भारत को रक्षा व्यय में पर्याप्त वृद्धि करने की आवश्यकता

यह विश्वास करना कठिन है कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आधार पर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और एक प्रमुख सैन्य शक्ति भारत का रक्षा व्यय जीडीपी के प्रतिशत के रूप में कुवैत और ग्रीस जैसे छोटे-छोटे देशों से भी कम है। दक्षिण एशियाई क्षेत्र में चीन के साथ जटिल भू-राजनीतिक स्थिति के मद्देनज़र कहा जा सकता है कि भारत अपनी रक्षा पर पर्याप्त खर्च नहीं कर रहा है जबकि उसका नंबर 1 दुश्मन चीन लगातार बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव, पाकिस्तान और नेपाल पर अपने बढ़ते आर्थिक और सैन्य नियंत्रण के साथ भारत को घेर रहा है, जिससे भारत पर चीन का खतरा बढ़ता जा रहा है। 
सकल मूल्य के संदर्भ में भारत का वार्षिक रक्षा बजट प्रभावशाली नहीं है। भारत का रक्षा व्यय चीन के लगभग 267 अरब डॉलर के एक तिहाई से भी कम है। अमरीका 895 अरब डॉलर के बजट के साथ सबसे बड़ा रक्षा पर खर्च करने वाला देश बना हुआ है। रूस का रक्षा बजट करीब 126 अरब डॉलर का है। भारत का रक्षा बजट केवल 75 अरब डॉलर के आसपास होने का अनुमान है। प्रभावी रूप से भारत का रक्षा खर्च उसके सकल घरेलू उत्पाद का 1.9 प्रतिशत है। हालांकि चीन का रक्षा खर्च आधिकारिक तौर पर उसकी अर्थव्यवस्था का केवल 1.5 प्रतिशत अनुमानित है, लेकिन ओआरएफ ऑनलाइन डॉट ऑर्ग के अनुसार इसमें हथियार आयात, पीपुल्स आर्म्ड पुलिस के लिए वित्त पोषण और अनुसंधान एवं विकास जैसे कई महत्वपूर्ण व्यय शामिल नहीं हैं। नतीजतन, चीन का प्रभावी रक्षा व्यय काफी हद तक छिपा हो सकता है या फिर यह सार्वजनिक रूप से साझा अनुमान से काफी अधिक हो सकता है। अमरीका और रूस के बाद तीसरी प्रमुख वैश्विक सैन्य शक्ति चीन रक्षा क्षेत्र में अपनी तकनीकी क्षमता का तेज़ी से आधुनिकीकरण कर रहा है क्योंकि यह दुनिया भर में अपनी उपस्थिति का विस्तार कर रहा है, जो केवल अमरीका से पीछे है। चाइना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) एशिया, अफ्रीका, यूरोप, लैटिन अमरीका और प्रशांत क्षेत्र में फैला हुआ है।
हाल की रिपोर्टों के अनुसार चीन के पास श्रीलंका, पाकिस्तान, तंजानिया, मॉरीशस, मालदीव और म्यांमार में संभावित आधार है। चीन इन देशों के हिंद महासागर के बिंदुओं पर वाणिज्यिक बंदरगाह या मुक्त व्यापार क्षेत्र विकसित करने में लगा हुआ है। चीन पारंपरिक हथियारों की बिक्री के लिए अंतिम अनुबंधों के साथ इन देशों का समर्थन भी कर रहा है। अमरीका और भारत इससे चिंतित है। क्वाड संगठन साझा मूल्यों और कानून के शासन के आधार पर एक स्वतंत्र और खुली अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करते हुए, भारत-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय सुरक्षा और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक रणनीतिक मंच के रूप में कार्य करता है। क्वाड के सदस्य देश हैं—अमरीका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत। दिलचस्प बात यह है कि 10 सदस्यीय शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के रक्षा मंत्रियों की नवीनतम बैठक के बाद भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक मसौदा बयान पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया, जिसमें पहलगाम आतंकी हमले का उल्लेख नहीं था। नतीजतन कोई संयुक्त घोषणा नहीं की गई।
