पिछले 10 सालों में मोदी मज़बूत वैश्विक नेता के तौर पर उभरे 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 10 साल पहले देश की सत्ता की कमान संभाली। इन बीते 10 सालों में वह न केवल मज़बूत वैश्विक नेता के तौर पर उभरे हैं बल्कि मौजूद समय में वह सबसे बड़े संघर्ष के समाप्ति की उम्मीद भी बन गए हैं। ढाई साल से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध के खात्मे को लेकर पश्चिमी देश भी अब भारत और प्रधानमंत्री मोदी की ओर उम्मीद लगाकर देख रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है युद्ध में शामिल दोनों पक्षों का भारत पर भरोसा। प्रधानमंत्री एकमात्र ऐसे नेता हैं जिन्होंने युद्ध के दौरान रूस और यूक्रेन दोनों ही देशों का दौरा किया। आज रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन प्रधानमंत्री मोदी को अपना अच्छा दोस्त मानते हैं और यही वजह है कि उन्होंने यूक्रेन के साथ चल रहे संघर्ष को लेकर साफ कर दिया है कि उन्हें शांति समझौते को लेकर भारत की मध्यस्थता मंजूर है। वहीं यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भी प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के बाद कहा था कि अगली शांति वार्ता भारत में आयोजित होनी चाहिए।
बताया जाता है कि यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की को भरोसा है कि अगर भारत शांति शिखर सम्मेलन का आयोजन करता है तो यह युद्ध रुक सकता है। प्रधानमंत्री मोदी ने जेलेंस्की से बातचीत में एक बड़ा बयान दिया था। प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत तटस्थ नहीं है बल्कि वह शांति के पक्ष में खड़ा है। यह संदेश न केवल रूस-यूक्रेन के लिए था बल्कि यह पूरी दुनिया को यह बताने के लिए है कि नए वर्ल्ड ऑर्डर में भारत की भूमिका क्या होगी? रूस-यूक्रेन के अलावा अमरीका समेत कई पश्चिमी देशों को भी रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत से बड़ी उम्मीदें हैं। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी जब यूक्रेन-पोलैंड यात्रा से लौटे तो 26 अगस्त को राष्ट्रपति जो बाइडेन ने फोन पर उनसे बात की। इससे पहले भी प्रधानमंत्री मोदी और जो बाइडेन के बीच रूस-यूक्रेन संघर्ष को लेकर चर्चा हो चुकी है।
अमरीका को अच्छी तरह मालूम है कि भारत व रूस के बीच संबंध कितने मजबूत हैं, पश्चिमी देशों के दबाव के बावजूद भारत ने इस संघर्ष की शुरुआत से लेकर अब तक मजबूती से रूस का साथ निभाया है, हालांकि प्रधानमंत्री मोदी लगातार शांति की अपील भी करते रहे हैं। यहां तक कि उन्होंने रूसी राष्ट्रपति पुतिन के सामने साफ-साफ कहा कि यह समय युद्ध का नहीं है।
पिछले सप्ताह रूस दौरे पर गए भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के दौरे को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं कि भारत युद्ध रुकवाने के प्लान पर अब तेज़ी से जुट गया है। माना जा रहा था कि डोभाल, राष्ट्रपति पुतिन के साथ प्रधानमंत्री मोदी का ‘पीस प्लान’ साझा कर सकते हैं। वहीं अगर पुतिन की ओर से सहमति बन जाती है तो फिर आने वाले दिनों में इसे लेकर कोई बड़ी कवायद शुरू होती नज़र आ सकती है। खास बात यह है कि प्रधानमंत्री मोदी अक्तूबर में होने वाली ब्रिक्स समिट के लिए मॉस्को जा सकते हैं। एनएसए अजित डोभाल से मुलाकात के दौरान पुतिन ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ द्विपक्षीय वार्ता का प्रस्ताव भी रखा है, लिहाजा सब कुछ ठीक रहा तो प्रधानमंत्री मोदी