समुद्री जल में घटती ऑक्सीजन से मछलियों पर गहराता संकट

क्या आप यकीन करेंगे कि 1960 के मुकाबले आज खुले महासागर में 17 लाख वर्गमील से भी बड़ा एक ऐसा क्षेत्रफल है, जहां समुद्र के दूसरे हिस्सों के मुकाबले 4 से 5 प्रतिशत और कहीं कहीं तो 15 प्रतिशत तक ऑक्सीजन में कमी आ गई है। जी हां, यह ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र के बढ़ते तापमान और लगातार गहराते अम्लीकरण से इतर एक ऐसी समस्या है जिस पर आमतौर पर लोगों का ध्यान नहीं जाता है। मगर समुद्र में घटती ऑक्सीजन के इस चौंकाने वाली हकीकत ने दुनियाभर के इकोलॉजिस्टों और समुद्री जीव प्रजातियों के विशेषज्ञों के माथे पर गहरी चिंता ला दी है। नीदरलैंड के रेडबौड विश्वविद्यालय में इको-फिजियोलॉजिस्ट विल्को वर्बर्क कहते हैं, ‘यह इतना आश्चर्यजनक नहीं है, अगर समुद्र का पानी लगातार गर्म होगा, जो कि हम जानते हैं 70 डिग्री फारेनहाईट की चौंकाने वाली स्थिति तक पहुंच चुका है, ऐसे में गर्म होते समुद्र में ऑक्सीजन का कम होना स्वाभाविक है और जब समुद्र में ऑक्सीजन कम हो जाती है तो हम कैसे उम्मीद करते हैं कि मछलियां बिना परेशानी रह सकेंगी। आखिरकार मछलियों को भी सांस लेने की ज़रूरत पड़ती है। मछलियां भी दूसरे जानवरों की तरह सांस लिए बिना ज़िंदा नहीं रह सकतीं।’ समुद्र के पानी के बढ़ते तापमान और उसकी वजह से घटती ऑक्सीजन के कारण कुछ खास क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि दुनियाभर के महासागरों में 1960 से 2010 के बीच दो प्रतिशत ऑक्सीजन कम हो चुकी थी और वैज्ञानिकों का मानना है कि इस सदी के खत्म होते होते ऑक्सीजन की यह कमी बढ़कर 7 प्रतिशत हो जायेगी।
हालांकि दुनियाभर के समुद्रों में कुछ पैच अभी भी ऐसे हैं, जहां ऑक्सीजन की कमी 15 प्रतिशत तक हो गई है। मसलन पूर्वोत्तर प्रशांत के शीर्ष क्षेत्र में ऑक्सीजन 15 प्रतिशत से अधिक कम हो गई है। इससे इस पूरे क्षेत्र में 25 से 30 प्रतिशत मछलियां और दूसरी समुद्री प्रजातियां या तो यहां से पलायन कर गई हैं या फिर बड़ी तादाद में इनकी मौत हो गई है। आईपीसीसी की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार 1970 से 2010 तक विभिन्न महासागरों के कुछ खास क्षेत्रों में ऑक्सीजन की कमी होने के कारण यहां ऐसी बड़ी मछलियां नहीं पनप पा रहीं जो पहले बड़ी तादाद में होती थीं। इन दिनों इन खास क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर जेली फिश जैसी मछलियां बढ़ी हैं, जिन्हें कम ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ती है। आईपीसीसी की इस रिपोर्ट के मुताबिक इन विशेष क्षेत्रों में 3 से 8 प्रतिशत तक जेली फिश बढ़ी हैं, जो इस बात को साफ तौर पर इंगित करती है कि इन क्षेत्रों में समुद्र में घटती ऑक्सीजन के कारण सभी मछलियां या समुद्री जीव प्रजातियां यहां आसानी से जिंदा नहीं रह सकतीं।
ऐसा ही कुछ हाल दक्षिण-पूर्वी चीन के समुद्र तट पर भी देखा जा रहा है, जहां पिछले एक दशक से बॉम्बे डक नामक मछली की प्रजाति खूब फल फूल रही है। जबकि दूसरी मछलियां किसी हद तक गायब हो चुकी हैं। अजीबोगरीब नाम वाली यह बॉम्बे डक मछली भी जेली फिश जैसी बनावट की है और इसका एक खास खुला जबड़ा न सिर्फ इसे बाकी मछलियों से अलग करता है बल्कि यह बताता है कि अपनी इस प्रजातिक बनावट के कारण इसे बाकी मछलियों के मुताबिक काफी कम ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ती है और चूंकि लोगों को इसके खाने पर कोई विशेष फर्क नहीं पड़ रहा, तो लोग इससे खुश हैं, क्योंकि पिछले एक दशक में इस खास बॉम्बे डक नामक मछली की तादाद बहुत ज्यादा बढ़ी है, जिसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मछली पकड़ने वाले जहाज जहां पहले प्रतिघंटा बमुश्किल 40 से 50 पौंड मछली पकड़ पाते थे, वहीं इन दिनों प्रतिघंटे 440 पौंड तक मछलियां पकड़ते हैं, जो मात्रा एक दशक पहले के मुकाबले दस गुना से भी ज्यादा है और समुद्री जीव विशेषज्ञ इसे खौफनाक राक्षसी प्रवृत्ति कहते हैं।
ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के मत्स्य पालन शोधकर्ता डेनियल पॉली ने इस मात्रा में मछलियों के पकड़े जाने को क्रूरता कहा है। लेकिन इस क्रूरता से इतर इस मछली की इस इलाके में भारी वृद्धि का कारण भी बेहद खौफनाक है, क्योंकि इस क्षेत्र के समुद्री जल में ऑक्सीजन की मात्रा काफी ज्यादा कम हो गई है, जिससे ज्यादातर मछलियां तालमेल नहीं बिठा पायीं। ऐसे में वे या तो मर गईं या यहां से भागकर कहीं और चली गई हैं। जबकि बॉम्बे डक नाम मछली उन प्रजातियों में से एक है, जिसे बहुत कम ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ती है। अपनी शारीरिक बनावट के कारण यह पानी के बाहर हवा में मौजूद ऑक्सीजन का भी कुछ हद तक इस्तेमाल कर लेती है। कहने का मतलब यह है कि चीनी लोगों को भले बहुतायत में खाने को मिल रही बॉम्बे डक मछली के कारण वो खुश हों, लेकिन यह पूरी धरती के लिए एक निराशाजनक भविष्य की झलक है कि कैसे महासागरों में घटती ऑक्सीजन के कारण ज्यादातर जीव प्रजातियों को एक जगह से दूसरी जगह पलायन करना पड़ रहा है या मौत को गले लगाना पड़ रहा है। जाहिर है इससे इकोलॉजी में जबरदस्त असंतुलन पैदा होने की आशंका बढ़ गई है।
कुल मिलाकर समुद्र के पानी में घटती ऑक्सीजन उतनी ही बड़ी समस्या है, जितनी ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ते तापमान से पूरी दुनिया की जलवायु उलट-पुलट होने के दौर से गुजर रही है और हर जगह भयानक बाढ़, बेतरतीब बारिश और भयानक गर्मी के कारण पड़ने वाले सूखे से दिन पर दिन धरती में जीवन मुश्किल होता जा रहा है। वैज्ञानिकों की चेतावनी है कि भविष्य में हमारे महासागर गर्म होंगे और ऑक्सीजन से वंचित होंगे, जिस कारण हर जगह बहुत कम मात्रा में बहुत बौनी मछलियां ही देखने को मिलेंगी। करेले में नीम वाली स्थिति यह होगी कि ग्रीन हाउस गैसें पैदा करने वाले बैक्टीरिया भी बड़ी मात्रा में पनपेंगे। जिस कारण कम ऑक्सीजन वाले पानी से ठीक ऑक्सीजन की मात्रा वाले समुद्र की तरफ समुद्री जीव प्रजातियों का पलायन होगा और ऊष्ण कटिबंधीय क्षेत्र मछलियों से खाली हो जाएंगे। जबकि ध्रुवों  पर पहले से ही रहने वाली बड़ी मछलियां विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर