सुरक्षा एवं सम्मान के अभाव में अधूरा है महिला सशक्तिकरण 

महिलाओं के प्रति भिन्न-भिन्न प्रकार के अपराध लगातार बढ़ते जा रहे हैं। लंबे समय से दुष्कर्म, सामूहिक दुष्कर्म, हत्या और निर्मम हत्या की घटनाएं निरन्तर बढ़ती जा रही हैं। वारदात को अंजाम देने वाले बेखौफ हैं और कई जगह तो कानून व्यवस्था असहाय दिखाई दे रही है। हाल ही में बंगाल के आई.जी. कर अस्पताल में प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और निर्मम हत्या से देश में रोष व चिंता व्याप्त हो गई। बंगाल महिला अपराध के आंकड़ों में शिखर पर है जबकि वहां की मुख्यमंत्री स्वयं एक महिला है।
महिला शक्ति राष्ट्र शक्ति है, इसलिए महिलाओं का सशक्तिकरण राष्ट्र का सशक्तिकरण है। किंतु सुरक्षा एवं सम्मान के अभाव में महिला सशक्तिकरण अधूरा है। महिलाओं के प्रति यौन अपराध के मामले निरंतर बढ़ते जा रहे हैं। विडम्बना यह है कि वे न तो अपने घर में सुरक्षित हैं और न ही कार्यस्थल पर। समाज में महिलाओं के प्रति अपराध की मनोवृत्ति लगातार बढ़ रही है। देश का संविधान बिना किसी लिंग भेद के सभी को सम्मानजनक जीवन के समान अवसर देता है तो फिर यह अधिकार महिलाओं से क्यों छीना जा रहा है? हाल ही में बंगाल के कोलकाता के आर.जी. कर अस्पताल में प्रशिक्षु महिला डॉक्टर से कार्यस्थल पर दुष्कर्म एवं हत्या की घटना ने महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के मुद्दे को उजागर किया है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दुष्कर्म के साथ-साथ क्रूरता की बात भी सामने आई।
 कोलकाता हाईकोर्ट ने अस्पताल व पुलिस की भूमिका से असंतुष्ट होकर मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया। इसके कुछ दिन बाद ही मामले की गंभीरता को देखते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया। विचारणीय यह भी है कि वह महिला कितना संघर्ष और कड़ी मेहनत करने के बाद इस मुकाम पर पहुंची होगी।  विगत दिनों से बंगाल के ही संदेशखाली एवं अन्य स्थानों से महिलाओं के साथ दुष्कर्म व अपराध की घटनाओं के समाचार निरन्तर आए। देश भर में दुष्कर्म की बढ़ती घटनाएं कहीं न कहीं कानून व्यवस्था की ढिलाई का भी परिणाम हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश के अयोध्या से नाबालिग किशोरी से दुष्कर्म की घटनाएं मैनपुरी में एक युवक की छेड़खानी से क्षुब्ध युवती द्वारा आत्महत्या का मामला, बरेली में युवती के अपहरण का मामला, राजस्थान के जैसलमेर से नाबालिग को प्रताड़ित करने का मामला, उत्तराखंड के देहरादून में किशोरी से बस में सामूहिक दुष्कर्म का मामला, हरिद्वार के बहादराबाद में एक रक्तदान शिविर के दौरान महिला चिकित्सक से छेड़छाड़ का मामला, बंगाल के सिलीगुड़ी में नाबालिग लड़की से यौन शोषण का मामला, मध्य प्रदेश के झाबुआ में समाज सेविका के यौन शोषण का मामला, बिहार के मुजफ्फरपुर में किशोरी से छेड़छाड़ और हत्या का मामला, महाराष्ट्र के सायन अस्पताल में महिला डॉक्टर पर हमला एवं दुर्व्यवहार और महाराष्ट्र के ठाणे जिला स्थित बदलापुर के एक स्कूल में दो बच्चियों के यौन शोषण का मामला आदि घटनाएं सीधे-सीधे बेटियों और महिलाओं की सुरक्षा व सम्मान की स्थिति को उजागर करती हैं। 
क्या लगातार बढ़ रही इस प्रकार की घटनाएं भारत की छवि को धूमिल नहीं कर रही हैं? भारतीय चिंतन तो पर स्त्री को मातृवत मान्यता और सम्मान देता रहा है फिर आज हमारे समाज को क्या हो गया है? कुछ समय पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा संसद में लापता महिलाओं के आंकड़े पेश किए गए। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019 से 2021 के बीच 18 साल से अधिक उम्र की 10,61,648 महिलाएं व उससे कम उम्र की 2,51,430 लड़कियां लापता हुई हैं। यह आंकड़ा राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो द्वारा संकलित किया गया है। अकेले राजधानी दिल्ली से 61,054 महिलाएं और 22,919 लड़कियों के लापता होने का आंकड़ा है। ये महिलाएं कहां गई, क्या ये आंकड़े केंद्र और राज्यों के लिए चिंता के विषय नहीं होने चाहिए? ह्यूमन राइट्स वॉच नामक संस्था ने एक सैंपल सर्वे के आधार पर यह बताया है कि भारतवर्ष में हर साल लगभग 7200 नाबालिग लड़कियां दुष्कर्म की शिकार होती हैं। साथ ही इन्हें पुलिस से दुर्व्यवहार और अपमान भी सहना पड़ता है। जीवनभर की पीड़ा और मानसिक कष्ट एक भिन्न विषय है। 
अनेक मामलों में यह भी सामने आया है कि प्रतिशोध और अपमान के डर से कई पीड़िताएं रिपोर्ट दर्ज नहीं करतीं। महिलाओं के प्रति अपराध एवं दुष्कर्म की घटनाओं में राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं बिहार सबसे ऊपर हैं। गौरतलब है कि घरेलू हिंसा, दहेज, बाल विवाह, लव जिहाद जैसे अनेक मामलों में भी महिलाएं असुरक्षित होने के साथ-साथ उत्पीड़न झेलती हैं। चिंता का विषय यह भी है कि देश की विधानसभाओं एवं संसद में बैठने वाले अनेक नेता भी महिला उत्पीड़न के दोषी हैं। 
भारतीय दंड संहिता में यौन अपराधों के खिलाफ रोकथाम के प्रविधान हैं। आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम-2013 और फिर यौन अपराधों की रोकथाम हेतु आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम-2018 इस दिशा में उठाए गए महत्वपूर्ण कदम हैं। अधिनियम 2018 महिलाओं के प्रति यौन अपराधों की रोकथाम हेतु समयबद्ध जांच, शीघ्र व त्वरित न्याय पर आधारित है जिसमें 12 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों के साथ दुष्कर्म के लिए मृत्युदंड सहित कठोर दंडात्मक प्रविधानों की बात कही गई है। इस अधिनियम में मामले की जांच और सुनवाई दो महीने में पूरा करने का आदेश भी दिया गया है, लेकिन व्यवहार में स्थिति बिलकुल भिन्न दिखाई देती है। (युवराज)