वाकई इस जंग को रुकवाने में बड़ी और सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध के अलावा भारत मिडिल ईस्ट में शांति के प्रयासों में भी अहम भूमिका निभा सकता है। मिडिल ईस्ट के कई इस्लामिक मुल्कों के साथ भारत के अच्छे संबंध हैं। यूएई, कतर, सऊदी अरब और ईरान जैसे इस्लामिक मुल्क हों या इजरायल, सभी के साथ भारत के रिश्ते समय के साथ बेहतर और मजबूत होते जा रहे हैं। पिछले साल नवंबर में दिल्ली पहुंचे अरब देशों के राजदूतों ने मिडिल ईस्ट में शांति बहाली के लिए भारत की भूमिका को महत्वपूर्ण माना था तो वहीं सोमवार को इजरायल के नए राजदूत रिवेन अज़ार ने बड़ा बयान दिया है, निजी अखबार से बात करते हुए उन्होंने कहा है कि यह भारत पर निर्भर करता है कि वह गाज़ा युद्ध के समाधान के लिए किस हद तक शामिल होना चाहता है।
दरअसल 7 अक्तूबर को जब हमास ने इजरायल पर हमला किया तो भारत उन देशों में शामिल था जिसने सबसे पहले इस आतंकी हमले की निंदा की थी। हमले के ठीक 3 दिन बाद 10 अक्तूबर को इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने प्रधानमंत्री मोदी को फोन किया था। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इजरायल के लिए भारत कितना अहम है। वहीं पिछले महीने नेतन्याहू के साथ फोन पर हुई बातचीत में प्रधानमंत्री मोदी ने संघर्ष को खत्म करने लिए बातचीत और कूटनीतिक रास्ता अपनाने की अपील की। फिलिस्तीन के नजरिए से देखा जाए तो भारत ने फिलिस्तीन-इजरायल विवाद में हमेशा से ‘टू स्टेट’ समाधान का समर्थन किया है। भारत आज़ाद फिलिस्तीन का समर्थक रहा है और वर्षों से इसके फिलिस्तीन के साथ राजनयिक संबंध हैं। करीब एक सप्ताह पहले भारत में फिलिस्तीन के राजदूत अबू अल-हैजा ने भी शांति के लिए भारत पर भरोसा जताया, उन्होंने कहा कि फिलिस्तीन भी मध्यस्थता के लिए भारत जैसे दोस्त की तलाश में है।
प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में भारत की विदेश नीति में काफी बदलाव आया है। प्रधानमंत्री ने इन 10 सालों में कई ऐसे देशों की यात्रा की जहां कभी कोई भारतीय प्रधानमंत्री नहीं गया था, इससे एक ओर भारत के उन देशों के साथ रिश्ते मजबूत हुए तो वहीं दूसरी ओर विश्व पटल पर भारत की छवि विश्वबंधु वाली बनकर उभरी है। पिछले साल अगस्त में प्यू रिसर्च सेंटर ने भारत को लेकर 23 देशों में सर्वे किया। भारत को लेकर इन देशों का रुख सकारात्मक रहा है। अमरीका, ब्रिटेन, इटली, जापान, साउथ कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और इजरायल समेत 9 देशों में 50 प्रतिशत से ज्यादा लोग भारत को लेकर अनुकूल दृष्टिकोण रखते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीब 11 साल के कार्यकाल के दौरान भारत ने अपनी विदेश नीति को काफी हद तक नया रूप दिया है। उनके कार्यकाल की पहचान अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रति दृढ़ और रणनीतिक दृष्टिकोण से रही है। भारत की सुरक्षा को सर्वोपरि रखना, भारत के वैश्विक कद को बढ़ाना और आर्थिक और सुरक्षा साझेदारी को बढ़ावा देना उनकी विदेश नीति के कुछ हिट्स में से एक हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान मोदी सरकार ने देश के आर्थिक हितों को प्राथमिकता देते हुए जटिल जिओ-पॉलिटिकल परिदृश्यों को कुशलता से संभाला। भारत के इस कदम से न केवल घरेलू ऊर्जा डिमांड पूरी हुई बल्कि बदलते वैश्विक वातावरण में कूटनीतिक संवेदनशीलता और भारत की आर्थिक प्राथमिकता के बीच संतुलन बनाने की क्षमता को भी दिखाया है।