युद्ध के खतरे और मानव जाति के सबक

कुछ दिन पहले भारत के उप-सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने एक सम्बोधन में कहा कि चीन ने भारत को तकलीफ पहुंचाने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल किया और वह मई में भारतीय और पाकिस्तानी सेनाओं के बीच चार दिनों तक चले संघर्ष के दौरान अपने सदाबहार सहयोगी को हर सम्भव सहायता प्रदान कर रहा था। उद्योग चैम्बर ‘फिक्की’ को सम्बोधित करते हुए सेना के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि चीन ने भारत-पाकिस्तान संघर्ष का उपयोग विभिन्न हथियार प्रणालियों के परीक्षण के लिए एक ‘प्रयोगशाला’ की तरह किया है। 
उन्होंने चीन की ‘36’ चालों की प्राचीन सैन्य रणनीति और ‘उधार के चाकू’ से दुश्मन को मारने की रणनीति का उल्लेख करते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि बीजिंग ने भारत को नुक्सान पहुंचाने के लिए पाकिस्तान को हर सम्भव समर्थन दिया। ‘उधार के चाकू’ से मारने का मतलब है कि दुश्मन को पराजित करने के लिए किसी तीसरे पक्ष का इस्तेमाल करना। अर्थात चीन ने पाकिस्तान को भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया। उन्होंने खुलासा किया कि भारत वास्तव में तीन शत्रुओं का सामना कर रहा है। पाकिस्तान, चीन के अतिरिक्त तुर्किये भी इस्लामाबाद को सैन्य साजो सामान की आपूर्ति कर रहा था। उन्हें बीजिंग का इस्लामाबाद को समर्थन आश्चर्यजनक नहीं लगा, क्योंकि पाकिस्तानी सशस्त्र बलों को 81 प्रतिशत सैन्य साजो-सामान चीन से ही आता है। मई 2025 में भारत- पाकिस्तान युद्ध कुछ ही दिन चला, लेकिन जो कुछ भविष्य में लिखा है, उसे पढ़ते हुए यही लगता है कि भारत-पाकिस्तान युद्ध के बादल पूरी तरह से छटे नहीं हैं। पाकिस्तानी लीडरशिप पाकिस्तान के सैन्य संगठन के सामने लाचार नज़र आती है। भयंकर ़गरीबी के बावजूद वहां के जनरल कभी भी कोई शरारत कर सकते हैं, जिससे भारत को सावधान रहना होगा। चीन और तुर्किए भारत के मित्र नहीं है। युद्ध की सम्भावना से इनकार करना मुश्किल होगा। 
इसी तरह विश्व पटल पर देखें- इज़रायल और ईरान के बीच युद्ध भी भारत-पाकिस्तान के युद्ध की तरह फिलहाल टल गया है, लेकिन वहां भी अनिश्चितता की स्थिति है और दोनों देशों की सैन्य तैयारी में ज़रा भी फर्क नहीं आया है।
एक अनुमान के तहत आज दुनिया के लगभग 92 देश इस समय बाहरी या फिर आंतरिक युद्ध में फंसे हुए हैं। किसी पर युद्ध थोप दिया गया है या कोई खुद युद्ध में उलझ रहा है। किसी देश की सीमा पर युद्ध का संकट है और कोई आंतरिक व्यवस्था के चलते युद्धरत है। ऐसे में विश्व के अनेक देश युद्ध के गहरे बादलों का सामना करने की स्थिति में हैं। पाकिस्तान, सीरिया, ईरान, लेबनान जैसे देश आतंकवादी संगठनों को फंडिंग करते नज़र आते हैं। उन्हें धन, हथियार और समर्थन भी उपलब्ध करवाते हैं। अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए इनका इस्तेमाल करके प्रतिद्वंद्वी देश को तबाह करने का सपना देखते हैं। ऐसी परोक्ष वार में उनकी आशा पूरी होती है। जब कोई आतंकी पकड़ा जाता है या मार गिराया जाता है तो वह अपनी ज़िम्मेदारी से बच निकलते हैं। युवा वर्ग को टारगेट करते हैं, उन्हें धन देकर, सपने दिखा कर, उनका ब्रेनवाश करते हैं और अपने ज़हर की फसल काटने भेज देते हैं। अजमल कसाब जब पकड़ा गया था तो पाकिस्तान ने पल्ला झाड़ लिया था जबकि वह पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी द्वारा भेजा गया था।
बड़ा सवाल यह है कि दो-दो विश्व युद्धों से हुई मानवीय तबाही से मानव-जाति ने कुछ नहीं सीखा। वह तीसरा विश्व युद्ध लड़ने की मानसिकता में जी रहा है। इस्लामिक देश माहौल खराब करने के लिए अमरीका को ज़िम्मेदार मान रहे हैं। क्या सभी देश मानवीय तबाही से सबक नहीं ले सकते?

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