कहानी - नया परिवार

जैसे-जैसे दिल्ली नज़दीक आ रहा था, सुरेश के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी। कैसे होगा इस बड़े शहर में गुजारा, जहां कोई जान-पहचान नहीं?
खैर, उसने अपने को समझाया, अब आ ही गया हूं तो कुछ न कुछ कर के ही लौटूंगा।
नई दिल्ली स्टेशन में उतरते ही वह घबरा गया। किसी रेलवे स्टेशन में इतने लोग कभी नहीं देखे थे। सामने की पटरी पर भी एक ट्रेन अभी ही रुकी थी। सुरेश एक कस्बे से आया था उसे इतनी भीड़ में चलने की आदत नहीं थी। एक कदम चलता था तो एक धक्का भी खाता था। एस्केलेटर को तो वह देखकर ही घबरा गया। सीढ़ियों को खोजने लगा। सीढ़ियां मिल तो गईं पर वहां धक्के सबसे अधिक लगे। गिरते-गिरते बचा।
खैर वह स्टेशन से बाहर एक ठीक से खड़े होने की जगह पर पहुंचा तो सोचा कि पहले कुछ खा लिया जाए। पर यह ख्याल आते ही जेब टटोली तो उसके होश हवास ही गायब हो गए। बटुवा गायब था।
अरे, जेब तो बहुत गहरी थी। ट्रेन से उतरने से पहले ही उसने अपनी तसल्ली भी की थी कि जेब में बटुवा ठीक-ठाक था।
पर्स में ही तो सुरेश की कुल जमा पूंजी के कोई 4500 रुपए थे। हैंडबैग में तो बस कुछ दो जोड़ी कपड़े और साबुन वगैरह ही थे।
किसी तरह सुरेश ने एक पार्क ढूंढ़ा और वहां एक बैंच पर बैठ गया। शाम तक बैठा ही रहा- भूखा-प्यासा।
अंधेरा घिरने लगा था। सुरेश की आंखें कुछ मुंदी हुई थी, फिर भी उसे अहसास हुआ कि कोई उसकी ओर बहुत ध्यान से देख रहा है।
उसने भी उस और नज़र घुमाई तो देखा कि कोई 45 वर्ष की आयु का एक खुशमिजाज सा आदमी उसे ध्यान से देख रहा है।
- क्यों भाई जवान, इतने सुस्त से क्यों पड़े हो?
आवाज में कुछ ऐसी सहानुभूति थी, कुछ ऐसा दोस्ताना अंदाज था कि घोर निराशा से घिरे सुरेश की भी बात करने की इच्छा हुई।
- साहब, आज सुबह दिल्ली ट्रेन से पहुंचा और पहुंचते ही किसी ने पर्स गायब कर दिया। तबसे यहीं पड़ा हूं।
-कुछ खाया-पिया?
-नहीं साहब।
उस व्यक्ति ने सुरेश को अपनी पानी की बोतल दी। थैले से बिस्कुट का पैकिट निकाल कर दिया।
पानी पीकर और बिस्कुट खाकर सुरेश के तन में जान आई व वह ठीक से आभार प्रकट करने लगा।
-घर वापस क्यों नहीं चले जाते?
-साहब एक तो वापसी की टिकट के पैसे नहीं बचे और फिर घर किस मुंह से लौट कर जाऊं?
- क्यों? भागके आए हो? कहां के हो?
- साहब मानिकपुर कस्बे में पिताजी की परचून की पुश्तैनी दुकान है। वे मुझे इसी काम में लगाना चाहते थे, मेरा मन इसमें बिल्कुल ठीक नहीं लगता था।
- तो भाग कर ही आए हो। क्या सोच कर यहां आए?
सुरेश ने सिर नीचा कर कहा- साहब बहुत समय से मेरे मन में यह बैठा हुआ है कि दिल्ली या मुम्बई के किसी बड़े होटल में काम करूं। बस इसी चाह ने मुझे यहां भेज दिया।
खैर अब क्या करोगे?
सुरेश सिर झुकाए चुप बैठा रहा।
आज की रात कहां गुजारोगे? थोड़ी देर में गार्ड पार्क से बाहर कर देंगे।
सुरेश फिर चुप।
-मेरे साथ चलोगे?
सुरेश ने बहुत उम्मीद से उसकी ओर देखा।
-जी साहब, आपका अहसान कभी नहीं भूलूंगा।
-यह क्या साहब-साहब लगा रखा है। मेरा नाम जोजफ है। तुम्हारा नाम क्या है?
-सुरेश।
खैर जोजफ ने उसे अपने साथ ऑटो रिक्शा में बिठा लिया। वे एक बहुत बड़े, एकान्त में स्थित बंगले के सामने रुक गए। सड़क के खंबे की हल्की सी रोशनी में सुरेश ने देखा। बंगले के गेट के बाहर लिखा था- सेठ धनपतराय।
सुरेश ने हैरानी से पूछा- आप इतने बड़े घर में रहते हैं?
जोसफ ने उसे चुप रहने का इशारा किया और लंबा चक्कर काटते हुए बंगले के पीछे की ओर चल पड़ा। वहां बहुत से पेड़ लगे हुए थे। वह चुपके से इन पेड़ों की झुरमुट में आ गया। पीछे-पीछे सुरेश भी।
इन पेड़ों के बीच इधर-उधर चलते हुए वे एक छोटे दरवाजे के पास पहुंचे जहां छोटा सा ताला लगा था। जोसफ ने जेब से चाभी निकाल कर इसे खोला और सुरेश को अपने पीछे आने का इशारा करते हुए अंधेरे में अपने फोन से हल्की सी रोशनी करते हुए आगे बढ़ने लगा। यह एक बड़ा सा वाश रूम था। वाशरूम से बाहर निकल कर उसके दोनों दरवाजों को जोसफ ने अच्छी तरह बंद कर दिया व फिर एक बैटरी चालित टेबल लैंप से हल्की रोशनी कर ली।
कम रोशनी में भी सुरेश ने स्पष्ट समझ लिया कि वे बहुत आलीशान कमरे में है। वह इस घटनाक्रम की समझ बनाने की कोशिश कर ही रहा था कि जोसफ ने कहा- कुछ देर बाद सब समझा दूंगा। पहले कुछ खाने का इंतजाम करते हैं।
सुरेश को रसोई में ले जाते हुए जोसफ ने कहा- यह रसोई ठीक से देख लो। कल से तुम ही खाना पकाना।
उसे समझाते हुए, दिखाते हुए जोसफ ने चावल-दाल निकाने और गैस पर चढ़ा दिए।
दोनों ने पेट भर यह खाना खाया। फिर आमने-सामने सोफे पर बैठ गए।
-देखो सुरेश, आज से दो महीने पहने मैं भी बेघर ही था। एक बार इस ओर किसी काम से आया तो तेज़ वर्षा के कारण पेड़ों की झुरमुट के नीचे रुक गया था। फिर वहां भी भीगने लगा तो और पीछे गया व वहां आंधी में वही दरवाजा खुला हुआ पाया जिससे आज हम अंदर आए। जब मैंने देखा कि घर में कोई नहीं है तो थका-हारा मैं यहां सो गया।
(क्रमश:)