स्थानीय निकाय चुनावों के प्रति सरकार की बेरुखी 

पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा पंजाब की सरकार को लगाई गई तीव्र फिटकार के बाद प्रदेश में चिरकाल से अधर में लटकता चला आ रहा स्थानीय निकाय की विभिन्न इकाइयों के चुनाव का मुद्दा एक बार फिर उभर कर सामने आ गया है। पंजाब में एक ओर जहां नगर निगमों एवं नगर परिषदों के होने वाले चुनाव विगत वर्ष से सरकार की घोषणा की बाट जोह रहे हैं, वहीं पंचायती चुनाव भी इतनी ही अवधि से होने/न होने की राह निहार रहे हैं। उच्च न्यायालय की पीठ द्वारा कई बार पहले भी किया जा चुका यह सवाल आज भी अनुत्तरित है कि नगर निगमों एवं नगर परिषद इकाइयों का कार्यकाल खत्म हो जाने के बावजूद इनके नये चुनाव कराये जाने हेतु नई व्यवस्था क्यों नहीं की गई। अदालत का यह निर्देश भी सरकार की नीति और नीयत को कटघरे में खड़ा करता है, कि सरकार बताये कि इन चुनावों को निकट भविष्य में कराने हेतु उसकी क्या योजना है। अदालत की पीठ द्वारा सरकार को इस हेतु 23 सितम्बर तक का अल्टीमेटम दिये जाने से यह तो प्रकट होता है कि सरकार को इस हेतु अपनी कुछ न कुछ सक्रियता का प्रदर्शन तो अवश्य करना पड़ेगा, किन्तु पड़ोसी राज्य हरियाणा में अगले मास होने वाले विधानसभा चुनाव और इस हेतु पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के बहाने, पंजाब सरकार की संलिप्तता के दृष्टिगत निकट भविष्य में पंजाब की स्थानीय निकाय इकाइयों के चुनाव मुकम्मल करा पाना असम्भव जैसा कार्य प्रतीत होता है।
पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय में इस संबंध में दायर एक याचिका के अनुसार प्रदेश के पांच नगर निगमों और 42 नगर परिषदों के चुनाव विगत एक से दो वर्ष तक के समय से लम्बित चले आ रहे हैं। इस कारण प्राय: पूरे पंजाब के शहरों और कस्बों में विकास के तमाम कार्य ठप्प पड़े हैं। शहरों में सफाई संबंधी कोई फैसला न हो पाने के कारण कूड़े के ढेर जहां-तहां पहाड़ बनते जा रहे हैं। छोटे से बड़ा कोई भी निर्णय न हो पाने के कारण स्ट्रीट रोशनी की बड़ी गम्भीर समस्या दरपेश है। इस कारण आपराधिक घटनाओं में वृद्धि होना भी बहुत स्वाभाविक-सी बात हो गई है।
विगत वर्ष प्रथम अगस्त को जारी एक अधिसूचना के मुताबिक प्रथम नवम्बर को नगर परिषदों के चुनाव कराने की घोषणा की गई थी, किन्तु इस घोषणा का क्या हश्र हुआ, यह आज तक किसी को पता नहीं चल सका। इसके बाद सरकार को कानूनी नोटिस भी भेजा गया, किन्तु सरकार इस धरातल भी अदालत में गोल-मोल जवाब देकर कन्नी काट गई। इसी प्रकार पंजाब के जालन्धर, अमृतसर, लुधियाना, पटियाला एवं फगवाड़ा नगर निगमों के विगत वर्ष जनवरी मास में होने वाले चुनाव भी बार-बार की घोषणाओं एवं आश्वासनों के बावजूद सरकार ने अभी तक नहीं करवाये हैं जबकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 249-यू और पंजाब नगर निगम की धारा-6 के अनुसार इन निकायों की अवधि समाप्त हो जाने से पूर्व इनके नये चुनाव करा लेना आवश्यक होता है। इस प्रकार भगवंत मान सरकार ने एक ओर जहां प्रदेश को विकास कार्यों से दूर कर रखा है, वहीं प्रदेश के लोगों को अपने प्रतिनिधियों को चुनने के उनके लोकतांत्रिक अधिकार से भी वंचित किया हुआ है। 
प्रदेश में पंचायती चुनाव न कराये जाने की ज़मीनी स्थिति भी ऐसी ही है। प्रदेश की कुल 13,241 पंचायतों के पिछले चुनाव दिसम्बर 2018 में हुए थे। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने पर बिना वजह पंचायतों को समय-पूर्व भंग कर दिया गया, किन्तु अदालती फैसले से पहले ही सरकार ने स्वयं ही अपना फैसला वापिस लेकर इन पंचायतों को पूर्व स्थिति में बहाल कर दिया। अब स्थिति यह है कि इन पंचायतों की निर्धारित अवधि समाप्त होने के एक वर्ष बाद तक भी इनके नये चुनाव नहीं हो सके। इस कारण जहां प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में भी विकास कार्य रुके पड़े हैं, वहीं संविधान के अनुसार पंचायती स्तर पर भी लोग मतदान के अपने मौलिक लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित किये जा रहे हैं। इस प्रकार यह सरकार लोकतंत्र और संविधान, दोनों का अपमान और तिरस्कार करने पर आमादा हो गई प्रतीत होती है।
हम समझते हैं कि नि:संदेह प्रदेश की भगवंत मान सरकार स्थानीय निकाय इकाइयों के चुनाव इतनी लम्बी अवधि तक लटकाये रख कर स्वयं ही अपने अदृश्य जाल में फंस गई है। उच्च अदालत द्वारा दिये गये अल्टीमेटम के अनुसार यदि वह कोई सार्थक फैसला नहीं लेती, तो अदालत इसे लेकर कोई कड़ा रवैया अपना सकती है। पहले लोकसभा चुनाव अवरोधक बने थे, अब हरियाणा के चुनाव विलेन की भूमिका निभा रहे हैं। इस बीच सरकार की अपनी उम्र की मियाद भी समय की बंद मुट्ठी से रेत की भांति सरकती जा रही है। गांवों और शहरों में विकास कार्यों के न होने का असर सरकार की बदनामी के रूप में सामने आ रहा है। इससे स्थानीय निकाय चुनावों में उसकी अपनी सम्भावनाएं भी प्रभावित होंगी। हम समझते हैं कि नि:संदेह इन चुनावों की सम्पन्नता में जितनी देरी होती जाएगी, ‘आप’ की अपनी सम्भावनाओं पर उतना ही विपरीत प्रभाव पड़ता जाएगा। तथापि, अदालत की सख्ती के बाद, भगवंत मान सरकार को अब कोई न कोई फैसला तो अवश्य करना पड़ेगा। यह सरकार ऐसा कोई फैसला कब करती है, यह आने वाले दिनों में प्रकट हो सकता है।