युद्ध की विभीषिका से कब मुक्ति पाएगा इंसान 

हालांकि भारत और पाकिस्तान तथा इज़राइल और ईरान के बीच युद्ध की विभीषिका शांत हो गई है और इन दो बड़े युद्धों से दुनिया कम से कम अभी तो बच गई है, मगर कोई निश्चित तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि इन देशों के बीच या कहीं भी कब किस मुद्दे पर कोई युद्ध शुरू हो जाए। आज हालत यह है कि दुनिया के लगभग 92 देश इस समय बाहरी और आंतरिक युद्ध के साये में जी रहे हैं। किसी पर युद्ध थोप दिए गए हैं, कोई खुद युद्ध में उलझ रहा है। किसी का युद्ध अपनी सीमा से सटे हुए देश के साथ चल रहा है तो किसी का युद्ध आंतरिक व्यवस्थाओं के चलते जारी है। कोई आतंकवादी संगठनों के खिलाफ लड़ रहा है तो कोई सत्ताधारी दल या सरकार को उखाड़ फेंकने में लगे विपक्षियों से लड़ रहा है। कुल मिलाकर इस समय युद्ध की काली छाया में जी रहा है विश्व। 
आश्चर्य की बात यह है कि दुनिया का हर छोटा-बड़ा देश और नेता शांति की बात करता है और जानता है कि हर समस्या का हल केवल बातचीत की मेज़ पर बैठकर ही मिलता है, लेकिन फिर भी युद्ध चल रहे हैं। जब युद्ध रूस एवं यूक्रेन जैसे देशों के बीच होता है तो मीडिया के माध्यम से दुनिया को पता चल जाता है फिर मीडिया पर विश्लेषण शुरू हो जाता है। कोई इस पक्ष में तो कोई उस पक्ष में झुका हुआ दिखाई देता है। कोई एक पक्ष को विजयी बताने लगता है तो कोई दूसरे पक्ष के दम-खम का गुणगान करने लगता है, लेकिन यह कहने वाले लोग बहुत कम हैं कि यह युद्ध निर्रथक मुद्दों पर होते आए हैं और होते रहेंगे। 
खैर युद्ध और मानव सभ्यता का एक दूसरे से चोली दामन का साथ रहा है। जैसे-जैसे मानव ने प्रगति की, उसकी इच्छाएं बढ़ती गईं और इन इच्छाओं व द्वेषभाव के कारण संघर्ष शुरू हुए। ये संघर्ष छोटे-छोटे व्यक्तिगत संघर्षों से कब वर्ग, संप्रदाय, क्षेत्रों से होते हुए देशों के बीच होने लगे। यह पता ही नहीं चल पाया और देखते ही देखते दुनिया के हर कोने को युद्ध ने अपने पंजों में जकड़ लिया। 
यदि पूरी दुनिया पर नज़र डाली जाए तो इस समय अधिकांश युद्ध आतंकी संगठनों के कंधों पर बंदूक रखकर लड़े जा रहे हैं। पाकिस्तान, सीरिया, ईरान और लेबनान जैसे देश अनेक आतंकी संगठनों को फंडिंग करते हैं, उन्हें हथियार और समर्थन तथा लड़ाके उपलब्ध कराते हैं और अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु उनका उपयोग करके अपने प्रतिद्वंदी देश को तबाह करने का सपना देखते हैं। किसी हद तक ऐसे देश अपने इस कृत्य में सफल भी रहते हैं, क्योंकि यदि किसी देश के साथ प्रत्यक्ष युद्ध किया जाता है तो उसमें भारी मात्रा में संसाधन एवं हथियार तो लगते ही हैं, साथ ही साथ हारने का भय और दुनिया से अलग-थलग हो जाने का डर भी रहता है जबकि ऐसे संगठन जिनमें युवा एवं किशोरों को उनका ब्रेनवाश करके कभी धर्म, तो कभी क्षेत्र तथा कभी जाति अथवा मज़हब के नाम पर आसानी से इस्तेमाल किया जाता है। 
और यदि ये आतंकी पकड़े या मारे जाते हैं तो उनसे किसी भी संबंध से इन्कार करने में इन देशों की सरकारों को कोई हिचक नहीं होती। भारत की ही बात करें तो सारी दुनिया को पता है कि अजमल कसाब पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी द्वारा भेजा गया आतंकी था, जिसने मुंबई में हत्याकांड को अंजाम दिया, लेकिन उसके पकड़े जाने पर पाकिस्तान ने तुरन्त पल्ला झाड़ लिया। कुछ ऐसा ही ईरान, लेबनान तथा सीरिया भी कर रहे हैं। हिज़्बुल्लाह, हमास या हूती जैसे संगठन आज इन देशों के लिए काम करते नज़र आ रहे हैं जिस कारण अमरीका के समर्थन से इज़रायल मध्य पूर्व के इस्लामी देशों से लगातार लड़ता आ रहा है। अब यह लड़ाई कितनी लम्बी चलेगी, कुछ नहीं कहा जा सकता। दुनिया के एक कोने से युद्ध या संघर्ष खत्म होता है तो दूसरे कोने में शुरू हो जाता है। कहीं शासकों की ज़िद एवं हठधर्मिता है तो कहीं उन्हें उखाड़ फेंकने, प्रतिशोध लेने एवं द्वेष की भावना दो देशों को भी लड़वाती है । 
खैर, युद्ध से दुनिया को एकदम बचा लेना आज बड़ा मुश्किल काम है, मगर पिछले कुछ वर्षों में युद्धों ने कुछ बड़ी विचित्र स्थितियां भी पैदा की हैं। यदि हाल के ईरान-इज़रायल संघर्ष पर निगाह डाली जाए तो दोनों पक्ष अपने आप को विजयी बता रहे हैं। 12 दिन के युद्ध के बाद इज़रायल एवं ईरान दोनों ही पक्षों का भारी नुकसान हुआ है। इज़रायल ने आक्रामक अंदाज़ में ईरान के वायु क्षेत्र पर कब्ज़े का दावा किया और वहां भारी मात्रा में बमबारी करके बहुत नुकसान पहुंचाया तो पलट कर ईरान ने भी अपनी मिसाइलों से इज़राइल में तबाही मचाई। जब बात हाथ से जाती दिखी तो अमरीका ने खुद युद्ध में कूदते हुए ईरान के परमाणु ठिकानों पर बी-2 विमान से हमला करके उसके परमाणु संस्थानों को नष्ट करने का दावा किया। आखिरकार युद्ध विराम हो गया। अमरीका का कहना है कि उसने ईरान के परमाणु ठिकाने नष्ट करके अपना लक्ष्य हासिल कर लिया है। 
निश्चित ही युद्ध का कारण कभी एक तरफा नहीं होता, कोई कम तो कोई ज़्यादा गलत होता है। उदाहरणस्वरूप यदि यूक्रेन नाटो में शामिल होना चाहता है तो रूस उसे सबक सिखाने के लिए युद्ध छोड़ देता है और रूस के भय से यूक्रेन पश्चिमी देशों की शरण में चला जाता है। पाकिस्तान यदि आतंकियों के माध्यम से भारत को लगातार परेशान करता है तो भारत पर बलोचिस्तान में बलोचों को उकसाने का आरोप लगाया जाता है। इज़रायल अस्तित्व में आने के बाद से ही क्षेत्र में तनाव बना रहा है। उधर इस्लामिक देशों का कहना है कि अमरीका की शह पर इज़रायल उन्हें लगातार परेशान करता है। अब देखना है कि इंसान कब इन युद्धों की विभीषिका से मुक्ति पाता है। (युवराज)

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