कांवड़ यात्रा के दौरान डिजिटल लेन-देन से परहेज क्यों ?
सावन में पूरे भारत में शिव मंदिरों में होने वाली पूजा-अर्चना में कांवड़ समर्पण का विशेष महत्व है। कांवड़िए गंगाजल कांवड़ में भरकर पैदल यात्रा करते हुए शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक करते हैं। गत वर्षों में कांवड़ यात्रा के दौरान होने वाली परेशानियों को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा के दौरान अपने प्रतिष्ठानों पर दुकान संचालकों का नाम प्रमुखता से प्रदर्शित करने का निर्देश दिया है। यह आदेश उन दुकानदारों के लिए है जो कांवड़ यात्रा मार्ग पर रोज़गार करते हैं। इसके साथ ही दूसरी तैयारियां भी लगभग पूरी हो चुकी हैं। कांवड़ यात्रा 11 जुलाई से आरंभ होगी। ऐसा पहली बार है कि कांवड़ यात्रा के साथ ही मुहर्रम के लिए भी सरकार ने कहा है कि किसी भी ताज़िए के लिए वृक्षों को काटा नहीं जाए और ताजियों की ऊंचाई तय मानक के अनुसार ही हो।
गत वर्ष भी कांवड़ यात्रा के दौरान इसी प्रकार से नाम लिखने को कहा गया था, तो उसका जमकर विरोध हुआ था। इस प्रकार से नाम लिखने की बात को मजहबी राजनीति से जोड़ा गया था। कांवड़ यात्रा यूं तो पूरे देश में होती है, लेकिन उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, मेरठ, बरेली, अयोध्या, प्रयागराज, काशी, बाराबंकी, बस्ती तथा हरिद्वार-ऋषिकेश में इसकी धूम रहती है। बिहार, झारखंड, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड में भी कई ऐसे शिवधाम हैं जहां पर लाखों कांवड़िये, कांवड़ में गंगाजल लेकर शिव का अभिषेक करने जाते हैं। जहां-जहां से गंगा या उस जैसी पवित्र नदियां गुजरती हैं, वहां पर कांवड़ियों की आस्था प्रकट होती है।
यह कहा जा रहा है कि इस तरह के आदेशों से रोज़गार करने वालों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। जो लोग भंडारे लगाते हैं या फिर शिवभक्तों की सेवा आदि करते हैं, वह भी प्रभावित होंगे। यूं अमरनाथ यात्रा भी इस कांवड़ यात्रा के साथ चलती है और दूसरी धार्मिक यात्राएं भी जारी रहती हैं,तो फिर कांवड़ यात्रा मार्ग पर ही यह आदेश क्यों? इसके विपरीत यह प्रश्न भी प्रमुखता से उठाया जा रहा है कि आखिर नाम बताने या अपनी पहचान जाहिर करके रोज़गार करने में बुराई क्या है? दरअसल, इस आदेश के पीछे जो मंशा है वह यह है कि कांवड़ यात्रा के दौरान असामजिक तत्व नाम बदलकर कोई ऐसा काम नहीं करें जिससे माहौल खराब हो या फिर सांप्रदायिक तनाव भड़के।
सावन माह के आते ही हिंदुओं के त्योहार आरंभ हो जाते हैं। इनमें कांवड़ यात्रा, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और गणेश चतुर्थी का पर्व खास महत्व रखता है। कांवड़ यात्रा के दौरान जगह-जगह लगने वाले भंडारे ऐसे होते हैं, जिन पर कांवड़ियों के साथ ही आम यात्री भी प्रसादी ग्रहण करते हैं। इस मार्ग पर जो दुकानें हैं, उनसे भी आम ज़रूरत का सामान खरीदा जाता है। कई बार देखा गया है कि नाम होता है, वैष्णव भोजनालय, जैन भोजनालय, पवित्र भोजनालय या फिर बड़े-बड़े शब्दों में यह बताया जाता है-हमारे यहां शुद्ध शाकाहारी जैन भोजन मिलता है। इसका मतलब है कि बिना प्याज-लहसुन का भोजन। पर इन्हीं दुकानों पर कहीं साइड में अंडे, प्याज, लहसुन रखे होते हैं। सीधा सा मतलब सिर्फ नाम होता है बाकी सभी तरह की वस्तुएं यहां पर मिल जाती हैं। इस स्थिति में शुद्धता-शुचिता के लिए और धार्मिक भावना को ध्यान में रखने के लिए यदि नाम पूछा जा रहा है तो बुराई क्या है? हम अपना नाम बताना क्या नहीं चाहते?
