नया युग, पुरानी तासीर
आज के युग में आप किसी के नहीं हो सकते। केवल अपने आप को समर्पित रहिये, और अपने अतीत से लेकर वर्तमान तक की यात्रा को अविस्मरणीय बता कर अपना भविष्य ऐसा मान लीजिये कि जैसा किसी का भी कभी नहीं हो सकता।
यहां धीरे-धीरे जो अच्छा था, प्रेरणादायक था, वह गायब होता जा रहा है, और उसकी जगह जो कारनामे आप को सन्तोष देते हैं, वह सन्तोष देते ही रहें, चाहे वे कारनामे ऐसे हों कि जिनका ज़िक्र पिछली पीढ़ी के लोगों को शर्मिन्दा कर देता था।
एकदम अपना चोला बदल भद्र हो जाने वाली इस दुनिया में जो कल नीचता थी, आज आधुनिकता बनी है। पाणिग्रहण और प्रणय के सूत्र में सात जन्मों तक के लिए बन्ध जाना कल अगर गृहस्थ जीवन का मूल मन्त्र था, आज वही बदलते ज़माने से पिछड़ जाना हो गया है। शुचिता और समर्पण की बातें बीते कल में होती थीं बन्धु, आज तो राजनीति, समाज से लेकर साहित्य और कला तक के क्षेत्र में लोग अपनी प्रतिबद्धता या अपना मुखौटा इस प्रकार बदल लेते हैं, कि उनके अनुयायी तक आपका पहला रूप स्वीकार नहीं कर पाते, और वह रूप ही बदल जाता है। चुनाव के दिनों में नेताओं को एक दिन में तीन-तीन पार्टियां बदलते देखा है, और रूप बदलने वाले इसे नौटंकी नहीं ज़माने के साथ चलना कहते हैं।
गये वे ज़माने जब दल बदलुओं को ‘आया राम गया राम’ या ‘गंगा गये तो गंगा राम और यमुना गये तो यमुना दास’ कह दिया जाता था। आज जो ऐसा कहता है, वही फिसड्डी है। आज तो आपकी जन्म पत्री से लेकर हस्तरेखा तक पढ़ भविष्यवाणियां करने वाले कलाकार बन गये हैं। वह एक रूप वाले लोगों के बारे में फरमाते हैं कि हमने तो पहले ही बता दिया था, यह फिसड्डी रह जाएंगे। अब देखो न, कला की दुकान नहीं चली तो हम भविष्य-वक्ता हो गये। लोगों का भविष्य बता उनसे चरणवन्दना प्राप्त करते हैं, और उनके अभिनंदन में अपने साहित्य की वह रेखा भी चमका लेते हैं, जो पूरी उम्र दबी रही।
आजकल के लोगों को अपना अतीत नहीं, भविष्य जानना अच्छा लगता है। भविष्य भी वह जो आपके गौरव को दोबाला कर दे। तभी तो देखिये नेता जी सत्ता की सफलता की एक के बाद दूसरी पारी खेलते जाते हैं, यह कहते हुए कि तुम तो अल्प-विकास के नाबदान में पड़े हुए थे। हमने तुम्हें देखते ही देखते दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बना दिया। रुकेंगे नहीं। अभी तुम्हें दुनिया की तीसरी बड़ी आर्थिक महाशक्ति बना देंगे। अपने आपको विकासशील नहीं विकसित कहो, उसकी जागरण यात्रा निकाल लो, क्योंकि एक चौथाई सदी के बाद इस विकसित हो जाने का लाभ तुम्हें मिल ही जाएगा। हो सकता है तब दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति भी बन जाओ।
एक ऐसी महाशक्ति जो बरसों से देश की अस्सी करोड़ जनता को रियायती अनाज खिला कर उन्हें न मरने देने की गारण्टी दे रही है। अपने अतीत में दया, धर्म और उदारता के जो पहाड़ खड़े करने के हमने संकल्प लिये थे, उन्हें हमने अनुकम्पा की एक नयी संस्कृति में तबदील कर दिया है। मंच से चिल्ला कर कहने के काबिल हो गये हैं कि देखो उदारता के इस सांस्कृतिक गौरव से हमारे अतीत का माथा कल दीप्त था, आज हमारा वर्तमान दिपदिपा रहा है। यह महानता तो हम भविष्य में भी छोड़ेंगे नहीं, यूं देश के अस्सी करोड़ गरीब गुरबा को हम रियायती अनाज भविष्य में भी देते रहेंगे।
वैसे, देश के विकास की इस बगिया में रंग-रंग के फूल खिले हैं। क्या आप जानते हैं कि दुनिया में चाहे महामारी आये या महामन्दी, हमने इस देश ने आफत मुसीबत में नये खरबपति बनाने का रिकार्ड पैदा कर दिया है। पूरा एशिया भारत में इनकी संख्या बढ़ती देख कर झुक-झुक कर सलाम कर रहा है और करे भी क्यों न? हमने अपने देश को नये-नये रिकार्ड बनाने वाला देश बना दिया है। जन-कल्याण को अनुकम्पा की संस्कृति में बदल कर हमने अपने देश में वंचित प्रवंचितों का रिकार्ड बना दिया है। हर चुनावी एजेंडे में हर राजनीतिक दल इनमें मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की अन्धी दौड़ लगाता है, और हम कहते हैं देखो इस देश के लोगों में कितना सन्तोष और धीरज पैदा हो गया। अब कभी कायाकल्प के नाम पर आर्थिक क्रांति नहीं आध्यात्मिक क्रांति की बात करते हैं, और पर्यावरण, प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग के इस युग के असाधारण मौसम में धार्मिक पर्यटन दिन दुगनी और रात चौगुनी तरक्की करता जा रहा है।
आप कहते हैं, भारत एक अमीर देश है, जिसमें गरीब लोग बसते हैं। हमें आपका यह दशकों पुराना मुहाविरा समझ नहीं आता। ज़रा नये आंकड़ों को तो देखो। देश में छोटी कारों की बिक्री कम हो गई, बड़ी कारों की बढ़ गई। सस्ते फ्लैट कोई खरीदने नहीं जाता, सब बड़ा और महंगा खरीदने की दौड़ लगा रहे हैं।
ये सब कौन हैं भय्या? अरे वही जिन्होंने शार्टकट संस्कृति और चोर गलियों से अपनी झोंपड़ियों को प्रासाद बना लिया। इस अभागी बहुसंख्या की बात न करो जो निजी व्यापारियों के वरदान, दु्रत आर्थिक विकास दर के कारण अंधेरी कोठरियों से टूटी सड़कों पार आ गये। यह तो उनका फूटा भाग्य है बन्धु! और उनके पिछले जन्मों के कर्मों का फल। सुना है न, ‘ऊधो कर्मन की गति टारे नहीं टरै।’ तभी तो इनकी धूमिल भाग्य रेखाओं को देख कर भविष्य वक्ताओं की आज एक नयी जमात पैदा हो गई है। ये महामना, पोथी पत्रा नहीं बांचते, आपका माथा देख कर भविष्य बांचते हैं। वह माथा जिसे सागर पार ले जाकर विदेशी आकाओं की चौखट पर झुकाना है। अपने देश की गुलामी की बेड़ियां तो काट लीं। अब साम, दाम, दण्ड, भेद से विदेश जा इस आर्थिक पराधीनता को गले से लगाना है, तभी हमारी जून सुधरेगी, ऐसा नये उभरे ज्योतिषियों ने हमें बताया है।