अमरीका की टैक्स नीति भारत के लिए चिंता की बात
अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 20 जनवरी को देश के राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली थी। राष्ट्रपति चुने जाने से पहले उम्मीदवार के तौर पर भी उसने घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय मामलों संबंधी ऐसे बयान दिए थे जो कई पक्षों से दुनिया में चिंता पैदा करने वाले थे। अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर उसने हो रहे युद्ध संबंधी यह कहा था कि उसके द्वारा प्रशासन संभालने के बाद उन युद्धों को समाप्त करवा दिया जाएगा। दूसरी बड़ी बात उन्होंने यह भी कही थी कि अमरीका अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में आपसी लेन-देन में समानता की नीति पर चलेगा। तीसरा यह कि ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति अधीन उस दुनिया भर में अमरीका द्वारा हर प्रकार के चलाए जाते सहायता कार्यों पर दोबारा विचार करेंगे। चौथी यह कि वह संयुक्त राष्ट्र सहित अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रति अमरीकी नीति देश के हितों को मुख्य रखते हुए ही दोबारा से निर्धारित करेंगे। उसने शपथ ग्रहण के बाद अब तक जो बयान दिए हैं और जिस तरह अपनी नई नीतियों पर चलते हुए अमल शुरू किए हैं, उन्होंने दुनिया भर में एक प्रकार से तहलका मचाकर रख दिया है। ऐसी नीतियों अनुसार डोनाल्ड ट्रम्प ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग-अलग देशों के साथ अमरीका के बने संबंधों, उनके साथ हुई संधियों और राजनीतिक दोस्ती को एक तरह से ताक पर रख कर अपने कदम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं।
रूस-यूक्रेन में चल रहे लम्बे और तबाहीपूर्ण युद्ध संबंधी वह बड़े यत्न ज़रूर कर रहे हैं पर साथ ही इन देशों को सीधे रास्ते पर न आने के कारण कई तरह की धमकियां भी दे रहे हैं जिनके कारण माहौल ठीक होने की बजाय अधिक बिगड़ता नज़र आ रहा है। उन्होंने दुनिया को दरपेश ‘अर्थ वार्मिंग’ (धरती की तपश) से निकलने वाले संभावित नीतियों प्रति बेरुखी का व्यवहार धारण किया हुआ है। यहां तक कि इस संबंधी पैरिस में हुए अंतर्राष्ट्रीय समझौतों को भी मान्यता देने से इंकार कर दिया है? संयुक्त राष्ट्र द्वारा दुनिया भर के गरीब और ज़रूरतमंद देशों में लोगों की बेहतरी के लिए चलाई जा रही योजनाओं संबंधी भी वह आवश्वक फंड देने से आनाकानी करते नज़र आ रहे हैं।
ट्रम्प अमीर व्यक्ति हैं। उन्होंने अपने देश और दुनिया भर के कई अन्य देशों में अपने व्यापार को चमकाया हुआ है। उनकी मानसिकता व्यपारियों वाली है। इसी प्रकार वह अन्य सरोकारों को भी नज़रअंदाज करके अमरीका को व्यापारिक दृष्टिकोण से फायदा देने और उसके अनुसार नीतियां बनाने को प्राथनिकता दे रहे हैं। चाहे कि गाज़ा पट्टी में हमास और इज़रायल के मध्य चल रहे युद्ध दौरान इज़रायल ने पिछले समय में 50 हज़ार से अधिक फिलिस्तीनियों को मार दिया है और उनके घर तक तबाह कर दिए हैं परन्तु इस मामले का कोई निश्चित हल निकालने के बजाय वह गाज़ा पट्टी से फिलिस्तीनियों को उजाड़ कर उनके देश को पर्यटन स्थल में बदलना चाहते हैं। यहां तक कि वह अपने साथ लगते बड़े क्षेत्र ग्रीनलैंड को भी अमरीका में मिलाकर उसे अपना एक और राज्य बनाने का अमल करते दिखाई देने लगे हैं। उनकी हिमाकत तो यहां तक बढ़ गई है कि अमरीका के साथ हमेशा मित्रता करने वाले सीमांत देश कनाडा को भी वह अपना एक राज्य बनाने के बयान दे रहे हैं।
