बिहार चुनावों की सक्रियता
विगत वर्ष महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन ‘महायुति’ को भारी जीत प्राप्त हुई थी। शरद पवार की राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी, शिवसेना व कांग्रेस पार्टी पर आधारित महा विकास अघाड़ी गठबंधन को हार का मुंह देखना पड़ा था। शिव सेना (उद्धव बाला साहेब ठाकरे) 20, कांग्रेस 16 और शरद पवार की राष्ट्रीय कांग्रेस को 41 सीटें मिली थीं। उसके बाद राहुल गांधी ने चुनावों में बड़ी धांधली होने का आरोप लगाया और चुनाव आयोग को भी इसके लिए निशाने पर लिया था परन्तु आखिर में यह बहस बयानबाज़ी बनकर रह गई थी।
इस वर्ष के अंत में देश के बड़े राज्य बिहार में चुनाव होने जा रहे हैं। जिसे लेकर अभी से सभी छोटी-बड़ी पार्टियों ने बड़ी सक्रियता दिखानी शुरू कर दी है। एक तरफ राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों का ‘महा-गठबंधन’ है, जिसका नेतृत्व मुख्य रूप से तेजस्वी यादव कर रहे हैं। दूसरी तरफ नितीश के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन है, जिसमें जनता दल (यू) के साथ भाजपा एक बड़ा पक्ष बनकर उभरी है। नितीश कुमार कुर्सी पर बने रहने के लिए पिछले दशक में अनेक बार अलग-अलग गठबंधनों में शामिल हुए हैं। कई तरह के रंग बदलने के कारण उनका प्रभाव पहले की भांति नहीं रहा। बिहार में लगभग 8 करोड़ मतदाता हैं। यहां की 243 विधानसभा सीटे हैं। इस बार लोक-जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के नेता चिराग पासवान, जो इस समय केन्द्रीय मंत्री हैं, भी पहले की तरह अपना नया राग अलाप रहे हैं, जिससे बिहार की राजनीति में शोर-शराबा और बढ़ने की सम्भावना बन गई है। पिछले लम्बे समय से चुनावों के दौरान वरिष्ठ समीक्षक बन कर उभरे प्रशांत किशोर भी इस बार बिहार में चुनाव लड़ने के लिए अपनी बनाई सुराज पार्टी को चुनावों में उतार रहे हैं। कभी बिहार की राजनीति पर लालू प्रसाद यादव छाये रहे थे, जिसके बाद नितीश कुमार इस राज्य के केन्द्र बिन्दू बन कर उभरे थे। चाहे इस बार भी ये दोनों राजनीतिज्ञ चुनाव मैदान में उतरेंगे, परन्तु लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल का मुख्य चेहरा तेजस्वी यादव को बनाया गया है। महाराष्ट्र के चुनाव जीतने के बाद भाजपा के लिए भी यह चुनाव बेहद महत्त्वपूर्ण है।
इसके लिए पिछले लम्बे समय से जहां प्रधानमंत्री बार-बार इस राज्य का दौरा कर रहे हैं, वहीं मुख्यमंत्री नितीश कुमार भी लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अनेक तरह की योजनाओं की घोषणा कर रहे हैं। युवाओं, महिलाओं और किसानों आदि के लिए उन्होंने 43 नई योजनाओं को स्वीकृति दी है। महिलाओं के लिए सरकारी नौकरियों में 35 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की गई है। खऱीफ की फसल की सिंचाई के लिए किसानों को 750 रुपए प्रति एकड़ डीज़ल देने की घोषणा की गई है। इसके लिए 100 करोड़ की राशि भी रख दी गई है। इन चुनावों में अब जो मामला गर्माया है, वह है वोटर सूचियों में सुधार करने का। चुनाव आयोग ने आगामी महीनों में बिहार में वोटर सूचियों में विशेष गहनता से संशोधन करने की सक्रियता आरम्भ की है, जिसकी विपक्षी पार्टियों द्वारा कड़ी आलोचना की जा रही है। इस संशोधन के लिए मतदाताओं के समक्ष कुछ ऐसी शर्तें रखी गई हैं, जिन्हें पूरा करना उनके लिए कठिन हो सकता है। इससे बड़ी संख्या में मतददाताओं का नाम सूचियों से काटे जाने की सम्भावना बन गई है। इसके विरोध में विपक्षी पार्टियों और अन्य संस्थाओं ने सुप्रीम कोर्ट तक भी सम्पर्क किया है। इस मुद्दे पर 9 जुलाई को बिहार बंद भी किया गया है। विपक्षी पार्टियां इस बात पर ज़ोर दे रही हैं कि मतदाताओं की सूची राशन कार्ड या आधारकार्ड के आधार पर ही बनाई जाए। जबकि चुनाव आयोग ने इसके लिए 11 और प्रमाण-पत्र जोड़ दिए हैं, जिनमें जन्म प्रमाण-पत्र, पासपोर्ट, दसवीं या उच्च शिक्षा संबंधी प्रमाण-पत्र, सरकार द्वारा जारी पहचान पत्र या पैंशन आडर, स्थायी निवासी होने संबंधी प्रमाण-पत्र, जंगल अधिकार संबंधी प्रमाण-पत्र, जाति संबंधी प्रमाण-पत्र, एन.आर.सी. प्रमाण-पत्र, पारिवारिक प्रमाण-पत्र, ज़मीनी मालिकाना दस्तावेज़ और 1987 से पहले का किसी सरकारी संस्थान का प्रमाण-पत्र आदि। इन्हें आम लोगों के लिए पूरा करना सम्भव नहीं हो सकता। चुनाव आयोग द्वारा इन सूचियों को 30 सितम्बर तक पूरी करने का लक्ष्य रखा गया है और इसके साथ उसने यह भी कहा है कि बिहार के बाद मतदाताओं के लिए ऐसी पहचान प्रक्रिया की योजना देश भर में शुरू की जाएगी। इस प्रक्रिया पर इसलिए आपत्ति है कि इससे करोड़ों लोगों के वोट अधिकार का उपयोग करने पर प्रतिबन्ध लग सकता है। विपक्षी पार्टियां चाहती हैं कि इसके लिए राशन कार्ड या आधारकार्ड को ही प्रमाण-पत्र बनाया जाए। आज आधारकार्ड का इस्तेमाल बैंकों से लेकर पासपोर्ट तक बनाने के लिए किया जाता है। इसी ही प्रक्रिया को सही और सहज माना जाता है। चुनाव आयोग या सरकार को यदि आधार कार्डों के जाली बने होने की आशंका है तो उसकी ओर से इसे त्रुटि रहित बनाने के लिए कड़े प्रबन्ध किए जाने चाहिएं, ताकि आधार कार्ड, जिसके लिए केन्द्र सरकार की लाखों करोड़ों की राशि बांटने का इस्तेमाल होता है, की विश्वसनीयता बरकरार रखी जा सके। नि:संदेह चुनाव आयोग को इस समय इस ज़रूरी पहलू को ध्यान में रखना होगा, ताकि विपक्षी पार्टियों द्वारा उठाई गई इस संबंधी आशंकाओं को दूर किया जा सके।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द