गणेश चतुर्थी : विघ्नविनाशक की आराधना का महापर्व

आज गणेश चतुर्थी पर विशेष

हिंदू धर्म में भगवान गणेश अग्रगण्य हैं। उन्हें गणपति यानी पवित्रकों का स्वामी कहा जाता है। वह सिर्फ  मनुष्यों के लिए ही पूज्य नहीं हैं, देवताओं के भी परमपूज्य हैं। इसलिए हिंदू धर्म में गणेश जी के जन्मपर्व गणेश चतुर्थी को दस दिनों के आराधना महापर्व के रूप में मनाया जाता है। गणेश जी के जन्म को लेकर दो तिथियां हैं। शिवपुराण के मुताबिक उनका जन्म भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को हुआ जबकि गणेश पुराण के मुताबिक मंगलमूर्ति गणेश जी का अवतरण भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुआ था। देश में ज्यादातर स्थानों में गणेश पुराण के मुताबिक ही गणपति पर्व यानी गणेश चतुर्थी का महापर्व मनाया जाता है।  यूं तो अब यह पर्व पूरे देश में मनाया जाता है, लेकिन महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इस पर्व की खास धूम रहती है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इसे विनायक चतुर्थी पर्व भी कहा जाता है जबकि महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी के नाम से यह उसी तरह जन जन के उल्लास का प्रतिनिधित्व करता है, जैसे पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा, लेकिन हाल के दशकों में गणेश चतुर्थी ने पूरे देश में एक लोकप्रिय पर्व का रूप ले लिया है। इस साल 7 सितम्बर को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जायेगा, लेकिन जहां तक पंचांग के मुताबिक चतुर्थी तिथि की शुरुआत की बात है तो भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी की शुरुआत हिंदू कैलेंडर के मुताबिक 6 सितम्बर, 2024 को दोपहर बाद 3 बजकर 1 मिनट से हो जायेगी और 7 सितम्बर 2024 को शाम 5 बजकर 37 मिनट तक चतुर्थी की तिथि रहेगी। अत: उदयातिथि की मान्यता के आधार पर 7 सितम्बर से गणेश उत्सव या गणेश चतुर्थी का पर्व शुरु होगा। 
गणेश जी हिंदुओं के अग्रगण्य देवता हैं। इसलिए कोई भी धार्मिक गतिविधि उनकी प्रथम पूजा के बिना शुरू नहीं होती। गणेश जी सभी तरह की बाधाओं को दूर करने वाले विघ्नविनाशक हैं। इसलिए हर शुभ काम के पहले उनकी प्रतिमा की स्थापना होती है। गणेश चतुर्थी के पर्व में पहले दिन यानी चतुर्थी के दिन घर में या किसी सार्वजनिक पंडाल में गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना होती है। उनका अभिषेक किया जाता है। उनके प्रिय फूलों, फलों और मोदकों से उनकी पूजा होती है। माना जाता है कि बड़े पैमाने पर धूमधाम से गणेश चतुर्थी का पर्व महाराष्ट्र में मराठा सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज ने शुरू किया था और बाद में आज़ादी की लड़ाई के दौरान लोकमान्य तिलक ने इसे आधुनिक, सामाजिक और सामुदायिक रूप दिया था। गणेश जी का भारत के सनातन समाज में बहुत महत्व है। इसीलिए उन्हें गणों का देवता यानी लोगों का भगवान कहा जाता है। गणेश जी अपने भक्तों की सभी परेशानियों को दूर करते हैं। 
गणेश जी के जन्म को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। इनमें एक सबसे ज्यादा मशहूर शिवपुराण की कथा के मुताबिक, एक दिन माता पार्वती ने स्नान करने जाने से पूर्व अपने शरीर के मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपनी रक्षा के लिए द्वारपाल बनाकर खड़ा कर दिया। लेकिन उसी समय घर में भगवान शिव आ गये और जब उन्होंने घर में प्रवेश करने की कोशिश की तो उन्हें इस वीर बालक ने रोक दिया। इस पर भगवान शिव के गणों ने इस बालक से भयानक युद्ध किया, परन्तु लड़ाई में उसे पराजित नहीं कर सके, जिससे क्रूद्ध होकर भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से इस बालक का सिर काट दिया। यह देख और जानकर भगवती शिवा बहुत क्रुद्ध हुईं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। तभी सभी देवताओं ने देवर्षि नारद की सलाह पर मां जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें किसी तरह से शांत किया। तब भगवान शिव के कहने पर भगवान विष्णु उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव हाथी का सिर काटकर ले आये और मृत्युंजय रुद्र ने उस मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। मां पार्वती ने अपने बालक को जीवित देखकर हर्षारितेक से उसे अपने गले लगा लिया और उसके देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया। बह्मा, विष्णु, महेश ने भी उस बालक को अग्रपूज्य होने का वरदान दिया। 
गणेश चतुर्थी का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। मान्यता है कि भगवान गणेश ही इस ब्रह्मांड में व्यवस्था बनाते हैं। इसलिए जब लोग कोई नया काम शुरू करते हैं, कोई नया संकल्प लेते हैं, कोई नई बौद्धिक यात्रा शुरू करते हैं या व्यावसायिक उद्यम, तो वे सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करते हैं। गणेश चतुर्थी के पर्व को देश में इसलिए भी धूमधाम से मनाया जाता है कि मुगलों के शासन के दौरान जब वे चुन चुनकर देश की सनातन संस्कृति को नष्ट कर रहे थे, तब छत्रपति शिवाजी ने अपनी माता जीजाबाई के साथ गणेश चतुर्थी का पर्व सार्वजनिक रूप से मनाये जाने की शुरुआत की थी। तब से गणपति का यह त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। गणपति की पूजा का धार्मिक महत्व किसी भी दूसरी पूजा से ज्यादा है।
माना जाता है कि गणपति की साधना करने पर हर किसी को सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। गणपति की कृपा से साधक के सभी दुख दूर होते हैं और बल, बुद्धि और विद्या का आशीर्वाद प्राप्त होता है। गणपति पूजा में सिंदूर और दूर्वा का इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए। ये दोनों ही चीजें गणेश जी को बहुत पसंद हैं। गणपति की पूजा में प्रसाद का भी बहुत महत्व होता है। केला, गन्ना, श्रीफल, मोदक, मोतीचूर का लड्डू आदि गणपति की पूजा में चढ़ाये जाते हैं। ज्योतिष के मुताबिक गणपति की पूजा करने पर ग्रहों से जुड़े सभी शुभ फल प्राप्त होते हैं। गणपति सुख, सम्पत्ति और सौभाग्य प्रदान करने वाले देवता हैं, इसलिए हर सनातन धर्म मानने वाले को गणपति की पूजा करनी चाहिए। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर