गेहूं की बिजाई को प्रभावित करेगी डी.ए.पी. खाद ?
गेहूं तथा आलू की बिजाई अभी आगामी माह अक्तूबर में शुरू होनी है। पंजाब में डायमोनियम फास्फेट (डी.ए.पी.) की भारी कमी महसूस की जा रही है। बड़े तथा समृद्ध किसान अपनी ज़रूरत को पूरा करने के लिए अभी से ही डी.ए.पी. मंडी से खरीदने के लिए भाग-दौड़ कर रहे हैं, परन्तु उनमें से अधिकतर को यह उपलब्ध नहीं हो रहा। हाल ही में कई स्थानों पर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा डी.ए.पी. के लिए गए नमूने फेल हो गए और कम्पनियों को उनके द्वारा सप्लाई किया गया डी.ए.पी. जो नहीं बिका, वापिस उठाने के लिए कह दिया था और दो कम्पनियों के लाइसैंस भी रद्द कर दिए गए थे, इससे खाद की और कमी हो गई। गेहूं की बिजाई 35 लाख हैक्टेयर से अधिक रकबे पर की जानी है। चाहे पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (पी.ए..यू.) 55 किलो (एक थैला तथा पांच किलो) डी.ए.पी. प्रति एकड़ गेहूं की बिजाई के समय डालने की सिफारिश करती है, परन्तु किसान तीन-तीन, चार-चार थैले डाल रहे हैं, जिस कारण सरकार द्वारा अनुमानित की गई डी.ए.पी. की खपत में और ज़्यादा वृद्धि हो जाती है और अगले साल इस खाद की कमी होने पर हाहाकार मच जाती है। राज्य में 5.5 लाख मीट्रिक टन डी.ए.पी. रबी की फसल के लिए आवश्यक है। अब तक तो उपलब्धता बहुत कम है। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के डायरैक्टर डा. जसवंत सिंह कहते हैं कि डी.ए.पी. की कोई कमी नहीं और न ही होने दी जाएगी, लगातार रेक आ रहे हैं। एग्रो-इनपुट्स डीलर्स एसोसिएशन के सचिव धर्म बांसल के अनुसार आम डीलरों के पास मंडी में डी.ए.पी. की उपलब्धता नहीं है। कन्सोर्टियम ऑफ इंडियन फार्मज़र् एसोसिएशन के अध्यक्ष सतनाम सिंह बहिरू के अनुसार डी.ए.पी. की सप्लाई न होने के कारण रबी में गम्भीर संकट होने की आशंका है। इसकी सहकारी सोसायटियों के पास भी भारी कमी है।
मुख्यमंत्री ने केन्द्र के उर्वरक मंत्री जगत प्रकाश नड्डा को पत्र लिखा है कि पंजाब केन्द्रीय गेहूं भण्डार में 31 प्रतिशत तक गेहूं सप्लाई करता है। इसके योगदान के दृष्टिगत 5.50 लाख मीट्रिक टन डी.ए.पी. राज्य में सप्लाई किया जाए। इस समय 5.1 लाख मीट्रिक टन डी.ए.पी. ज़रूरत से कम है। इसके इस्तेमाल के बिना गेहूं की उत्पादकता प्रभावित होती है। केन्द द्वारा इसके विकल्प सिंगल सुपरफास्फेट, एन.पी.के. 12:32:16, 16:16:16, तथा 20:20:11 आदि इस्तेमाल करने के लिए कहा जा रहा है, परन्तु ये विकल्प किसानों की पसंद नहीं, क्योंकि ये विकल्प बहुत कम किसानों ने इस्तेमाल किए हैं, जिनके अनुसार इनके परिणाम डी.ए.पी. के मुकाबले उत्पादन के पक्ष से ठीक नहीं आते। नैनो डी.ए.पी., जो इंडियन फार्मज़र् फर्टीलाइज़र कोऑप्रेटिव (इफको) द्वारा गत वर्ष ही मंडी में लाया गया है, पंजाब के किसानों ने इसका इस्तेमाल करने में गुरेज़ किया है। एग्रो-इनपुट्स डीलर्स के धर्म बांसल का कहना है कि नैनो डी.ए.पी. की कोई खास मात्रा भी पंजाब में आकर अभी तक नहीं बिकी। पी.ए.यू. द्वारा की गई आज़माइश तथा तजुर्बे भी दर्शाते हैं कि डी.ए.पी. के स्थान पर नैनो डी.ए.पी. इस्तेमाल करने से उत्पादन में कमी आती है। भारत सरकार के अनुसार नैनो डी.ए.पी. फिलहाल डी.ए.पी. का 25 प्रतिशत ही इस्तेमाल किया जाए, परन्तु पंजाब के किसानों ने इसके लिए भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। किसान नेताओं के अनुसार फिलहाल नैनो डी.ए.पी. या अन्य कोई भी इसका विकल्प उत्पादन के पक्ष से डी.ए.पी. का मुकाबला नहीं करता।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी डी.ए.पी. की उपलब्धता संबंधी हालत अच्छी नहीं। मंडी में डी.ए.पी. की कीमत बढ़ चुकी है। कम्पनियों को प्रति बैग डी.ए.पी. जो 1350 रुपये की निर्धारित हुई कीमत पर दिया जा रहा है, उससे अधिक कीमत पर पड़ता है। कम्पनियां इस घाटे को पूरा करने के लिए डीलरों को डी.ए.पी. के साथ इसके एन.पी.के. विकल्प तथा अन्य दवाइयां, वस्तुएं आदि लेने के लिए मजबूर करती हैं और जबरदस्ती देती हैं। इसी प्रकार डीलर किसानों को डी.ए.पी. देते समय दूसरे विकल्प या दवाइयां लेने को कह देते हैं। इसका किसानों द्वारा विरोध किया जाता है। अब तो कोऑप्रेटिव सोसायटियां भी किसानों को यह विकल्प देने के लिए मजबूर हो गई हैं, क्योंकि केन्द्र सरकार के निर्देश अनुसार मार्कफैड द्वारा उन्हें ऐसा करने के लिए कहा गया है।
यदि डी.ए.पी. की कमी को नियंत्रित न किया गया और केन्द्र ने पंजाब सरकार द्वारा की गई मांग को पूरा न किया तो इससे गेहूं की बिजाई प्रभावित होगी। कृषि विभिन्नता पिछड़ जाएगी। किसानों की अर्थिक स्थिति और खराब होगी और देश को गेहूं की सप्लाई कम होगी।