रक्षा सौदे बनाएंगे भारतीय सेना को और सशक्त
रक्षा क्षेत्र में सरकार द्वारा उठाए गए हालिया कदम बेहद महत्वपूर्ण और दूरगामी प्रभाव वाले हैं, जो देश की सेना को न सिर्फ और बलशाली बनाने वाले हैं बल्कि निकट भविष्य में उसकी तस्वीर बदल देंगे। अब तक के सबसे बड़े रक्षा सौदे के तहत हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड से 156 प्रचंड हेलीकाप्टरों की खरीद हो अथवा अत्याधुनिक एटीएजीएस यानी एडवांस्ड टोव्ड ऑर्टलरी गन सिस्टम वाली तोपों एवं तोपगाड़ियों की खरीद के लिये 6,900 करोड़ का करार हो। माउंटेड गन सिस्टम की तलाश के लिए टेंडर जारी होना हो अथवा रक्षा मंत्रालय द्वारा तकरीबन तीन लाख करोड़ रुपये के अनुबंधों पर हस्ताक्षर करना या फिर वित्तीय वर्ष 2024-25 में डेढ लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत रक्षा खरीद के सौदे कर गुजरना। इस तरह के कई बड़े और ठोस कदम सेना की मजबूती के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता का दर्शाते हैं। सेना के सौदों, उनकी मंजूरी तथा आपूर्ति में बरसों बरस की देरी जो सामान्य बात थी, उसको दूर करने के लिये सरकार ने नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं, इससे न सिर्फ प्रक्रिया की जटिलता कम होगी बल्कि सौदों, अनुबंधों को खरीद तक पहुंचाने में लगने वाला समय बहुत कम हो जाएगा।
अगर ये नए कायदे कानून लागू हो गये तो लड़ाकू विमानों, हथियारों तथा दूसरे सैन्य साधनों-संसाधनों की आपूर्ति में देरी संबंधी सेना की तमाम शिकायतें एक झटके में दूर हो जायेंगी। सरकार ने एक बार फिर दोहराया है कि वह जल्द ही 114 लड़ाकू विमान खरीदने की प्रक्रिया आरंभ करने जा रही है और उसी के साथ यह खुशखबरी भी मिली कि तेजस के लिये अमरीकी कंपनी जीई एयरोस्पेस ने पहला इंजिन भेज दिया है। सरकार ने देखा कि रूस यूक्रेन युद्ध के चलते गोला बारूद की आपूर्ति में दिक्कतें आयी अब भविष्य में ऐसी सांसत न आये इसके लिये उसके द्वारा आपूर्तिकर्ताओं में विविधता बढ़ाने का फैसला लेना, प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर की कंपनियों के एम्युनिशन का ट्रायल, नबलेस और सेंसर फ्यूज्ड एम्युनिशन को देश में विकसित करवाने का काम भी एक बेहतर पहल है। तब जब यह कहा जा रहा हो कि सेना लगातार सिकुड़ रही है, उसके साजो सामान पुराने होते जा रहे हैं, लड़ाकू विमानों की बेतरह कमी है, विमान वाहक समुद्री बेड़ा उन्नत तकनीक वाला नहीं रह गया है और रक्षा सौदों की शर्तों के अनुरूप आपूर्ति में देरी के चलते सैन्य शक्ति संतुलन बिगड़ रहा है, जबकि इसके बरअक्स पड़ोसी लगातार ताकतवर होते जा रहे हैं, ऐसे परिदृश्य में रक्षा क्षेत्र से आते सकारात्मक समाचार वाकई उत्साह बढाने वाले हैं।
प्रचंड हेलीकॉप्टर और हाई टेक तोपें खरीदने के सरकारी फैसले में जो सर्वाधिक महत्व की बात है वह यह कि दोनों ही स्वदेशी हैं, देश में निर्मित होने हैं। प्रचंड हेलीकॉप्टर हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड यानी एचएएल बनायेगा जबकि हाईटेक तोपें फोर्ज और टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड। इन दोनों से सेना की मारक क्षमता में वृद्धि के साथ साथ ही ‘मेक इन इंडिया’ को भी बढ़ावा मिलेगा। जब अपने सबसे बड़े आर्डर के तहत हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड बेंग्लुरू और तुमकुर में ये हेलीकॉप्टर बनाना शुरू करेगा तो बेशक रोज़गार में किंचित बढ़ोतरी होगी। स्वदेशी होने के नाते यह अपनी सेना की ज़रूरतों के अनुसार बनेगा तथा समय से आपूर्ति की उम्मीद