अमरीका की शर्तों पर न किया जाए कोई समझौता

ताली एक हाथ से नहीं बज सकती। यह सही है कि अमरीका आर्थिक व सैन्य दृष्टि से अब भी ताकतवर है, लेकिन अब उसका प्रभाव पहले जैसा नहीं और यह एक तथ्य है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कद बढ़ा है। पिछले दिनों भारत की पाक पर की गई स्ट्राइक से पाक, चीन और अमरीका तिलमिलाए हुए हैं। वैश्विक स्तर पर भारत ने पिछले कुछ समय से अपना एक अलग प्रभाव बनाया है। 
ऐसे में भारत को चीन एवं अमरीका, दोनों से सावधान रहने के साथ अपनी आर्थिक शक्ति बढ़ानी चाहिए। अमरीका और विशेष रूप से राष्ट्रपति ट्रम्प से ऐसे संकेत मिलना अच्छा तो है कि भारत से जल्द व्यापार समझौता हो सकता है, लेकिन मोदी सरकार को इसके प्रति सतर्क रहना होगा कि यह समझौता ट्रम्प की शर्तों अथवा उनके दबाव और प्रभाव में बिल्कुल भी न होने पाए। भारत को इस मामले में साहस के काम लेना चाहिए, क्योंकि ट्रम्प केवल अमरीका और यहां तक कि अपने निजी हितों को प्राथमिकता दे रहे हैं। वह अमरीका को महान बनाने के लिए कुछ ज़्यादा ही जल्दी दिखा रहे हैं। दूसरी तरफ अमरीका और चीन का पाकिस्तान के प्रति सहानुभूति और उसे हर तरह की सहायता देना भारत के लिए चिन्ता का विषय है। ऐसे में भारत को चीन के साथ अमरीका से भी किसी तरह के समझौते से पूर्व इस पर गहन मंथन करना चाहिए। 
वैसे तो अमरीकी राष्ट्रपति के रूप में उन्हें अमरीका के हितों की चिंता करनी चाहिए, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह अपनी ही नीतियों के विपरीत आचरण करें और भारत सरीखे मित्र देश के प्रति बेरुखी दिखाएं। यह तो हद ही है कि वह भारत के हितों की चिंता करने के बजाय उस पाकिस्तान के प्रति सहानुभूति दिखा रहे हैं, जिसे अपने पहले कार्यकाल में धोखेबाज, आतंकियों का समर्थन करने एवं अमरीका से छल करके पैसे ऐंठने वाला बता चुके हैं। अब वह उसके सबसे बड़े हितैषी दिखना चाह रहे हैं। वैसे भी ट्रम्प की मनमानी टैरिफ नीति चल नहीं पा रही है और उन्हें अपने कठोर रवैये को मजबूरी में नरम करना पड़ा है। इसके चलते उनकी देश-विदेश में फजीहत हो चुकी है। वैसे तो ट्रम्प शांतिदूत बनना चाहते हैं, लेकिन वह अमरीकी राष्ट्रपति से अधिक व्यापारी बनने पर आमादा हैं। यह उनकी मज़र्ी कि जो चाहे करें, लेकिन भारत को उन्हें अपने साथ मनमानी नहीं करने देनी चाहिए। भारत ने यह कह कर सही किया कि उसे व्यापार समझौते की जल्दी नहीं। ऑपरेशन सिंदूर और इज़रायल-ईरान युद्ध में ट्रम्प के दोहरे रवैये को पूरी दुनिया ने देखा है। यदि भारत को अमरीका की आवश्यकता है तो उसे भी भारत का साथ चाहिए। दो देशों के बीच मित्रता तभी कायम रह पाती है, जब वे एक-दूसरे के हितों का सम्मान करते हैं, परन्तु ट्रम्प ऐसा नहीं कर रहे हैं।
इस समाचार पर विचार करना बनाता है कि पिछले दिनों अमरीका ने चीन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इस दौरान ट्रम्प ने यह घोषणा भी की कि जल्द ही भारत के साथ भी अमरीका बहुत बड़ी डील करने वाला है। अमरीकी राष्ट्रपति ने कहा, ‘हम कुछ बेहतरीन सौदा कर रहे हैं और हम एक और डील करने जा रहे हैं तथा भारत के लिए दरवाज़े खोल रहे हैं। चीन के साथ सौदे में हम चीन के लिए दरवाज़े खोलने जा रहे हैं।’ इससे इतना तो तय है कि अमरीका यहां एक व्यापारी के हैसियत से सामने आया है। उसे भारत की मित्रता या भारत के हितों से कोई लेना देना नहीं। उसके लिए चीन और भारत एक जैसे हैं। एक तरफ अमरीका भारत को ‘अहम रणनीतिक साझेदार’ बताता है, वहीं दूसरी तरफ  वही अमरीका अब भारत को ‘असुरक्षित देश’ घोषित करने की कोशिश में लगा है। अमरीकी विदेश विभाग की हालिया ट्रैवल एडवाइज़री ने भारत में राजनीतिक और कूटनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। इस एडवाइज़री में अमरीका ने भारत को ‘लेवल-2 यानि अतिरिक्त सावधानी बरतें’ की श्रेणी में रखा है। अमरीका ने अपने नागरिकों को चेताया है कि भारत में यात्रा करते समय अपराध, आतंकवाद, यौन उत्पीड़न और सामुदायिक हिंसा की आशंका ज्यादा है। विशेष रूप से महिलाओं को अकेले यात्रा न करने की सलाह दी गई है। ऐसे कई उदाहरण हैं जिससे यह सिद्ध होता है कि अमरीका के लिए सभी देश एक जैसे हैं। उसका किसी से कोई आत्मीय रिश्ता न होकर केवल व्यापारिक रिश्ता है, ऐसे में भारत को सर्तक रहकर कोई निर्णय लेना चाहिए। 

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