पब्लिक प्लेस पर बच्चा अगर ज़िद करे

आपके आसपास का मार्किट प्लेस हो या मॉल या फिर कोई और दूसरी जगह। शॉपिंग करने के दौरान अकसर बच्चे अपने मां-बाप से जिद करते दिखते हैं। वह किसी ऐसी अनावश्यक चीज खरीदने की मांग अपने पैरेंट्स से करते हैं, जो उसके किसी इस्तेमाल की नहीं होती, बस उन्हें यूं ही अच्छी लग जाती है। कभी-कभी वह अपने लिए कोई ड्रेस, खिलौना या अपनी ज़रूरत की कोई ऐसी चीज खरीदने पर अड़ जाते हैं, जो उनके पैरेंट्स के पसंद की नहीं होती और वह इसे खरीदना नहीं चाहते। अपनी बात मनवाने के लिए बच्चे अपने आसपास की भीड़ की परवाह किए बगैर रोने और चिल्लाने लगते हैं, बुली हो जाते हैं। उस चीज को खरीदने के लिए अड़ जाते हैं। उनके इस व्यवहार से पैरेंट्स को बहुत शर्मिंदगी होती है। दूसरों के सामने शर्मिंदा होने से बचने के लिए वह उसकी बात मानकर उस चीज को खरीद लेते हैं।
अगर आपका बच्चा भी ऐसे ही करता है, तो उसकी हर जायज, नाजायज़ मांग को पूरी करने की गलती न करें। दूसरों के सामने उसका रोना धोना देखकर दबाव में आकर उसकी जिद पूरी करना, उसकी हर मांग मान लेना, दरअसल बच्चे के विकास के लिए ही नकारात्मक साबित होता है। अगर एक बार आपने उसकी जिद पूरी कर दी तो उसे अपनी बात मनवाने के लिए हर बार यही तरीका अपनाने का एक रास्ता मिल जाता है। अगर आपको लगता है कि वह जो बात मनवाना चाह रहा है और आप उसे पहली बार मना कर देते हैं तो अपनी बात पर कायम रहें। उसकी जिद से पीछा छुड़ाने के लिए और दूसरों के सामने आपको शर्मिंदगी महसूस न हो, उसके लिए अपनी न को हां में न बदलें। हालांकि उस समय बच्चे को समझाना बेकार होता है कि फलां चीज को खरीदने से आपको और उसे नुकसान है। लेकिन उस वक्त उसे उसके हाल पर छोड़ देना चाहिए, क्योंकि अकसर बच्चे बड़ों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए भी ऐसा व्यवहार करते हैं। ऐसी स्थिति में अगर आप उसे इग्नोर करेंगे तो वह थोड़ी देर बाद अपनी मांग को भूल जाते हैं। इसके बाद मौका मिलने पर उसे उसका मनपसंद सामान न खरीदने की सही वजह प्यार से समझाएं। कई बार बच्चे इसे दिल पर ले लेते हैं और अपने पैरेंट्स को ही इमोशनली ब्लैकमेल करते हैं। आप उसकी बातों में न आएं। अगर वह अपने किसी सामान का नुकसान करते हैं और तुरंत नया खरीदने की मांग करते हैं तो उसे तुरंत नई चीज न दिलाएं ताकि उसे अपनी गलती का एहसास हो और वह उसे सुधारने की कोशिश करे। 
परिवार में सभी को एकमत होना चाहिए कि अगर दादा-दादी, नाना-नानी, मम्मी पापा या कोई और सदस्य बच्चे को डांट रहा हो तो बच्चे के प्रति नर्मी का रूख अख्तियार करने के लिए या उसके साथ प्यार जताने के लिए बीच में न बोलें। क्योंकि इस तरह बच्चा भी कंफ्यूज हो जाता है कि उसको किसकी बात माननी है। ऐसे में बच्चे को यह मैसेज जाता है कि जिद करके पैरेंट्स से कोई भी बात मनवायी जा सकती है। बच्चों को अनुशासित बनाने के लिए उनकी इच्छाओं पर नियंत्रण करना भी ज़रूरी है। 
किसी भी चीज के टूट जाने पर उसे तुरंत डस्टबिन में डालकर नई चीज खरीद देना भी उसे खर्चीला बनाता है। अगर उसकी कोई चीज़ या खिलौना टूट जाता है तो सबसे पहले उसे रिपेयर कराने की सोचें ताकि उसे चीजों की अहमियत पता चले और पैसे का महत्व समझ में आए। अपनी चीजें स्वयं संभालकर रखें और उनमें शुरु से चीजों को संभालकर रखने की आदतें विकसित करें। उसे इस बात का एहसास न दिलाएं कि आपके पास बहुत पैसे हैं और उसके सामने आप पैसे को कोई महत्व नहीं देते। इससे वह कभी पैसे का महत्व ही नहीं समझ पायेगा। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर