कहर बन कर बरसा मौनसून
धरती की प्यास बुझाने और सृष्टि के सुचारू संचालन के लिए मौनसून की वर्षा बहुत लाज़िम होती है, किन्तु मौनसून की पवनें जब अतिशय बरसने लगें, तो फिर वे कहर बरपा करती हैं जैसा कि आजकल पूरे भारत और खासकर उत्तर भारत में हो रहा है। इस वर्ष मौनसून की पवनें एक तो निर्धारण से 9 दिन पहले आ पहुंचीं, और फिर जब बरसीं, तो इतना कि कहर बरपा कर दिया। विगत लगभग एक सप्ताह में मौनसून के इस कहर ने पंजाब, हिमाचल, उत्तराखंड आदि को दहला कर रख दिया है। अब तक इस क्षेत्र में लगभग एक दर्जन लोग मारे गए और लगभग 60 लोग लापता हैं। भू-स्खलन और मकान आदि गिरने से करोड़ों रुपये का नुक्सान हुआ है। नदी-नाले उफान पर हैं, और बांधों से अतिरिक्त पानी छोड़ा जा रहा है। इस कारण अगले कुछ दिन और इस कहर के बने रहने की बड़ी आशंका है। स्थिति यहां तक गम्भीर हो गई है कि हिमाचल में कई स्थानों पर वायु सेना की मदद लेनी पड़ी है। जमकर बरसी इस बरसात ने खेतों एवं कृषि के लिए वरदान बनने के स्थान पर उन्हें नुक्सान ही पहुंचाया है। धान की बोई गई गई फसल बुरी तरह खराब हुई है। इन सात दिनों में आकाश से इतना पानी बरसा है कि पूरे देश में जल-प्लावन जैसी स्थिति बन गई है। उत्तराखंड में बद्रीनाथ यात्रा, चार धाम यात्रा और गुरुद्वारा श्री गुरु हेमकुंट यात्रा में कई बार व्यवधान उपजा है। अमरनाथ यात्रा को भी पहले चरण पर ही अव्यवस्थित होना पड़ा। जम्मू-कश्मीर में भी बड़े स्तर पर बाढ़ द्वारा विनाश ढाये जाने के चिन्ह दिखे हैं।
हिमाचल में समय-पूर्व पहुंची मौनसून की वर्षा ने ऊपरी क्षेत्रों में भी भारी विनाश किया है। पूरे हिमाचल और खासकर कुल्लू, कांगड़ा तथा मण्डी में अनेक जगहों पर बादल फटने से उपजे पानी और गाद में अनेक लोग बह गये। लापता लगभग 36 लोगों की तलाश जारी है। मण्डी में बादल फटने की ताज़ा घटना में 5 लोग मारे गए तथा 15 लापता हुए हैं। मंडी में लापता लोगों में से 5 लोगों के शव मिले हैं। कालका-शिमला रेल यातायात भी अवरुद्ध हुआ है। प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविन्द्र सिंह सुक्खू के अनुसार प्रदेश में अब तक 500 करोड़ रुपए से अधिक की क्षति आंकलित की गई है। मौसम विभाग ने उत्तराखंड और हिमाचल में अगले दिनों में भारी वर्षा के कारण बड़े स्तर पर भू:स्खलन होने और बाढ़ों के उपजने की चेतावनी जारी की है। इस चेतावनी के अनुसार हिमाचल एवं पंजाब में सतलुज और ब्यास नदियों में पानी अनुमान से अधिक बह रहा है जिससे पंजाब के निचले क्षेत्रों में बाढ़ के हालात उपजने की बड़ी आशंका है। हिमाचल के बांधों में भी पानी लबालब भर जाने से, नदियों में पानी का स्तर पहले ही चरण में बहुत बढ़ गया है। इस कारण पंजाब की नहरों में भी बड़े स्तर पर पानी छोड़ा गया है। पंजाब के कुछ भागों में भारी वर्षा होने से वहां भी भारी नुक्सान झेलना पड़ा है। रोपड़, पठानकोट, अमृतसर, जालन्धर और फिरोज़पुर आदि ज़िलों में खेतों में पानी भर जाने से कृषि और कृषक को भारी नुक्सान होने की बड़ी आशंका है। फिरोज़पुर में नहरों और खड्डों में पानी भर जाने से एक खड्ड के पानी में डूबने से दो बच्चियों की मृत्यु होने की भी सूचना मिली है।
मौनसून की पवनों का आगमन और इस दौरान आकाश से पानी बरसना प्राकृतिक नियमों एवं कुदरत की कार्य-प्रणाली का एक अहम हिस्सा है। धरती पर जीवन और सृष्टि के चलते रहने के लिए मौनसून की प्रक्रिया बहुत ज़रूरी होती है किन्तु मौनसून की बारिश अधिक बरसे तो विनाश भी ढाती है। प्रत्येक वर्ष मौनसून की वर्षा अपने कहर का असर दर्शाती है। ब्रह्मपुत्र की बाढ़, केरल, पूर्वी राज्यों, उत्तर भारत में हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और पंजाब भी मौनसून में पैदा हुई वर्षा की विभीषिका से प्रभावित होते रहे हैं। इस वर्ष भी ऐसा ही हुआ है। भारी वर्षा से उपजी बाढ़ों एवं भू-स्खलन आदि की घटनाओं से भारी विनाश हुआ है, किन्तु पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे कृषि-प्रधान प्रांतों में मौनसून की वर्षा खरीफ की फसलों की बुआई के लिए अक्सर लाभकारी भी सिद्ध हुआ करती है। वर्तमान मौसम में भी जहां कुछ क्षेत्रों में बोई गई धान की फसल को नुक्सान हुआ है, वहीं आगामी बुआई हेतु खेतों को पर्याप्त पानी भी मिला है। अब यदि आने वाले समय में बाढ़ जैसी स्थितियां नहीं उपजतीं तो धान की फसल अच्छी हो सकती है। प्रकृति यदि मनुष्य के लिए वरदान बनती है, तो कभी-कभार यह अपने पथ पर मनुष्य के दखल के कारण विनाश का सबब भी बनती है, जैसा कि आजकल हो रहा है। नि:संदेह प्रकृति के कार्य क्षेत्र में मनुष्य के बढ़ते दखल से तापमान में भारी वृद्धि हुई है। बड़े ग्लेशियर पिघलने से बाढ़ों का ़खतरा बढ़ा है। यहां तक कि कई जगह इसी कारण प्रकृति चक्र में परिवर्तन भी हुआ है। हम समझते हैं कि नि:संदेह मनुष्य को बदलना होगा, और प्रकृति के साथ उसे संतुलन बनाये रखना होगा। तभी इस प्रकार की आपदाओं और आशंकित विनाश से बचा जा सकेगा, अन्यथा ऐसी आपदाएं बार-बार आती रहेंगी और विनाश ढाती रहेंगी।