137 बिलियन डॉलर है और इससे 60 गीगावाट्स बिजली का उत्पादन होगा। इसका अर्थ यह है कि थ्री गोर्जेस डैम (चीन की यांग्तज़ी नदी पर बना यह बांध 22,250 मेगावाट बिजली का उत्पादन करता है जोकि दुनिया में सबसे ज्यादा है) से भी अढ़ाई गुना से अधिक बड़ा होगा। इस बांध का भारत पर बहुत गहरा असर पड़ेगा। खांडू ने इस बांध को अरुणाचल व पास के उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए ‘अस्तित्व’ का खतरा बताया है।   
    -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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