बढ़ेगी। विभिन्न हथियार प्रणालियों से लैस एलसीएच ‘प्रचंड’ रात में भी हमले की क्षमता रखता है, जहां यह जमीन और हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों को दागने में भी सक्षम है, वहीं यह दुश्मन के हवाई हमले को विफल करने के भी काबिल होगा। दुनिया के सबसे ऊंचे और दुर्गम युद्ध क्षेत्र सियाचिन में भी कार्यक्षम यह हेलीकॉप्टर ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात दुश्मन के टैंक, बंकर, ड्रोन को नष्ट करने का काम बखूबी करने वाला बताया जाता है।
माउंटेड गन सिस्टम की तलाश के लिए टेंडर जारी करने के साथ सेना ने अपने तोपखानों की ताकत बढ़ाने के लिए यह बड़ा कदम उठाया है। सेना देश में ही डिजाइन और डेवलप की गई स्वदेश निर्मित हवित्ज़र तोपें खरीद रहा है साथ ही टाटा और भारत फोर्ज की नई आर्टिलरी गन और हाई मोबिलिटी व्हीकल का टेडर भी पास हो चुका है। ये दोनों अत्यंत उपयोगी होने वाली हैं। सेना का निजी क्षेत्र से इतनी बड़ी संख्या में तोपें खरीदने का पहला अनुभव होगा। खरीदी जा रही इन नई तोपों की मारक क्षमता पुरानी तोपों से बहुत बेहतर है और सटीकता में ये उनसे बहुत आगे हैं। इन हल्की तोपों को किसी भी प्रकार के भू-क्षेत्रों, इलाकों में आसानी से तैनात किया जा सकता है। सेना का तोपखाना अत्याधुनिक हथियारों से लैस होगा तो सेना को ऑप्रेशनल स्तर पर बड़ी बढ़त मिलेगी, तय है। इन कदमों से जहां हजारों लोगों को रोज़गार के अवसर मिलेंगे वहीं रक्षा उत्पाद में लगी भारतीय कंपनियां वैश्विक रक्षा बाज़ार में अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल होंगी।
पूर्व एयर वायस मार्शल संजय भटनागर ने कुछ दिन पहले कहा था कि देश की रक्षा के लिए वायुसेना के पास हर हाल में 42 स्क्वाड्रन ज़रूरी है लेकिन हैं सिर्फ 32। सौदों और आपूर्ति की सुस्त रफ्तारी ऐसे ही बनी रही तो साल 2035 तक भारत के पास सिर्फ 25-27 स्क्वाड्रन होंगे और हम इस मामले में पाकिस्तान की ताकत के बराबर पहुंच जाएंगे। सच तो यह है कि रक्षा सौदे महज सुर्खियों में सेना को सुख देते हैं। सौदे की खबरों के बाद सैन्य सामग्री हथियारों की आपूर्ति बरसों बरस अटकी रहती है। विदेशी आपूर्तिकर्ताओं के साथ कीमत और शर्तों को लेकर वार्ताओं का दौर लंबा खिंचता है। फिर हथियारों का विभिन्न स्थितियों, परिस्थितियों में परीक्षण समय लेता है। लेकिन एक बड़ी वजह लाल फीताशाही भी है। रक्षा मंत्रालय की खरीद प्रणाली की जटिल प्रक्रिया 657 पन्नों के रक्षा अधिग्रहण प्रॉसेस मैनुअल से संचालित होती है। मैनुअल 2020 के बाद आजतक अपरिवर्तित है। जहां तक ध्रूवीय प्रदेशों और रेगिस्तान वगैरह में परीक्षण की बात है तो उन्हें अत्याधुनिक तकनीकि युक्त सिमुलेशन से किया जा सकता है।
अब सरकार ने यह तय किया है कि रक्षा खरीद प्रक्रिया को पूरा होने का जो 96 सप्ताह का निर्धारित समय रखा गया था, उसे घटाकर 24 सप्ताह का कर दिया जाए। सशस्त्र बल और अधिकारी इस नई प्रक्रिया का सख्ती से पालन करें। देरी होती है तो उसकी जिम्मेदारी तय हो। यह अच्छा है कि ये सौदे स्वदेशी कंपनियों से हैं। सौदेबाजी में ज्यादा वक्त नहीं जाएगा। इस बात की किंचित गारंटी है कि सेना को समय पर हथियार मिल जायेंगे। तकनीक अद्यतन रहेगी। टाटा, भारत फोर्ज तथा एचएएल के पास क्षमता पर्याप्त है और बजट भी लेकिन एएचएल को तकनीक उपकरणों को लेकर थोड़ा संघर्ष करना पड़ता है क्योंकि दूसरे देशों से इनकी आपूर्ति श्रृंखला कई बार बाधित हो जाती है वर्तमान सरकार को इस ओर भी ध्यान देना होगा
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