पहलगाम में धर्म पूछकर निर्दयता से हत्या करने का मामला बहुत पुराना नहीं हुआ है। अमरनाथ यात्रा के आरंभ होने से पहले ही यात्रा मार्ग को निष्कंटक रखना शासन-प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है। यात्रा के एक हफ्ते पहले आतंकवादियों से मुठभेड़ भी चिंता का कारण है। यह बात भी याद रखने वाली है कि पहलगाम में जो हत्यारे थे, उनके लोकल सपोर्टर कौन थे, क्या यह पिकनिक स्थल के आसपास छोटे-मोटे दुकानदार थे? इस बात पर अभी भी व्यापक छानबीन जारी है। फिर सोशल मीडिया इतना तीव्र हो चुका है कि एक पोस्ट कुछ भी करा सकती है और थूंक जिहाद जैसी पोस्टें कितनी खतरनाक होती हैं यह किसी को बताने की ज़रूरत नहीं है। ऐसे में यदि दुकानदार अपनी दुकान पर अपना नाम प्रमुखता से प्रदर्शित करता है, तो इसमें गलत क्या है और अगर गलत नहीं है तो विरोध करने की वजह क्या हो सकती है?
जहां तक पहचान छिपाने की बात है तो इसे छिपाकर रोज़गार करने वाले यह बात अच्छे से समझ लें कि अब पहचान छिपाना बहुत मुश्किल हो गया है। किसी भी स्थान पर चले जाइये, यदि वहां पर इंटरनेट काम करता है, मोबाइल रनिंग में है तो तय है कि वस्तु के दाम सीधे बैंक में लेने के लिए पेटीएम या फोन पे, भीम एप जैसी सुविधाएं हैं और इन पर पेमेंट करने के बाद आप असली नाम जान सकते हैं। हां, फर्जीवाडा करने वाले किसी दूसरे के नाम से यह भुगतान करवा सकते हैं,पर यदि वह किसी प्रकार से जांच में आए तो क्या होगा? इन स्थितियों को देखते हुए दुकानदार को नाम प्रदर्शित करने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए।
जो समाजसेवी या मददगार किसी प्रकार से कांवड़ या दूसरे धार्मिक मार्गों पर दुकानदार हैं, भंडारा कर रहे हैं, दूसरों की सेवा के माध्यम से मदद कर रहे हैं, वह नीतिगत रूप से भी अपना नाम बताकर यदि यह काम करते हैं तो उन्हें पूरा धार्मिक-सामाजिक फल मिलेगा। दुनिया के किसी भी मजहब में धोखा देकर, झूठ बोलकर, गलत तरीके से, अपने लाभ के लिए दूसरे की आस्था को ठेस पहुंचाना कभी जायज नहीं माना गया है। चाहे साधु-संत हों या फिर पीर-मौलवी या पादरी-ग्रंथी सभी एक ही बात कहते हैं, सच्चे मन से किया गया कर्म ही आपको आपके मंतव्य के करीब ले जाता है।
धार्मिक आस्था के जानकारों का कहना है कि किसी भी धार्मिक यात्रा में आत्मशुद्धि का खास ध्यान रखा जाना चाहिए। चाहे यह किसी भी धर्म-संप्रदाय की हों। वे मानते हैं कि हमारा आध्यात्मिक विकास तभी हो सकता है जब हमारी आत्मा की शुद्धि हो और इसके लिए पूरी शुद्धता रखनी चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं है कि किसी भी धर्म के विषय में जितनी बेहतर-शुद्ध जानकारी उस धर्म के व्यक्ति को होती हैं, उतनी दूसरे धर्म के व्यक्ति को नहीं, हां इसके अपवाद अलग हैं। आत्मा की शुद्धि के लिए सिर्फ खानपान या दूसरे नियमित कार्य ही ज़िम्मेदार नहीं होते, इसके लिए वातावरण भी पूरा महत्व रखता है। शायद ही कोई धार्मिक यात्रा पर निकला तीर्थयात्री होगा जो अपनी सुबह-शाम किसी फिल्मी गाने, नशीले संगीत से करना चाहेगा। जब इतना कुछ है तो बेहतर यही होगा कि दूसरे की भावना को ध्यान में रखते हुए किसी भी यात्रा मार्ग पर दुकान करने वाले व्यापारी या दूसरे लोग अपना नाम प्रमुखता से लिखें ताकि सभी का मनोरथ, शुचिता के साथ पूरे हो सके।
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