पानी ही जीवन की धड़कन है

देश के समक्ष दो अति गम्भीर समस्याएं दरपेश हैं। पहली है लगातार बढ़ती हुई जनसंख्या और दूसरी पानी का लगातार कम होते जाना। जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए अभी तक प्रभावशाली एवं अच्छी योजनाएं सामने नहीं आईं, जिन्हें क्रियात्मक रूप दिया जा सके। यह बात सुनिश्चित है कि यदि अभी से ही सराल की भांति बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए यत्न न किये गये तो इस मुहाज पर आने वाला संकट बेहद गम्भीर होगा। दूसरी तरफ यदि पानी को बचाने के लिए प्रत्येक स्तर पर बड़ी योजनाएं न बनाई गईं तो यह संकट पहले से भी अधिक गम्भीर हो जाएगा। यह बात भी सुनिश्चित बनी दिखाई देती है कि दुनिया भर में पानी के मामले को लेकर बड़े युद्ध होंगे। अपने देश में भी पानी के अन्तर्राज्यीय झगड़े लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इस बड़ी जनसंख्या वाले देश में विश्व भर के पीने वाले पानी के स्रोतों में भारत के पास मात्र 4 प्रतिशत स्रोत ही रह गए हैं। हालांकि आज भी हम देश में कल-कल बहती नदियों का ज़िक्र करते हैं। यह बात भी चिन्ताजनक है कि हमारे पानी के स्रोत लगातार व्यापक स्तर पर प्रदूषित हो रहे हैं।
सदियों पहले बाहर से यहां आकर बसने वाले लोगों ने पानी के स्रोतों के पास ही अपनी बस्तियां बसा ली थीं अथवा रहने के ठिकाने बनाए थे। इसी कारण ही भारत की पुरातन सभ्यताएं प्रफुल्लित हो सकी थीं। उस समय भी लोग पानी के महत्त्व को जानते थे। इसीलिए ही नदियों की पूजा की जाती थी तथा यह कहा जाता था कि जहां पानी है, वहीं पर जीवन धड़कता है, परन्तु आज ये स्रोत भारी सीमा तक सूखते तथा खत्म होते जा रहे हैं। इसका मुख्य कारण देश में हर ओर पानी का दुरुपयोग किया जाना है। आज भी इस अहम स्रोत के प्रति लोगों में चेतना नहीं आई। न ही इन स्रोतों को बचाने के प्रति वे यत्नशील ही हुए हैं। इस काम में सरकारों की योजनाबंदी शामिल हो सकती है परन्तु इससे भी अहम इस ़खज़ाने को बचाने के प्रति लोगों में चेतना तो पैदा होना ज़रूरी है। नि:संदेह तत्कालीन सरकारों ने इस ओर बहुत यत्न किये हैं, परन्तु उनके अच्छे परिणाम सामने नहीं आये। आज सर्दी-गर्मी में देश के ज्यादातर भाग पानी के संकट से जूझते दिखाई देते हैं। जहां-जहां वर्षा अपना वरदान न दे, वहां-वहां ही सूखे का प्रकोप पैदा हो जाता है। इस संबंध में जन-आन्दोलन शुरू करने की कड़ी ज़रूरत महसूस होती है। विगत दिवस प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस संबंध में अपने सम्बोधन में भावपूर्ण बातें कही हैं, जिन पर शीघ्र अमल किए जाने की ज़रूरत है। उन्होंने पानी को एकत्रित करना, इसकी सुरक्षा करना तथा इसके स्रोतों को पूरी तरह सम्भालने की बात की है। उन्होंने यह भी कहा है कि पानी का सोच-समझ और समुचित उपयोग किया जाना चाहिए। इसका पुन: उपयोग करना चाहिए। धरती के गर्भ को भी पानी से पुन: लबालब किये जाने की ज़रूरत है। इसकी सम्भाल तथा उपयोग के लिए नई तकनीकें अपनाई जानी चाहिएं।
उन्होंने कहा कि आज ज्यादातर पानी सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है। इसलिए कृषि को ड्रिप (बूंद) सिंचाई के साथ जोड़ने की ज़रूरत होगी। उन्होंने यह भी कहा कि दूर-दराज के गांवों तक पीने वाला पानी उपलब्ध करवाने के लिए सरकार यत्नशील है। इस संबंध में उनकी सरकार ने 15 करोड़ घरों को जल-जीवन मिशन के साथ जोड़ कर सफलता प्राप्त की है। उन्होंने देश के ज्यादातर भागों में पानी की कमी का ज़िक्र किया परन्तु साथ ही कहा है कि सरकार की ओर से किये जाने वाले यत्नों में लोगों  के योगदान की भी बेहद ज़रूरत है। इसलिए पानी को सम्भालने के लिए हज़ारों ही झीलों का निर्माण किया जाना ज़रूरी है। इस संबंध में उन्होंने आने वाले समय में प्राथमिकता के आधार पर पानी की सार-सम्भाल तथा इसका समुचित उपयोग करने के लिए सरकारी योजनाओं को पूर्ण करने का प्रण लिया है, जिनसे वर्षा के पानी को सम्भालने के लिए बड़े यत्न किए जाएंगे। यदि केन्द्र एवं प्रदेश सरकारें जल मिशन अधीन सचेत रूप में योजनाएं बनाएं एवं लोगों के भीतर इसके प्रति चेतना पैदा करके इसे एक लहर का रूप देने में सफल हों तो सभी के साझे यत्नों से ये इस धरती पर जीवन को धड़कता रखने में सहायक हो सकते हैं। नि:संदेह यह एक बड़ी उपलब्धि होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द