कृषि में पानी की बचत कैसे हो ?
किसानों के मिज़ाज तथा रूझान से प्रतीत होता है कि इस वर्ष भी 32 लाख हैक्टेयर से धान की काश्त कम नहीं होगी। चाहे पंजाब सरकार ने 21 हज़ार हैक्टेयर रकबा कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। पिछले वर्षों में धान की काश्त के अधीन रकबा कम करने के लिए सरकार द्वारा किए गए सभी प्रयास विफल रहे हैं। धान की काश्त अधीन रकबा कम करने की ज़रूरत भू-जल के गिरने की समस्या के कारण पैदा हुई है। पंजाब में भू-जल निकालने के लिए 14 लाख से अधिक ट्यूबवैल लगे हुए हैं। सब्ज़ इंकलाब के बाद धान की काश्त अधीन रकबा बढ़ने तथा अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों के अस्तित्व में आने से पानी की ज़रूरत बहुत बढ़ गई। बारिश भी औसतन कम होती रही। सिंचाई के अन्य साधन जैसे कि नहरी पानी आदि भी कम होते गए और भू-जल का इस्तेमाल भी लगातार बढ़ता गया। ट्यूबवैलों के लिए बिजली मुफ्त होने के कारण पानी का किफायती इस्तेमाल नहीं किया गया, क्योंकि भू-जल मुफ्त था। जब धान की फसल में पानी खड़ा करने की ज़रूरत भी नहीं थी, तब भी किसान पानी का इस्तेमाल खेतों में खड़ा करने के लिए करते रहे। इस कारण भू-जल का स्तर लगातार गिरता गया। 153 ब्लाकों में से 117 ब्लाकों की हालत दयनीय हो गई। भू-जल का स्तर गिरने से सबमर्सिबल पम्प लगने शुरू हो गए और इनकी संख्या प्रत्येक वर्ष बढ़ती गई। विगत में बासमती की काश्त बढ़ने तथा पंजाब प्रीज़र्वेशन ऑफ सबस्वाइल वाटर एक्ट-2009 लागू होने से अगेती बिजाई कम होने के बावजूद भू-जल का स्तर गिरता गया। विशेषज्ञों द्वारा दिए गए आंकड़ों के आधार पर जिन ब्लाकों में कोई और ट्यूबवैल नहीं लगना चाहिए था, वहां भी लगातार ट्यूबवैल लगते रहे।
शहरों में भी सबमर्सिबल पम्प लगने शुरू हो गए, क्योंकि नगर निगमों के माध्यम से पानी दिन में कुछ घंटों के लिए ही मिलता है। शहरों में नालियों का जो गंदा पानी है, उसे पुन: इस्तेमाल हेतु पूरी तरह रिसाइलिक नहीं किया जा रहा। पंजाब में भू-जल अधिक मात्रा में इस्तेमाल किया जाता है, परन्तु रिचार्ज नहीं होता। भू-जल निकालने वाले राज्यों में पंजाब अग्रणी है। सही मायनों में पानी का उचित इस्तेमाल नहीं हो रहा, विशेषकर पंजाब में यहां धान की काश्त अधीन रकबा प्रयासों के बावजूद कम नहीं हो रहा।
देश के केन्द्रीय भंडार में दूसरे राज्यों से गेहूं तथा चावल का अधिक योगदान डालने के कारण पंजाब आज पानी की कमी से जूझ रहा है। राज्य के काफी बड़े रकबे में भू-जल दूषित है, जो सिंचाई के योग्य नहीं। सबमर्सिबल पम्पों से गहरी स्तह से पानी निकाल कर जो सिंचाई की जा रही है, वह भविष्य में भूमि को कलराठी बना देगी जिसका फिर कोई समाधान संभव नहीं होगा। जब पानी ही कल्लर वाला निकल आया तो भूमि बंजर हो जाएगी। यदि हालात यही रहे तो कृषि तो दूर, पंजाब पीने वाले पानी के लिए भी तरस जाएगा। बारिश के व्यर्थ जा रहे पानी को रिचार्ज करने की सख्त ज़रूरत है।
नालों, नालियों के पानी को रिसाइकिल करके पानी के उचित इस्तेमाल करने की ओर गम्भीरता से ध्यान दिया जाना चाहिए है। सरकार को ऐसी नीति एवं साधन इस्तेमाल करने चाहिएं, जिनसे पानी की बचत हो और पानी की कम ज़रूरत वाली फसलों को महत्व मिले।
गत वर्ष किसानों को बासमती की उचित कीमत न मिलने के कारण जो किसान बासमती की बजाय धान लगाने संबंधी सोचने लग पड़े हैं, उन्हें उससे वापिस लाने की ज़रूरत है। सरकार को केन्द्र पर ज़ोर डालना चाहिए कि बासमती का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करके किसानों का उत्साह बासमती की काश्त की ओर बढ़ाए या बासमती का लाभदायक मंडीकरण सुनिश्चित बनाए। इस प्रकार ही पानी की कमी के संकट से बचा जा सकता है। भू-जल के स्तर की गिरावट को रोकने के लिए खोतों के लेज़र कराहे से समतल करना तथा ज़मीन के नीचे पाइप डालना भी ज़रूरी है। माइक्रो सिंचाई की सुविधाओं को बढ़ाया जाए। इससे पानी की खपत कम होगी और उत्पादन बढ़ेगा। सरकार को लेज़र कराहे के लिए बड़े-बड़े किसानों एवं व्यापारियों को सब्सिडी देने की बजाय छोटे किसानों को आर्थिक सहायता देकर अपनी नीति में संशोधन की ज़रूरत है।
बासमती की कम समय में पकने वाली फसल पी.बी.-1509, पी.बी.-1692 तथा पी.बी.-1985 जैसी किस्मों की काश्त के लिए पंजाब सरकार उचित नीति बना कर किसानों को इन किस्मों की बिजाई के लिए प्रोत्साहित करे। इन किस्मों की पानी की ज़रूरत कम है और समय पर बिजाई करने से यह एक-आधी सिंचाई लेकर भी बारिश के पानी से पक जाती हैं। इससे भी पानी की बचत होगी।