भारत की छवि चमकाने का अवसर है ब्रिक्स शिखर सम्मेलन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने 6 और 7 जुलाई को ब्राजील के रियो डीजेनेरियो में होने वाली ब्रिक्स की बैठक में वैश्विक दक्षिण के हितों के रक्षक के रूप में भारत की छवि को बेहतर बनाने का कठिन काम है। इस बैठक में वे भाग लेंगे। 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की मेज़बानी ब्राज़ील करेगा और इसका मुख्य विषय ‘अधिक समावेशी और सतत शासन के लिए वैश्विक दक्षिण सहयोग को मज़बूत करना’ होगा। इस व्यापक विषय के अलावा, चर्चाएं आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक लड़ाई और गाज़ा में इज़रायली नरसंहार से संबंधित होंगी, जिसकी ब्रिक्स के अधिकांश सदस्यों ने कड़ी निंदा की है।
शुरुआत में ब्राज़ील, रूसी संघ, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका से मिलकर बने इस गठबंधन का हाल ही में विस्तार हुआ है। विस्तारित हुए देशों में अब मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) भी शामिल हो गये हैं। आने वाले शिखर सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शीजिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन शामिल नहीं होंगे। इस तरह भारतीय प्रधानमंत्री दक्षिण अफ्रीका व ब्राज़ील के राष्ट्रपतियों के अलावा एक प्रमुख शख्सियत होंगे।
ब्राज़ील की अध्यक्षता दो प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करेगी- वैश्विक दक्षिण सहयोगय और सामाजिक, आर्थिक व पर्यावरणीय विकास के लिए ब्रिक्स की भागीदारी। ब्राज़ील छह मुख्य क्षेत्रों - वैश्विक स्वास्थ्य सहयोग, व्यापार, निवेश और वित्त पर भी ध्यान केंद्रित करने का प्रस्ताव करता है। जलवायु परिवर्तन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता शासन, बहुपक्षीय शांति और सुरक्षा वास्तुकला और संस्थागत विकास भी प्रमुख मुद्दे होंगे।
भारत के लिए विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए शिखर सम्मेलन में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ब्रिक्स सदस्यों को आतंकवाद पर भारतीय दृष्टिकोण और पाकिस्तान की भूमिका के बारे में देश के आकलन से राजी किया जाये। पाकिस्तान ब्रिक्स का सदस्य नहीं है और चीनी राष्ट्रपति की शिखर सम्मेलन में बड़ी उपस्थिति नहीं होगी। इसलिए नरेन्द्र मोदी वैश्विक दक्षिण देशों के बीच पाकिस्तान द्वारा बनायी गयी पीड़ित की धारणा को दूर करने के लिए कुछ उचित काम कर सकते हैं। चीन में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक के रक्षा मंत्रियों के हालिया सम्मेलन में, भारत को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा क्योंकि संयुक्त घोषणा में पहलगाम का कोई संदर्भ नहीं था जबकि बलूचिस्तान को आतंकवादी कार्रवाई के मामले के रूप में उल्लेख किया गया था। दस एससीओ सदस्यों में से नौ, जिनमें चीन, रूस व पाकिस्तान शामिल थे, ने भारत की अनदेखी करते हुए उस घोषणा का समर्थन किया। हालांकि भारत ने उस पर हस्ताक्षर नहीं किये और इसे जारी नहीं किया जा सका, लेकिन एससीओ बैठक में भारत के अलग-थलग पड़ने से ऑपरेशन सिंदूर, जो 10 मई को युद्धविराम में समाप्त हुआ था, के बाद से विदेशों में भारत के कूटनीतिक प्रयासों की विफलता का पता चला।
हालांकि भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारी ने कहा है कि ब्राज़ील शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स घोषणापत्र आतंकवाद पर भारत की स्थिति को प्रतिबिंबित करेगा, लेकिन इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता क्योंकि चीनी वरिष्ठ मंत्री अभी भी बैठक में भाग लेंगे और अधिकांश ब्रिक्स सदस्य मोदी के तीन सूत्री सिद्धांत से सहमत नहीं हैं। भारतीय अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए बहुत सारी तैयारियां करनी होंगी कि इस बार ब्राज़ील में ऐसी कोई शर्मिंदगी न हो जैसी पिछले महीने चीन में एससीओ रक्षा मंत्रियों की बैठक के दौरान हुई थी। घोषणापत्र का पर्यवेक्षण मेजबान ब्राजील के राष्ट्रपति लूला करेंगे। इसलिए संयुक्त घोषणापत्र में आतंकवाद पर भारत के विचारों को शामिल करने के लिए राष्ट्रपति लूला के साथ नरेंद्र मोदी के व्यक्तिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता होगी।
वास्तविकता यह है कि नरेंद्र मोदी ने ब्रिक्स सदस्यों की नज़र में वैश्विक दक्षिण के लिए लड़ने वाले के रूप में अपनी व्यक्तिगत छवि खो दी है। पिछले तीन वर्षों में एसामान्य कारणों से वैश्विक दक्षिण में भारत का अलगाव बढ़ गया है क्योंकि भारतीय प्रधानमंत्री ब्रिक्स, एससीओ और यहां तक कि जी20 के बजाय क्वाड में अधिक रुचि ले रहे हैं। क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक वाशिंगटन में हुई जिसमें भारतीय विदेश मंत्री डा. एस. जयशंकर ने भाग लिया। इसके बाद इस साल के अंत में क्वाड शिखर सम्मेलन होगा, संभवत: नई दिल्ली में। अगर ऐसा होता है तो राष्ट्रपति ट्रम्प इसमें भाग लेंगे। इस बैठक की सफलता के लिए पीएमओ और विदेश मंत्रालय दोनों ही काम में व्यस्त रहेंगे।
जुलाई में होने वाली ब्रिक्स की यह बैठक भारतीय प्रधानमंत्री के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत ब्रिक्स की अगली अध्यक्षता संभालेगा, जिसका मतलब है कि 18वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन भारत में होगा। इस शिखर सम्मेलन में भारत की गहरी भागीदारी और वैश्विक दक्षिण के हितों को साझा करने से ब्रिक्स सदस्यों और सहयोगियों में यह विश्वास पैदा होगा कि भारत पर वैश्विक दक्षिण के प्रमुख नेताओं में से एक होने का भरोसा किया जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास इस बार भारत के विशिष्ट हितों के मुद्दों का ध्यान रखते हुए वैश्विक दक्षिण के साझा हितों को पहचानने का सुनहरा अवसर है।
ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला के निमंत्रण पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शिखर सम्मेलन के बाद आधिकारिक यात्रा पर ब्राजील भी जा रहे हैं। इससे ब्रिक्स के सदस्यों और सहयोगियों में यह विश्वास पैदा होगा कि भारत वैश्विक दक्षिण के प्रमुख नेताओं में से एक है। इससे दोनों बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच राजनीतिक और आर्थिक संबंधों को और मजबूत करने का अवसर मिलेगा।
दोनों देशों के बीच सहयोग के बहुत सारे अवसर हैं, जिनका अभी तक दोहन नहीं हुआ है। कृषि, नवीकरणीय ऊर्जा और रक्षा सहयोग के क्षेत्रों में समझौतों पर हस्ताक्षर होने की संभावना है। भारत और ब्राजील आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के अनुप्रयोग में सहयोग कर सकते हैं, जहां भारत की प्रमुख भूमिका है। नरेंद्र मोदी पर इस आधिकारिक यात्रा के माध्यम से भारत-ब्राजील आर्थिक संबंधों को एक नयी गतिशीलता प्रदान करने कि जिम्मेवारी है। (संवाद)

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