सहकारिता के पथ पर विकास का एक नया युग
भारत का सहकारिता आंदोलन सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य में गहराई से निहित है। यह आंदोलन समावेशी विकास, सामुदायिक सशक्तिकरण और ग्रामीण विकास के लिए एक शक्तिशाली माध्यम के रूप में विकसित हुआ है। सहकारिता मंत्रालय की स्थापना और इसकी नवीनतम पहलों के माध्यम से सरकार ने एक सहकारिता-संचालित मॉडल को बढ़ावा देने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की है, जो देश के हर कोने तक पहुंचेगा और समाज की मुख्य धारा से अलग पड़े समुदायों के लिए स्थायी आजीविका और वित्तीय समावेशन की सुविधा प्रदान करेगा।
दिनांक 6 जुलाई, 2021 को सहकारिता मंत्रालय की स्थापना भारत के सहकारी आंदोलन में एक परिवर्तनकारी क्षण था। सहकारी समितियों को पुनर्जीवित करने की दृढ़ प्रतिबद्धता के साथ मंत्रालय ने इस क्षेत्र को मजबूत और आधुनिक बनाने के उद्देश्य से एक व्यापक नीतिगत ढांचा, कानूनी सुधार और रणनीतिक पहल शुरू की। अपने विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से मंत्रालय ने सहकारी समितियों के लिए ‘व्यापार करने में आसानी’, डिजिटलीकरण के माध्यम से पारदर्शिता सुनिश्चित करने और वंचित ग्रामीण समुदायों के लिए समावेशिता को बढ़ावा देने की अपनी पहल पर काफी जोर दिया है।
सहकारिता आंदोलन में दूरदर्शी नेतृत्व : माननीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में भारत का सहकारिता आंदोलन एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है। अपनी दूरदर्शी सोच को आधार बनाकर उन्होंने सहकारिता के लिए नई विचारधारा को जन्म दिया है। उनके नेतृत्व में सहकारिता मंत्रायल ने भारतीय सहकारी आंदोलन में उल्लेखनीय परिवर्तन किए हैं। जैसे-जैसे सहकारिता आंदोलन विकसित होता जा रहा है, यह भारत के सामाजिक-आर्थिक ढांचे का एक महत्वपूर्ण घटक बनता जा रहा है, जो समकालीन चुनौतियों का समाधान कर रहा है और सामुदायिक लचीलेपन को बढ़ावा दे रहा है। सहकारिता आंदोलन उद्यमशीलता कौशल को भी विकसित करता है जिसकी भारत जैसे देश में बहुत आवश्यकता है। यह न केवल आर्थिक कल्याण में योगदान देता है बल्कि समाज को राष्ट्र के लिए योगदान देने में अग्रणी होने में भी सक्षम बनाता है।
सहकारिता क्षेत्र की प्रमुख उपलब्धियां : सहकारिता मंत्रालय की प्रमुख पहल बहुराज्य सहकारी समितियों को बढ़ावा देना और प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस) का विस्तार करना रही है। पैक्स के लिए मॉडल उपनियमों के लागू होने से उन्हें 25 से अधिक विविध गतिविधियां करने का अधिकार मिला है, जिससे बेहतर प्रशासन और व्यापक समावेशिता सुनिश्चित हुई है। 63,000 पैक्स को कम्प्यूटरीकृत करने के लिए 2,516 करोड़ रुपये की एक ऐतिहासिक परियोजना पहले से ही चल रही है, जिसमें 28 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के 62,318 पैक्स शामिल हैं और 15,783 पहले ही शामिल हो चुके हैं। उठाए गए इन कदमों द्वारा परिचालन दक्षता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, पैक्स को नाबार्ड से जोड़ा है और निर्बाध वित्तीय लेनदेन सुनिश्चित किया है।
कृषि में इफ को का क्रांतिकारी योगदान : इफको ने नैनो यूरिया प्लस (तरल) और नैनो डीएपी (तरल) सहित नैनो उर्वरकों की अभूतपूर्व शुरूआत करके कृषि सहकारी क्षेत्र में नए मानक स्थापित किए हैं। नैनो एनपीके (दानेदार) को शीघ्र ही मंजूरी मिलने वाली है। उम्मीद है कि यह नवाचार आधुनिक कृषि में क्रांतिकारी परिवर्तन लायेगा तथा अधिक दक्षता, लागत प्रभावशीलता और पर्यावरणीय स्थिरता प्रदान करेगा। इन क्रांतिकारी उत्पादों को पहले ही वैश्विक पहचान मिल चुकी है तथा ये अमरीका, ब्राज़ील, जाम्बिया, गिनी-कोनाक्री, मॉरीशस, रवांडा, मलेशिया और फिलीपींस के बाज़ारों में पहुंच चुके हैं।
खाद्य और कृषि क्षेत्र में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान के आधार पर आज इफको दुनिया की नंबर 1 सहकारी समिति बन चुकी है। उन्नत प्रौद्योगिकी को एकीकृत करके, नवाचार और सतत कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देकर इफको और भारत का सहकारी आंदोलन, आर्थिक परिवर्तन को आगे बढ़ा रहा है, जिससे दीर्घकालिक समृद्धि और वैश्विक प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित हो रही है। वैश्विक सहकारी आंदोलन में इफको का नेतृत्व लगातार बढ़ रहा है। अंतर्राष्ट्रीय सहकारी गठबंधन (आईसीए) के सदस्य के रूप में इफको वैश्विक सहकारी नीतियों को आकार देने में सक्रिय रूप से योगदान देता है। इस आयोजन ने सहकारी उन्नति में भारत के नेतृत्व को सुदृढ़ किया तथा वैश्विक सहकारी नेताओं के साथ ज्ञान के आदान-प्रदान को सुगम बनाया।
त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय—विकास का उत्प्रेरक : सहकारी क्षेत्र में विकास का सबसे उल्लेखनीय विचार, त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय की स्थापना रहा है। इस विश्वविद्यालय की परिकल्पना सहकारी शिक्षा, अनुसंधान और नेतृत्व विकास को समर्पित एक प्रमुख संस्थान के रूप में की गई है। इसका उद्देश्य सहकारी प्रशासन को आधुनिक और मजबूत बनाने के लिए सहकारी नेताओं को आवश्यक कौशल और ज्ञान प्रदान करना है । विशिष्ट प्रशिक्षण, शैक्षणिक कार्यक्रम और अनुसंधान के अवसर प्रदान करके त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय भारत के सहकारी आंदोलन के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है। यह विश्वविद्यालय नवाचार, नए सहकारी व्यापार मॉडल तथा वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के केंद्र के रूप में भी काम करेगा। संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2025 को अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष घोषित करने से आर्थिक विकास में सहकारी मॉडल का महत्व उजागर होता है। सहकारिता मंत्रालय विशेष रूप से गरीबी उन्मूलन सतत विकास और समावेशी आर्थिक विकास जैसी चुनौतियों से निपटने हेतु इसे वैश्विक स्तर पर सहकारिता के सिद्धांतों को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर के रूप में देखता है। प्रमुख हितधारकों को शामिल करने तथा सहकारिता-आधारित समृद्धि में भारत की प्रगति को उजागर करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम और सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे।
अपनी रणनीतिक पहलों और दूरदर्शी नीतियों के माध्यम से सहकारिता मंत्रालय ने भारत के सहकारी क्षेत्र को सफलतापूर्वक बदल दिया है। सुधार और आधुनिकीकरण प्रयासों के साथ-साथ त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय की स्थापना से यह सुनिश्चित होता है कि भारत सहकारी नवाचार और ग्रामीण विकास में अग्रणी है। ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाकर, डिजिटल एकीकरण और सहकारी उद्यमिता को बढ़ावा देकर सरकार सहकारी नेतृत्व पर आधारित आर्थिक विकास के लिए एक मजबूत और टिकाऊ मॉडल तैयार कर रही है। भारत में सहकारी आंदोलन अभूतपूर्व ऊंचाई पर पहुंच गया है जिससे ग्रामीण समृद्धि और राष्ट्रीय प्रगति में इसकी भूमिका मज़बूत हो गई है।
-प्रबंध निदेशक, इफको