पंजाब भाजपा की सक्रियता
भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने पंजाब में अश्विनी शर्मा को कार्यकारी अध्यक्ष घोषित करते हुए एक बार फिर नये अध्याय की शुरुआत की है। अश्विनी शर्मा को तीसरी बार प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा का अपना कार्यकाल खत्म हो चुका है। इसलिए वह पंजाब के लिए कार्यकारी अध्यक्ष की ही नियुक्ति कर सकते थे। इस समय कांग्रेस के पृष्ठ भूमि वाले सुनील जाखड़ पार्टी अध्यक्ष थे, जिन्हें जुलाई, 2023 में अश्विनी शर्मा के स्थान पर ही प्रादेशिक पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया था। सुनील जाखड़ के मात्र वर्ष भर ही पार्टी अध्यक्ष बने रहने के बाद ही उन्होंने लोकसभा चुनावों के दौरान पंजाब में पार्टी की कारगुज़ारी बेहतर न होने की ज़िम्मेदारी लेते हुए हाई कमान के साथ कुछ मतभेदों के दृष्टिगत जुलाई, 2024 में अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया था, जिसे अब तक पार्टी द्वारा स्वीकार नहीं किया गया।
अश्विनी शर्मा के नाम की घोषणा होने के बाद भाजपा के पुराने और पार्टी के साथ लम्बे समय तक सैद्धांतिक स्तर पर जुड़े रहे नेता और कार्यकर्ता बेहद खुश और उत्साह में दिखाई देते हैं। इसलिए भी कि पिछले कुछ वर्षों से राष्ट्रीय नेतृत्व की अपनी सोच और अपनाई नीति के कारण व्यापक स्तर पर अन्य पार्टियों के बड़े-छोटे नेताओं को पार्टी में शामिल किया गया था। शामिल होने वालों में कांग्रेस के धुरंधर और अकाली दल के भी प्रत्येक स्तर के नेता शामिल हुए थे और पार्टी के भीतर उनकी तूती भी बोलने लगी थी, जिससे पार्टी के साथ जुड़े पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं में कई तरह के संशय पैदा हो गए थे। पंजाब में लगभग तीन दशक तक अकाली-भाजपा का गठबंधन चलता रहा था। इसके होते हुए इस पार्टी ने लम्बी अवधि तक अकाली दल के साथ मिल कर पंजाब का प्रशासन चलाया था, परन्तु भाजपा के भीतर यह बदलाव इस गठबंधन के टूटने के बाद ही आया दिखाई देता था। 2022 के विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनावों के साथ-साथ अन्य उप-चुनाव भाजपा ने अपने दम पर ही लड़े थे। चाहे इनमें पार्टी ने जीत तो दर्ज नहीं की थी, परन्तु यह अपने वोट बैंक को और मज़बूत करने और बढ़ाने में ज़रूर सफल रही थी।
जालन्धर में हुए उप-चुनाव और लुधियाना में हुए उप-चुनाव में भाजपा की कारगुज़ारी ने इसके मज़बूत हो रहे आधार का अहसास ज़रूर करवा दिया था। इससे पहले 2022 में विधानसभा चुनावों में चाहे अश्विनी शर्मा सहित इसके दो विधायक ही जीत प्राप्त कर सके थे परन्तु इनमें पार्टी ने लगभग 24 प्रतिशत वोट प्राप्त किए थे। जबकि इन चुनावों में अकाली दल (ब) के वोट बैंक में बेहद गिरावट आई थी और भाजपा इस आधार पर तीसरा पक्ष बन कर उभरी थी। चाहे आजकल भी भाजपा के कई राष्ट्रीय और प्रदेश के नेता अकाली दल के साथ गठबंधन करने की बात करते हैं परन्तु अकाली दल आज कई टुकड़ों में बंटा दिखाई देता है, जिस कारण भाजपा के लिए मौजूदा समय में किसी एक अकाली गुट के साथ समझौता करने की उम्मीद मद्धम ही दिखाई देती है।
अब अश्विनी शर्मा का चयन करके राष्ट्रीय भाजपा ने पुराने और पार्टी में शामिल हुए नए नेताओं के बीच एक संतुलन बनाने का यत्न ज़रूर किया है, जिस ढंग से इस पार्टी ने अपना प्रभाव और विस्तार करना शुरू किया है, उससे यह प्रभाव ज़रूर मिलना शुरू हो गया है कि आगामी समय में इस पार्टी को प्रदेश में गम्भीरता के साथ लिया जाएगा। अकाली दल में बिखराव व कांग्रेस में एकजुटता की कमी और आम आदमी पार्टी के सत्तारूढ़ होने के कारण बढ़ रहे विरोध के कारण, एकजुट और अनुशासित भाजपा को प्रदेश की राजनीति में बहुत राजनीतिक लाभ मिल सकता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द