चिंताजनक है भारतीयों का विदेश की ओर बढ़ता पलायन
भारतीयों का विदेश की ओर बढ़ता पलायन कई वजहों से बहुत चिंताजनक है। पिछले दिनों जब केंद्रीय विदेश राज्यमंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने राज्यसभा में विदेश जाने वाले भारतीयों के आंकड़े पेश किए थे, तब से यह संदर्भ चिंता का विषय बना हुआ है, क्योंकि अगर भारतीयों के विदेश की ओर बढ़ते पलायन को हम आंकड़ों में देखें तो पता चलता है कि अकेले साल 2023 में ही भारत की नागरिकता छोड़ कर विदेश जाने वाले भारतीयों की संख्या 2,16,219 थी जबकि उसके पहले साल 2022 में 2,25,620, 2021 में 1,63,370, 2020 में 85,256 और 2019 में 1,44,017 भारतीयों ने देश की नागरिकता छोड़ी थी। याद रखिये, यह संख्या भारतीयों के विदेश जाने वाले लोगों की संख्या नहीं है, यह संख्या उन लोगों की है, जो हमेशा के लिए देश छोड़कर विदेश जा बसे हैं।
वैसे हर साल पढ़ने, कारोबारी कामकाज और नौकरियों आदि के लिए 20 लाख से भी ज्यादा भारतीय विदेश जाते हैं। भारत के बाहर विभिन्न देशों में बसे भारतीय प्रवासियों की संख्या अब बढ़ कर 3 करोड़ से भी ज्यादा हो गई है। एक ज़माने में दुनिया में सबसे ज्यादा चीनी प्रवासी हुआ करते थे। अब हमने उनके रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। संख्या के मामले में भी और विदेशों से आने वाली धनराशि के मामले में भी। विदेश जाकर कमाकर भारतीयों द्वारा अपने देश भेजे जाने वाली धनराशि भी अब 90 अरब डॉलर से भी ज्यादा हो चुकी है। इसके कई मायने हैं। एक तरफ जहां बड़ी संख्या में भारतीयों के बाहर जाने से हमारा बहुत तेज़ी से आर्थिक विकास हो रहा है, भारतीय संस्कृति का दुनिया के कोने-कोने में प्रसार हो रहा हैं, इससे भारत की आर्थिक ही नहीं राजनीतिक और कूटनीतिक ताकत भी बढ़ रही है।
इस तरह देखें तो चिंता भारतीयों का विदेश जाना नहीं है, चिंता यह है कि कुछ लोग भारत की नागरिकता छोड़ कर क्यों जा रहे हैं? क्योंकि ज़ाहिर है जब भारतीय अपनी नागरिकता छोड़ कर दूसरे देशों में जाएंगे तो भारत से अपनी धन-सम्पत्ति भी लेकर जायेंगे। इससे देश की आर्थिक ताकत प्रभावित होती है। इसी के साथ ही वे भारतीय भी देश की चिंता का बड़ा विषय बने हुए हैं, जो भारत में विभिन्न तरह के अपराध, जिनमें खासतौर आर्थिक गबन शामिल हैं, करके विदेश भाग रहे हैं। पिछले एक दशक के भीतर ऐसे अपराधियों ने भारत को 40,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का चूना लगाया है।
कुल मिलाकर जिन भारतीयों के विदेश जाने को लेकर फिलहाल में खूब चिंता जतायी जा रही है, वे यही लोग हैं जो तरह-तरह के अपराध करके भाग रहे हैं या अपनी धन-सम्पत्ति लेकर हमेशा हमेशा के लिए भारत छोड़ रहे हैं। ऐसा नहीं है कि पहले भारतीय हमेशा के लिए देश की नागरिकता छोड़ कर विदेश नहीं जाया करते थे। अगर सरकारी आंकड़ों को ही देखें तो साल 2011 में 1,22,819, 2012 में 1,20,923, 2013 में 1,31,405, 2014 में 1,29,323, 2015 में 1,31,489, 2016 में 1,41,603 और 2017 में 1,33,049 भारतीय इसी तरह से हमेशा के लिए देश की नागरिकता छोड़ कर चले गये थे। सवाल है कि फिर आखिर इस समय में हम भारतीयों के देश छोड़ कर जाने को लेकर इस कदर चिंतित क्यों हैं? इसकी दो वजहें हैं। एक वजह तो यह है कि नि:संदेह देश की नागरिकता छोड़ कर विदेश जाने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस संख्या का बढ़ना इसलिए खतरनाक है, क्योंकि नागरिकता छोड़ कर विदेश जाने वाले, आम लोग नहीं हैं। ये आम तौर पर औसत भारतीय मध्यवर्ग से भी बेहतर आर्थिक स्थिति वाले लोग हैं। जो न सिर्फ भारत में ठीक-ठाक आर्थिक उपार्जन कर रहे थे बल्कि उनके कारण बड़े पैमाने पर रोज़गार भी बढ़ रहा था या इनके यहां होने पर बढ़ने की संभावना थी। इस तरह इनका जाना महज जाना नहीं बल्कि अपने साथ धन-सम्पत्ति लेकर हमेशा के लिए चले जाना भी है। इस तरह इनका देश से चले जाना देश का आर्थिक रूप से कमज़ोर होना है। आर्थिक शब्दावली में कहें तो ये देश के एसेट हैं। इसका दूसरा चिंताजनक पहलू यह है कि पहले जहां भारतीय विदेश जाकर कुछ गिने-चुने दुनिया के विकसित देशों में ही नागरिकता हासिल करते थे जैसे—अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस या ऐसे ही यूरोपीय देश। लेकिन हाल के सालों में विदेश जाने वाले भारतीयों द्वारा दूसरे देशों की नागरिकता लेने का ब्योरा बेहद चौंकाता है। मसलन 2018 से 2023 के बीच भारत छोड़ कर गये लोगों ने दुनिया के 114 अलग-अलग देशों में नागरिकता हासिल की, जिनमें अमरीका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे सम्पन्न और विकसित देश तो थे ही, इसमें पाकिस्तान, नेपाल और केन्या जैसे देश भी शामिल थे, जो भारत के मुकाबले कहीं भी नहीं टिकते। यह हैरान करने वाली बात है कि पिछले छह सालों में 70 लोगों ने पाकिस्तान की और 130 लोगों नेपाल की नागरिकता हासिल की है। साथ ही 1500 लोगों ने केन्या की नागरिकता हासिल की है। ये वे देश हैं जिनकी छवि दुनिया में छोड़िये, भारतीयों के बीच भी बहुत अच्छी नहीं है।
पाकिस्तान को आमतौर पर भारतीय लोग मानसिक तौर पर एक दुश्मन देश के रूप में चिन्हित करते हैं। ज़ाहिर है इसलिए लोग पाकिस्तान जाकर नहीं बसना चाहेंगे, क्योंकि लोगों के पाकिस्तान जाने का नकारात्मक प्रभाव उनके परिजनों और भारत में रह गये नाते-रिश्तेदारों पर भी पड़ता है। हालांकि नेपाल और केन्या की तस्वीर आम भारतीयों के ज़हन में ऐसी नकारात्मक नहीं है, लेकिन हर कोई जानता है कि नेपाल और केन्या दोनों ही अत्यंत गरीब देश हैं ।
इसके बाद भी 1500 लोगों का केन्या में जाकर बस जाना खास तरह की चिंताएं पैदा करता है। तो सवाल है इस स्थिति में इस पलायन का कारण क्या है ? इसके पीछे कई वजहें हैं जो कई तरह की सच्ची-झूठी चिंताएं उजागर करती हैं। जो विभिन्न स्तरों पर भारत छोड़कर जाने वाले लोगों के जरिये ही सामने आ रही हैं। जैसे भारत के एक बड़े और पढ़े-लिखे वर्ग का आरोप यह है कि सामाजिक और राजनीतिक दोनों ही स्तरों पर अच्छी और सरकारी नौकरियां या तो उन लोगों को मिलती हैं जिनके भरपूर राजनीतिक और प्रभावशाली सम्पर्क हैं या फिर उन लोगों को जिन्हें नौकरी देना आज राजनीतिक दबाव की वजह बन गया है। भारत में सबसे ज्यादा विदेश में जाकर बसने वाले लोग गुजरात, पंजाब और दक्षिण भारत के विभिन्न प्रदेशों के लोग हैं, जिसका एक कारण बड़े पैमाने पर उनके विदेशों में मौजूद सम्पर्क हैं। कहने का मतलब यह है कि भारत से विदेश जाकर बसने वाले लोग खुशी से या आनंद लेने के लिए नहीं जा रहे, अपितु उनकी भी अपनी समस्याएं हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर