दर्जी से एक्टर बने थे स्वतंत्रता सेनानी ए.के. हंगल 

अवतार किशन हंगल जो ए.के. हंगल के नाम से विख्यात हुए, तो आपको याद ही होंगे और अगर नहीं तो ‘शोले’ के रहीम चाचा या ‘लगान’ के शंभू काका या ‘शौकीन; के एंडरसन या ‘नमक हराम’ के बिपिन लाल पांडे या ‘आंधी’ के बृंदा काका को याद कीजिये। इन कालजयी किरदारों को बुजुर्ग से दिखायी देने वाले ए.के. हंगल ने निभाया था। उनका अदाकारी ऐसी थी कि पर्दे पर वह जिस भी किरदार में होते हू-ब-हू वही लगते थे, इसलिए दर्शक उनसे कम और उनके द्वारा अदा किये गये किरदारों से अधिक जुड़ जाते थे। ‘शोले’ का डायलॉग ‘इतना सन्नाटा क्यों है भाई....’ इस तथ्य की पुख्ता दलील है कि आज भी सोशल मीडिया व अन्य जगहों पर इसका प्रयोग किया जाता है। हालांकि अधिकतर कलाकार बचपन में या 20-22 साल की उम्र में बड़े पर्दे पर प्रवेश करते हैं, लेकिन हंगल संभवत: इकलौते कलाकार हैं, जिन्होंने फिल्मों में डेब्यू 52 वर्ष की आयु में किया। बोमन ईरानी ने 44 साल की उम्र में डेब्यू किया था। बड़ी उम्र में पर्दे पर आने के बावजूद हंगल ने 250 से अधिक फिल्मों में काम किया और अपने करियर में वह अक्सर पिता, बड़े भाई या बुज़ुर्ग की भूमिका में नज़र आये और अपनी प्रभावी अदाकारी से उन्होंने दर्शकों का दिल जीत लिया।
क्या आप सोच सकते हैं कि एक्टर बनने से पहले हंगल दर्जी का काम करते थे। उनकी बायोग्राफी ‘लाइफ एंड टाइम्स ऑ़फ ए.के. हंगल’ के अनुसार उनके पिता के एक करीबी दोस्त के सुझाव पर हंगल ने पेशावर में एक टेलर से दर्जी का काम सीखा था और कुछ समय तक उन्होंने यह काम किया भी। देश विभाजन से पहले हंगल का जन्म 1 फरवरी, 1914 को सियालकोट में हुआ था। वामपंथी विचारों से प्रेरित हंगल में देश प्रेम कूट-कूटकर भरा हुआ था और इसलिए 1929 से 1947 तक वह एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में देश को आज़ादी दिलाने के लिए सक्रिय रहे व अनेक बार ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सलाखों के पीछे भेजा। कराची की जेल में तो वह तीन साल तक कैद रहे। देश विभाजन के दो साल बाद वह भारत आ गये और चूंकि उन्हें रंगमंच का भी शौक था इसलिए वह 1949 से 1965 तक इप्टा के नाटकों में विभिन्न भूमिकाएं निभाते रहे। जब वह 52 बरस के हुए तो 1966 में फिल्म ‘तीसरी कसम’ में उन्हें एक छोटी सी भूमिका ऑफर हुई और उनका फिल्मी करियर आरंभ हो गया। 
हंगल के लिए 1970 से 1990 तक का समय बहुत अच्छा रहा। उन्होंने अनेक यादगार फिल्मों जैसे हीर रांझा, नमक हराम, कोरा कागज़, बावर्ची आदि में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभायीं। राजेश खन्ना के साथ तो उन्होंने लगभग 16 फिल्मों में काम किया। आखिरी दिनों में उन्हें काम मिलना बंद हो गया था और वह ज़बरदस्त आर्थिक कठनाई में आ गये थे। एक इंटरव्यू के ज़रिये उन्होंने अपनी स्थिति बयान की और फिल्मों में काम मांगा। वह खुद्दार इतने थे कि बुढ़ापे में भी उन्हें दान नहीं काम चाहिए था। इसलिए उन्हें मुंबई में आयोजित एक फैशन शो में व्हीलचेयर पर रैंप वाक करने का अवसर दिया गया। उनकी अंतिम फिल्म पहेली थी, जिसे 8 माह घर में रहने के बाद उन्होंने की थी, खासकर एक्टिंग से प्रेम के कारण, जबकि इसके सात साल बाद आखिरी बार टीवी पर वह धारावाहिक ‘मधुबाला’ में दिखायी दिए थे। 
हंगल ने अपने लगभग चार दशक के फिल्मी करियर में 250 से अधिक फिल्मों में काम किया। उनकी आयु भले ही बढ़ती गई, लेकिन फिल्मों में काम करने की दीवानगी बरकरार रही। राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने 2006 में हंगल को पद्म भूषण अवार्ड से सम्मानित किया था। यह अजीब बात है कि स्वतंत्रता सेनानी होने व पद्म भूषण से सम्मानित होने के बावजूद हंगल अपने अंतिम वर्षों में आर्थिक तंगी से जूझते रहे, विशेषकर इसलिए कि उनके फोटोग्राफर बेटे विजय के पास फुल-टाइम जॉब नहीं था। कमर दर्द के कारण हंगल भी काम नहीं कर पा रहे थे और इलाज के लिए पैसा नहीं था। हंगल 26 अगस्त, 2012 को इस दुनिया को अलविदा कह गये। वह 98 वर्ष के थे। 
कश्मीरी पंडित परिवार में पिता पंडित हरि किशन हंगल व माता रागिया हांडू के घर में जन्मे हंगल का बचपन व जवानी पेशावर में बीती, जहां उन्होंने थिएटर में भी काम किया। उनका पारिवारिक घर रेती गेट में था। उनकी दो बहनें थीं- बिशन व किशन। उनकी शादी आगरा की मनोरमा दार से हुई थी। वह थिएटर ग्रुप श्री संगीत प्रिया मंडल के सदस्य थे। पिता के रिटायर होने के बाद उनका परिवार पेशावर से कराची शिफ्ट हो गया था। कम्युनिस्ट होने के नाते भी हंगल कराची की जेल में 1947 से 1949 तक बंद रहे और रिहा होने पर मुंबई आकर सेटल हो गये। यह देश की आज़ादी व विभाजन के बाद की बात है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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