पाकिस्तान का रक्षा व्यय उसके सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2.2 प्रतिशत है। चालू वित्त वर्ष 2025-26 के लिए देश का रक्षा बजट शुरू में सकल घरेलू उत्पाद का 1.97 प्रतिशत प्रस्तावित किया गया था। हालांकि हाल ही में भारत-पाकिस्तान के बीच चार दिवसीय युद्ध के बाद संकेत मिल रहे हैं कि पाकिस्तान का रक्षा व्ययए, जिसमें छिपी हुई लागत, सैन्य पेंशन और कुल सैन्य संबंधी व्यय शामिल हैं, इस वर्ष उसके सकल घरेलू उत्पाद के चार प्रतिशत से अधिक हो सकता है। हाल के वर्षों में पाकिस्तान का रक्षा व्यय आम तौर पर सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 2.5 प्रतिशत पर रहा है। महत्वपूर्ण युद्ध उपकरणों के भंडार के लिए चीन पर बड़े पैमाने पर आयात पर निर्भर पाकिस्तान दक्षिण और पश्चिम एशियाई दोनों क्षेत्रों में चीन के लिए छद्म युद्ध लड़ने के लिए तैयार दिखाई देता है। 
27 सदस्यीय यूरोपीय संघ (नाटो), जो रूस के खिलाफ  यूक्रेन के समर्थन में एक छद्म युद्ध लड़ता हुआ प्रतीत होता है, यूक्रेन में रूस की आक्रामकता, सुरक्षा जोखिमों का पुनर्मूल्यांकन, अपनी रक्षा क्षमताओं को आधुनिक बनाने की आवश्यकता और नाटो की रक्षा योजनाओं के साथ बेहतर तालमेल सहित कई कारकों के संयोजन के कारण अपने रक्षा व्यय को अपने सकल घरेलू उत्पाद के पांच प्रतिशत तक बढ़ाने की सोच रहा है। रिपोर्टों के अनुसार रूस के खिलाफ  यूक्रेन के लम्बे युद्ध के पीछे यूरोपीय संघ का एक मजबूत और अधिक एकीकृत यूरोपीय रक्षा समर्थन का फैसला है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नाटो के यूरोपीय भागीदारों को लगातार वित्त पोषण करने में रुचि की कमी के मद्देनज़र यह निर्णय महत्वपूर्ण है। सकल घरेलू उत्पाद के पांच प्रतिशत के यूरोपीय संघ के रक्षा व्यय लक्ष्य में व्यापक सुरक्षा क्षेत्रों में निवेश शामिल है, जैसे कि बुनियादी ढांचे का उन्नयन (सड़कें, रेलवे, पुल), साइबर रक्षा, सैन्य गतिशीलता और त्वरित सुदृढ़ीकरण की सुविधा। जीडीपी के प्रतिशत के रूप में दुनिया के शीर्ष सैन्य खर्च करने वालों में शामिल हैं— यूक्रेन (34.5 प्रतिशत), लेबनान (10.5 प्रतिशत), इज़राइल (8.8 प्रतिशत), रूस और सऊदी अरब (7.1 प्रतिशत), कुवैत (4.8 प्रतिशत), पोलैंड (4.2 प्रतिशत) और अमरीका (3.4 प्रतिशत)।
2025-26 के बजट में जीडीपी के प्रतिशत के रूप में भारत का प्रस्तावित रक्षा खर्च, जो 1.9 प्रतिशत होने का अनुमान है, 2000 के दशक की शुरुआत में बड़े रक्षा पेंशन को छोड़कर लगभग तीन प्रतिशत के अपने ऐतिहासिक स्तर से पर्याप्त कमी दर्शाता है जबकि हाल के वर्षों में रक्षा के लिए समग्र बजट आवंटन में वृद्धि हुई है। इस उद्देश्य के लिए आवंटित जीडीपी का प्रतिशत अपेक्षाकृत कम स्तर दो प्रतिशत से नीचे रहा है। यह पिछले दो दशकों में क्षेत्र में बदलते सुरक्षा माहौल के बावजूद है। 
हाल ही में बांग्लादेश ने भी भारत को डुआर्स क्षेत्र में ‘चिकन नेक’ काटने के लिए संभावित सैन्य कार्रवाई की धमकी दी थी, ताकि भारत के आठ पूर्वोत्तर राज्यों अर्थात् अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा के साथ भूमि संपर्क टूट जाये। भारत को इस तरह की पहली बांग्लादेशी धमकी को हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि देश की आयात-निर्भर सेना पर चीन का काफी हद तक नियंत्रण है। यह इस बात को और भी स्पष्ट करता है कि भारत को आने वाले वर्षों में अपने प्रभावी रक्षा खर्च को जीडीपी के प्रतिशत के रूप में बढ़ाने की आवश्यकता क्यों है। भारत के सैन्य खर्च में पर्याप्त वृद्धि होनी चाहिए ताकि पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों का उपयोग करके भारत के खिलाफ  चीनी छद्म युद्ध के सामने देश की क्षेत्रीय अखंडता और आर्थिक प्रगति की रक्षा के लिए भारत तैयार रह सके। (संवाद)

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