बड़ी चिंता की बात यह है कि उन्होंने आर्थिक पक्ष से अपने देश की सभी नीतियों पर भी पुन: विचार करने हेतु क्रियान्वयन शुरू करते हुए अपने देश में विश्व भर से आयात होती अनेक वस्तुओं पर टैरिफ (टैक्स) बढ़ाने की घोषणा कर दी है। आगामी 2 अप्रैल को वह क्रियात्मक रूप में अपनी इस नीति पर काम करना शुरू कर देंगे। ट्रम्प भारत के लिए भी मित्रता का दम भरते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ भी उनके मैत्रीपूर्ण संबंध बने रहे हैं, परन्तु उन्होंने व्यापारिक आदान-प्रदान में भारत के साथ भी ऐसी ही नीति पर क्रियान्वयन करने को प्राथमिकता दी है। इस संबंधी भारत के व्यापार तथा उद्योग मंत्री पीयूष गोयल मार्च के पहले सप्ताह अमरीका गए थे और उन्होंने वहां के संबंधित मंत्रालय के सचिव से बातचीत भी की थी। इस बारे अब आगे बातचीत के लिए अमरीका का एक उच्च-प्रतिनिधिमंडल भारत आकर भी विचार-विमर्श कर रहा है।
नि:संदेह भारत द्वारा अमरीका भेजी जाती वस्तुओं पर अमरीका द्वारा कम टैक्स लगाया जा रहा है, जबकि भारत में आने वाली अमरीका की वस्तुओं पर भारत द्वारा अधिक टैक्स लगाया जाता है, ताकि स्थानीय उद्योगों को अमरीकी मुकाबलेबाज़ी से बचाया जा सके और भारत में इन उद्योगों में काम करते लोगों का रोज़गार बना रहे। भारत द्वारा वर्ष 2023-24 में अमरीका को 78 बिलियन डालर (6 लाख, 67 हज़ार, 368 करोड़ रुपये) का निर्यात किया गया था। इनमें कारें, ऑटो पार्ट्स, कपड़ा, बने बनाए अर्थात् रैडीमेड गार्मेंट्स तथा धागे आदि शामिल थे। इसके अतिरिक्त भारत की ओर से समुद्री भोजन तथा अनेक प्रकार के चावल भी भेजे जाते हैं। यहीं बस नहीं भारत दूसरे बहुत-से देशों को भी जो ऑटो मोबाइल पार्ट्स (कलपुर्जे) भेजता है, उन देशों द्वारा भी उनका इस्तेमाल करके पूरा माल तैयार करके अमरीका को भेजा जाता है। अमरीका द्वारा भारत को कई प्रकार के बादाम के अतिरिक्त सूखे मेवे, पनीर तथा मांस आदि भेजा जाता है। इसके अतिरिक्त भारत की दवाइयां बनाने वाली कम्पनियां भी भारी मात्रा में अपना सामान वहां भेजती हैं। दवाइयों का निर्यात करने में भारत आयरलैंड तथा स्विट्ज़लैंड के बाद तीसरा सबसे बड़ा देश है। अमरीका द्वारा लागू की जा रही नई टैक्स नीतियों का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कैसा तथा कितना व्यापक प्रभाव पड़ेगा और इससे अमरीका में कितनी महंगाई बढ़ेगी, फिलहाल यदि यह छोड़ भी दें तो भारत पर इस द्विपक्षीय व्यापार में हो रही हलचल का व्यापक प्रभाव पड़ने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। जहां यह भारत के लिए चिंता की बात है, वहीं अन्य देशों को भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी व्यापार संबंधी नीतियों को अमरीकी नीतियों की प्रतिक्रिया के रूप में अपने हितों के अनुसार बनाने के लिए बहुत-से कदम उठाने पड़ेंगे।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द