भू-जल का स्तर बनाए रखने में सहायक हो सकती है बागवानी
पंजाब में लम्बे समय से धान-गेहूं का फसली चक्र प्रधान रहा है, जिस कारण प्रदेश में भू-जल का स्तर बड़ी तेज़ी से गिर रहा है। इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पंजाब सरकार तथा कृषि विभाग द्वारा फसली विभिन्नता पर ज़ोर देते हुए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। डिप्टी डायरैक्टर बागवानी (सेवानिवृत्त) डा. स्वर्ण सिंह मान के अनुसार फसली विभिन्नता के लिए बागवानी सहायक सिद्ध हो सकती है, परन्तु बागवानों को बागवानी के बारे में पूरी जानकारी होना ज़रूरी है। सामान्य देखा जाता है कि नया बाग लगाते समय बहुत-से बागवान कीटनाशक दवाइयों के दुकानदारों या बागों के ठेकेदारों की सलाह के अनुसार चलते हैं जबकि उन्हें जानकारी देने के लिए सभी ब्लाकों में बागवानी विकास अधिकारी तैनात होते हैं। इसके अतिरिक्त ज़िला स्तर पर सहायक डायरैक्टर बागवानी भी तैनात हैं, जो कि हर समय ज़िमीदारों तथा बागवानों की मदद के लिए तैयार रहते हैं। ये अधिकारी बाग लगाने संबंधी प्रत्येक किस्म की जानकारी उपलब्ध करवाते हैं—जैसे मिट्टी या पानी की जांच करना, नये बाग लगाते समय बाग की ‘लेआऊट’ बनाना, कीड़े-मकौड़ों के हमले का तकनीकी ढंग से इलाज करना तथा नये बाग लगाने के लिए बनती सब्सिडी की राशि आदि। बागवान इन विशेषज्ञों से सलाह लेकर अपनी आमदन में वृद्धि कर सकते हैं। डा. मान ने बताया कि फलदार पौधों की दो किस्में पाई जाती है। पहली किस्म में सदाबहार पौधे आते हैं, जैसे आम, अंगूर, किन्नू, माल्टा, लीची आदि। सदाबहार पौधों को जुलाई, अगस्त तथा सितम्बर में लगाया जा सकता है। दूसरी किस्म में पतझड़ी पौधे जैसे आड़ू, नाशपाति, बग्गूगोशा, अंगूर, अनार, आलू बुखारा, फालसा, अंजीर आदि आते हैं, जिनके पत्ते सर्दियों में गिर जाते हैं। इन पौधों को जनवरी, फरवरी तथा मार्च महीने में लगाया जा सकता है। बागवानों को नया बाग लगाने से पहले हवा रोकने वाली बाड़ अपने खेत के चारों ओर लगा देनी चाहिए। इस बाड़ के लिए देसी आम, जामुन, बिल, देसी आंवला, कटहल आदि लगाए जा सकते हैं। इससे बागवान अपने बाग को गर्म तथा ठंडी हवाओं से बचा सकेंगे और आंधी तथा तेज़ हवाओं से फलों का नुकसान नहीं होगा।
डा. मान कहते हैं कि नया बाग लगाने से पहले बागवानों को पौधों के लिए निर्धारित अंतराल से 3*3 के गड्ढे पौधा लगाने से 15 दिन पहले अवश्य खोद लेने चाहिएं। इन गड्ढों को एक सप्ताह धूप लगने के बाद 1/3 देसी खाद, 1/3 भाग भल ऊपरी डेढ़ फुट की मिट्टी में मिला कर पुन: भरने चाहिएं। पौधे लगाने से पहले पानी अवश्य लगाना चाहिए ताकि गड्ढों की मिट्टी बैठ जाए और रूड़ी की गर्माहट भी खत्म हो जाए। इन गड्ढों को पानी देने के 3-4 दिनों के बाद ही पौधे लगाने चाहिएं।
बागवानों को पौधे लाने के साधनों जैसे ट्राली या टैम्पो आदि में पराली या मिट्टी अवश्य डाल लेनी चाहिए, जिससे पौधों की गाची टूटने का डर नहीं रहता। ऐसा करने से पौधों के मरने की दर बहुत कम हो जाती है। यदि पतझड़ी किस्म के पौधे नर्सरी से लाने हों तो उनकी जड़ों को बोरी में लपेट कर लाना चाहिए, नहीं तो जड़ों को हवा लगने के कारण पौधे मर सकते हैं। बाग लगाते समय पौधे हमेशा बनते रकबे से कम से कम 10 प्रतिशत अधिक लाने चाहिएं। यदि कोई पौधा मर जाता है तो उसी समय उसी तरह का पौधा दोबारा लगाया जा सकता है।
सदाबहार पौधे हमेशा दोपहर के बाद ही लगाने चाहिएं, क्योंकि पौधे रात के समय कम तापमान पर सैट हो जाते हैं। पौधे लगाने के बाद दीमक से बचाव के लिए क्लोरोपाइरोफास 10 लीटर पानी के हिसाब से प्रति पौधा डालनी चाहिए। यह दवाई वर्ष में कम से कम 2 बार अवश्य डालनी चाहिए। दवाई डालने का सही समय दिसम्बर तथा जुलाई/अगस्त है। पौधों को पानी देने के लिए इनके खाल अलग ही बना देने चाहिएं। यदि बाग में कोई अन्य फसल लगाई गई है तो उसका पानी का प्रबंध अलग ही रखें, नहीं तो कई बार पानी की अधिक या कम मात्रा के कारण पौधे मर जाते हैं। नये लगाए बाग में कभी भी धान, चरी बाजरा, कपास या बरसीम की बिजाई नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इससे पौधों के मरने की सम्भावना बढ़ सकती है।
बागवानों को नये लगाए पौधों का सर्वेक्षण करते रहना चाहिए। पियोंद से नीचे कभी भी कोई शाखा नहीं फूटने देनी चाहिए। यदि पौधा टेढ़ा चलता हो तो उसे छड़ी का सहारा दे देना चाहिए। कीड़े-मकौड़ों या बीमारियों का हमला होने पर विशेषज्ञों की सिफारिशों के अनुसार छिड़काव कर देना चाहिए। अधिक गर्मी या सर्दी में पौधों को पराली से ढंक कर रखना चाहिए। इस प्रकार बागवान अपनी आय में वृद्धि करके अपना सामाजिक एवं आर्थिक स्तर ऊंचा कर सकते हैं। पंजाब में भू-जल के गिर रहे स्तर की समस्या का समाधान करने में भी वे अपना योगदान डाल सकते हैं।