लड़खड़ाती चाल

पैट्रोल और डीज़ल की कीमतों में वृद्धि करके पंजाब सरकार ने एक बार फिर लोगों को बड़ा झटका दिया है तथा ऐसा पहली बार नहीं हुआ। अपने अढ़ाई वर्षों के  कार्यकाल में मान सरकार ने तीन बार पैट्रोल और डीज़ल की कीमतों में वृद्धि की है। पहली बार तीन फरवरी, 2023 को पैट्रोल और डीज़ल की कीमत 90 पैसे बढ़ाई गई थी। फिर 11 जून, 2023 को पैट्रोल की कीमत में 92 पैसे और डीज़ल की कीमत में 90 पैसे की वृद्धि की गई थी। अब तीसरी बार पैट्रोल 61 पैसे एवं डीज़ल 92 पैसे प्रति लीटर महंगा किया गया है। यह स्पष्ट है कि सरकार स्वयं आर्थिक बोझ के नीचे दबा हुआ महसूस करने लगी है। सरकारी कर्मचारियों के वेतन में देरी होने लगी है। ज्यादातर अन्य संबंधित संस्थानों में ऐसी अनिश्चितता बनी दिखाई देती है। अढ़ाई वर्ष पहले आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल और दिल्ली के अन्य बड़े नेता भगवंत मान सहित लोगों से बड़े-बड़े वादे कर रहे थे, ऐसे हवाई महल बना रहे थे जिनमें बैठ कर लोग चैन से सोएंगे तथा आराम की ज़िन्दगी व्यतीत करेंगे, परन्तु स्टेट एवं स्टेज चलाने में बहुत अन्तर होता है। प्रशासन चलाने के लिए ड्रामेबाज़ी की नहीं, गम्भीर सोच एवं पुख्ता योजनाबंदी करके उसे सफल बनाने की ज़रूरत होती है। इन नेताओं को उस समय प्रदेश की आर्थिक स्थिति का पता नहीं था? क्या उन्हें यह ज्ञान नहीं था कि मुफ्त की योजनाओं पर जो पैसा लुटाया जाना है, उसका प्रबन्ध कैसे एवं कहां से किया जाएगा? उस समय जो हवा-महल इन नेताओं ने बनाए थे आज वे टूटते और गिरते जा रहे हैं।
उस समय तो वह रेत-बजरी, शराब एवं अन्य अनेक ऐसे क्षेत्र बताते रहे थे, जिनसे उन्हें अरबों रुपये की आय होनी थी, परन्तु उस समय के गिनाए गए अरबों रुपये आज लाखों या कुछ करोड़ों रुपये तक ही सीमित होकर रह गए हैं, परन्तु खर्च कम नहीं किए गए। सरकारी खज़ाने को खर्च करते समय आकलन करने की ज़रूरत महसूस नहीं की गई तथा यह भी सोचने की ज़रूरत नहीं समझी गई कि जिस तरह यह धन लुटाया जा रहा है, उससे कौन-सी लाभकारी योजनाएं सफल हो सकेंगी। अब तक पहले ही ऋणी हुए पंजाब पर पौने 4 लाख करोड़ का कज़र् चढ़ चुका है। इसके मूल तथा ब्याज की अदायगी में ही प्रदेश की आय के साधन हांफ जाते हैं। प्रदेश के प्रबन्धकीय खर्च के बाद सरकारी जेब और हाथ खाली हो जाते हैं। अन्य सामाजिक ज़िम्मेदारियां पूरी करने या निर्माण की योजनाओं के लिए पैसा कहां से आएगा? शायद इसके लिए ही अढ़ाई वर्षों में अलग-अलग तरह के नींव पत्थरों की रस्में अदा की जाती रही हैं। महिलाओं के लिए मुफ्त स़फर की पहली योजना जारी रखी गई है, परन्तु इसके साथ बसों के आम किराये में लगातार वृद्धि की जाती रही है। इस बार भी बस किराये में 23 पैसे प्रति किलोमीटर वृद्धि करने की घोषणा की गई है। सरकार अपने ही बुने जाल में इस कद्र फंसती जा रही है कि वह अब हाल-बेहाल हो गई है। जिन बैंकों या अन्य संस्थानों से उधार पैसे लिए हैं, उन्होंने भी थक हार कर पांव पीछे खीचने शुरू कर दिए हैं।
अब पूर्व की चन्नी सरकार के समय बिजली क्षेत्र में 7 किलोवाट के लोड वालों को जो तीन रुपये प्रति यूनिट बिजली देने की सुविधा दी गई थी, वह भी वापिस ले गई है। लोगों को भी और अन्य राजनीतिक दलों को भी सरकार की ़गलत नीतियों के कारण प्रदेश के होने वाले हश्र का अहसास होता जा रहा है। इसलिए उन्होंने मौजूदा सरकार की कड़ी आलोचना करनी शुरू कर दी है। लोगों को भी यह अहसास हो चुका है कि मुफ्त की योजनाओं की हांकी डीगों के गुब्बारों की हवा निकलनी शुरू हो गई है। इसलिए आज हर ओर निराशा दिखाई देने लगी है तथा सरकार की सूझबूझ पर प्रश्न-चिन्ह लगने शुरू हो गए हैं। चिन्ताजनक बात यह है कि प्रदेश के अब तक हुए तथा होने वाले नुक्सान की भरपाई किस तरह की जा सकेगी, क्योंकि देश के अन्य ज्यादातर प्रदेशों से कभी ज्यादा अग्रणी माने जाते इस प्रदेश की चाल बेहद धीमी हो गई है तथा अन्यों के मुकाबले यह दौड़ में बहुत पिछड़ता जा रहा है। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द