नतीजा टांय-टांय फिस्स !
बनावटी मशीनों के साथ असली ज़िन्दगी के समाधान तलाश किये जाने लगे हैं, लेकिन मशीन तो बनावटी नहीं होती। उससे निकला हुआ उत्पादन बनावटी कैसे हो गया? पूछते हो। सवाल पूछोगे तो जवाब मिलेगा। आजकल हर बात को आध्यात्मिक तेवर देने का ज़माना हो गया है। पहले इस संसार को मोह-माया कहते थे, और जीवन को क्षण भंगुर। इसी को अब ज़िन्दगी में उतार लिया गया। इन्टरनैट की ताकत मिलने के बाजे बजने लगे। इन्सान से बड़ी उसकी बनाई मशीनें हो गईं, जिन्हें रोबोट कहते हैं। अपनी बुद्धि का इस्तेमाल न कर सकने वाले लोग कृत्रिम मेधा का आविष्कार करने चले हैं। आविष्कार तो हो गया, लेकिन उसने समस्या के समाधान से पहले गहरी बनावटी मशीनें इन्सान को भेंट कर दीं। इसे ‘डीप फेक’ कहते हैं। इसे आभासी दुनिया कहते हैं अर्थात किसी भी व्यक्ति के मुंह से अपनी मज़र्ी के संवाद निकलवा कर, अपनी मज़र्ी की क्रिया करवा उसका चित्र बना कर आभासी दुनिया पैदा कर दो।
इन्टरनैट की ताकत मिली है। उससे अन्तर्राष्ट्रीय ज्ञान-विज्ञान चिकित्सा उपचार के स्थान पर ठगी अन्तर्राष्ट्रीय हो गई। हावर्ड और आक्सफोर्ड का ज्ञान तो आपकी नई पीढ़ी तक पहुंचा नहीं। हां, अन्तर्राष्ट्रीय साइबर अपराधों ने अवश्य आपके दरवाज़ों पर दस्तक दे दी है। दिन-ब-दिन इनके आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं, तो इनके विरुद्ध कार्यवाही के समाचार भी उतने ही मुखर हो गए हैं। मोबाइल की घण्टी बजाओ, पहले एक लम्बा भाषण इनके विरुद्ध आपको मिलाया जाता है, नतीजा ठन-ठन गोपाल है। हां, धीरज का पाठ अवश्य मिल गया कि ज़रूरी से ज़रूरी बात करने से पहले भी यह भाषण सुनो।
हा, जब ठगी हो जाए, तो इसकी शिकायत दर्ज करवाने के लिए दिये गये नम्बरों पर घण्टी बजती रहती है। कोई उन्हें नहीं उठाता। सम्पर्क संस्कृति की सहायता से शिकायत दर्ज करवाओ, तो भी कोई नतीजा नहीं। न बैंकों से भुगतान रुकता है, न कभी ठगी करने वाला पकड़ा जाता है बल्कि एक उलाहना अवश्य आस-पड़ोस से मिल जाता है, ‘अरे इतने समझदार और पढ़े लिखे हो कर भी आप ठगी का शिकार हो गए। डिग्रियां क्या मूर्ख बनने के लिए बटोरी थीं।’
जी नहीं, क्रांति की घोषणाएं करने में सक्षम होने के लिए बटोरी थीं। उनके लिए अच्छे संवाद बटोरने के लिए प्राप्त की थीं। घोषणाएं होती हैं। फुटपाथी लोगों के कायाकल्प के वायदों की उम्र पैन सदी हो गई, लेकिन बदलाव वहां का वहां खड़ा है। सड़क का आदमी मिथ्या आंकड़ों से पैदा सफलताओं के उत्सव में गुम हो गया और बहुमंज़िली इमारतों के कंगूरे और भी ऊंचे होते गए।
़खैर, अब तो बनावटी मेधा की मशीनें भी ईजाद हो गईं। अब तो अपनी अक्ल, ज्ञान और अभिव्यक्ति के विकास की भी ज़रूरत नहीं। मौलिकता लम्बी छुट्टी पर चली गई। असाधारणता इनसे पैदा किए हुए संवादों में गुम हो गई। इनसे पैदा किए हुए नित्य नये संवादों से अब मंचों से क्रांतियों और परियोजनाओं की घोषणा होगी, जिनका असर कभी दिखाई नहीं देगा।
अर्थात आपके भाषणों, प्रचार, उनकी घोषणाओं और दावों में मशीनी कलाई की पुलाई और हो जाएगी, और नतीजा ठन-ठन गोपाल होगा।
शिक्षा क्रांति घोषणा उम्रदराज़ हो गई। नया सर्वेक्षण भी बताता है कि चार जमात पढ़ने के बाद भी आपको अपनी भाषा की वर्णमाला के शब्द याद नहीं होते। सौ तक की गिनती नहीं कर सकते, न उल्टी न सीधी। दसवीं तक का पहाड़ा नहीं आता। दर और औसत नहीं निकालनी आती। हां, यह प्रचार सुन प्रसन्न होना अवश्य आ गया, कि आपके देश की विकास दर दुनिया में सबसे अधिक हो गई। आप दुनिया की महान आर्थिक शक्ति बन गये, कभी पांचवीं, अब चौथी। जल्द ही तीसरी, और इस आभासी तरक्की के सौ साल गुज़ारोगे तो शायद दुनिया में पहली शक्ति बनोगे।
आभासी तरक्की इसलिए कहा क्योंकि इसका आभास आजकल केवल सफलता की घोषणाओं में होता है, इसके मनाये गये उत्सवों में होता है।
चन्द ऊंची इमारतों के कंगूरों के मालिकों को छोड़ कर असल ज़िन्दगी तो आज टूटे फुटपाथों, और अंधेरी कोठरियों में गुम हो गई है। देश का यौवन टूटे सपनों की शोभा यात्रा में शामिल है, और अपने ही देश से भागने के डंकी रास्ते तलाश रहा है। यहां युद्ध नहीं लड़े जाते, उसमें अपनी सफलता के प्रचार के आंकड़ों की प्रतियोगिता होती है। यहां जन-सेवा का अर्थ आपके गलत कामों को सही करवा देने की सामर्थ्य हो गया है। नेता लोग बलिदान होकर ज़िन्दगियां न्योछावर करके राष्ट्र-निर्माण नहीं करते, सत्ता की कुर्सियों पर जमने के रिकार्ड बनाते हैं। भावी विकास के नाम वंचित लोगों में अनुकम्पा के रिकार्ड वितरण करते हैं, और सन्तुष्ट होकर अपने नाती-पोतों के लिए अपनी गद्दी सुरक्षित कर जाते हैं। देश विकास में मीलों आगे निकल गया, लेकिन आम जनता के लिए नतीजा टांय-टांय फिस रहा। ठन-ठन गोपाल की नियति झेलने वाले अपने आपको परिवर्तन की उन शोभायात्राओं का हिस्सा पाते हैं, जो कहीं नज़र नहीं आता।
लेकिन हमने बनावट में जीना सीख लिया। देखते नहीं हो जिन नेताओं ने भ्रष्टाचार को शून्य स्तर पर भी सहन न करने का वायदा किया था, वही आज महा-भ्रष्टाचार में लिप्त होने के कारण एफ.आई.आर. दर्ज होने पर हिरासत झेल रहे हैं। मुकद्दमा चलेगा, वह बरसों चलेगा। अदालतें साक्ष्य से लेकर चार्जशीट दर्ज होने तक का इंतज़ार करती रहेंगी। कानून के मुताबिक इन आरोपियों को ज़मानत देती रहेंगी। ज़मानत मिलते ही वे फिर क्रांतिवारी हो जाएंगे। चुनाव लड़ेंगे, जीतेंगे, बलदाव के नये नारे उठाएंगे। इन अदालतों के निर्णय की प्रतीक्षा एक सतत इंतज़ार में बदल जाएगी।