गर्म हो गया है चुनावी अखाड़ा
हरियाणा में अलग-अलग पार्टियों के उम्मीदवारों द्वारा नामांकन दाखिल करने के साथ चुनाव मैदान पूरी तरह से गर्मा गया है। चुनावों के लिए लगभग तीन सप्ताह का समय शेष है। 5 अक्तूबर को मतदान होगा और 8 अक्तूबर को परिणाम सामने आ जाएंगे। भाजपा पिछले 10 वर्षों से प्रदेश का प्रशासन चला रही है। कुछ माह पहले ही उसने हालात को भांपते हुए राज्य का मुख्यमंत्री बदला है। इसके अलावा इंडियन नैशनल लोक दल और बसपा का गठबंधन और जननायक जनता पार्टी तथा आज़ाद समाज पार्टी का गठबंधन भी चुनाव मैदान में हैं। आम आदमी पार्टी भी अपनी हाज़िरी लगवाने के लिए कतार में है, परन्तु इस समय मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही दिखाई दे रहा है। नामांकन भरने से पहले इन दोनों ही पार्टियों के बड़ी संख्या में टिकट लेने के इच्छुक अपने-अपने स्तर पर यत्न करते रहे हैं, लेकिन दोनों पार्टियों द्वारा ही क्रमिक रूप से उम्मीदवारों की सूचियां जारी करने के बाद इन पार्टियों में बड़े स्तर पर ब़ागी सुर भी उठे हैं। टिकट के बहुत से इच्छुक नेताओं ने आज़ाद उम्मीदवारों के तौर पर भी अपने नामांकन पत्र दाखिल करवाए हैं। इसी दौरान आम आदमी पार्टी कांग्रेस के साथ समझौता करने के भी यत्न करती रही और आपसी लेन-देन में राज्य की 90 में से अंतत: 10 सीटें लेने के लिए तैयार हो गई थी, लेकिन प्रदेश के कांग्रेसी नेता इसके पक्ष में नहीं थे। प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता भूपिन्द्र सिंह हुड्डा ने तो हाईकमान के पास स्पष्ट रूप में ‘आप’ के साथ समझौता करने से इन्कार कर दिया था। उनके अनुसार इस पार्टी का राज्य में कोई बड़ा आधार नहीं है और पिछले कई चुनावों में इसको निराशाजनक पराजय ही मिलती रही है।
कांग्रेस और भाजपा ने अपने उम्मीदवारों का चुनाव बहुत सोच-समझ कर और लम्बे विचार-विमर्श के बाद किया है ताकि वहां के हर भाईचारे और हर बिरादरी को प्रतिनिधित्व दिया जा सके। कांग्रेस के साथ बातचीत टूटने के बाद आम आदमी पार्टी को यह उम्मीद ज़रूर थी कि दोनों बड़ी पार्टियों में से जिन उम्मीदवारों को टिकटें न मिलीं, वे ज़रूर ‘आप’ द्वारा उम्मीदवार बनने के लिए तैयार हो जाएंगे, लेकिन हैरानी इस बात की है कि इस मामले पर भी ‘आप’ को बहुत समर्थन नहीं मिला। इस पार्टी में शामिल होने की बजाय अधिकतर ने निर्दलीय उम्मीदवारों के रूप में चुनाव लड़ने को ही प्राथमिकता दी है। दोनों ही पार्टियों ने चुनाव प्रचार के लिए अपने-अपने स्टार प्रचारकों की सूचियां भी जारी कर दी हैं, ताकि वे चुनाव मैदान को गर्मा सकें। अब आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविन्द केजरीवाल भी ज़मानत पर बाहर आ गए हैं। आम आदमी पार्टी को यह उम्मीद अवश्य बंधी है कि शायद अपने चुनाव प्रचार से केजरीवाल पार्टी उम्मीदवारों में नई जान डाल सकेंगे, परन्तु ऐसा इसलिए सम्भव दिखाई नहीं देता, क्योंकि अभी हरियाणा में इस पार्टी का अपना कोई ठोस आधार नहीं बन सका। जिस प्रकार कि हमने पहले ज़िक्र किया है, पिछले कई चुनावों में उसके सभी उम्मीदवारों ने ज़मानतें ज़ब्त करवाई थीं और इससे बड़ी नमोशी यह कि बहुत बार इसे एक प्रतिशत से भी कम वोट मिलते रहे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस तथा भाजपा दोनों का ही वहां बड़ा जनाधार कायम है।
चाहे 10 वर्षों के सत्ता विरोधी रुझान के कारण भाजपा को कुछ मुहाज़ों पर नमोशी उठानी पड़ी है, क्योंकि इतने समय में बहुत-से ऐसे लोग भी होते हैं जिनकी उम्मीदों को बूर नहीं पड़ता और इसकी बजाय प्रशासन की प्रत्येक तरह की त्रुटियां व्यापक रूप में सामने आना शुरू हो जाती हैं, परन्तु इसके बावजूद भाजपा की ओर से इन चुनावों में तीसरी बार सरकार बनाने के लिए जी-तोड़ प्रयास किए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को प्रशासन चलाने के लिए चाहे लगभग दो माह का समय ही मिला है, परन्तु इस समय में वह लोगों में अपना अच्छा प्रभाव बनाने में बड़ी सीमा तक सफल हुए हैं। कांग्रेस के कैम्प में भुपिन्द्र सिंह हुड्डा बड़े नेता के रूप में पुन: उभरे हैं। टिकटों के वितरण में भी उनके प्रभाव को स्पष्ट रूप में महसूस किया जा रहा है। चाहे इस कारण पार्टी के कुछ वर्गों में असंतोष भी है, परन्तु इसके बावजूद अब इन दोनों पार्टियों का मुकाबला बेहद दिलचस्प दिखाई देने लगा है। नि:संदेह विगत दशकों में हरियाणा ने विकास के पक्ष से बड़े आयाम स्थापित किए हैं। अब कोई भी नई बनने वाली सरकार से यह उम्मीद की जाएगी कि वह पिछली सरकारों की भांति ही प्रदेश के विकास को तेज़ गति से जारी रखने में सहायक हो।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द