हरियाणा चुनाव कांग्रेस का असमंजस

हरियाणा के चुनाव सिर पर हैं। राजनीतिक गतिविधियां बढ़ गई हैं। भारतीय जनता पार्टी ने भिन्न-भिन्न विधानसभा क्षेत्रों से पहली सूची में अपने 67 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। प्रदेश के लिए 5 अक्तूबर को एक ही चरण में मतदान होगा, और 8 अक्तूबर को मतों की गिनती होगी। भाजपा प्रदेश में अपनी सरकार के दो कार्यकाल पूरे कर चुकी है। चाहे उसने अब तीसरी बार सफलता हासिल करने के लिए अपनी पूरी तैयारी शुरू की हुई है परन्तु इस बार उसका कांग्रेस के साथ कड़ा मुकाबला होने की सम्भावना है। चाहे कांग्रेस की प्रदेश इकाई में नेताओं के आपसी टकराव के समाचार निरन्तर मिल रहे हैं, जिस कारण इसका प्रभाव कुछ कम हुआ है, परन्तु अभी तक भी भारी संख्या में लोगों की उम्मीदें इस पर केन्द्रित हैं। इसका एक कारण पिछले 10 वर्षों में भाजपा के शासन में समय-समय पर उठे विवाद हैं तथा दूसरा कारण कांग्रेस का ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ जुड़ने रहने का यत्न है।
तीन मास पूर्व लोकसभा के हुए चुनावों में प्रदेश में कांग्रेस ने अच्छी कारगुज़ारी दिखाई थी। उसने 10 में से 9 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें से वह 5 सीटों पर विजयी रही थी। आम आदमी पार्टी के लिए कांग्रेस ने एक कुरुक्षेत्र की सीट छोड़ी थी परन्तु ‘आप’ पार्टी का वहां बुरी हश्र हुआ था। इस बात का कांग्रेस को अब तक अफसोस रहा है कि यदि वह कुरुक्षेत्र पर भी स्वयं लड़ती तो उसके उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित थी। कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी के अतिरिक्त जननायक जनता पार्टी भी मैदान में उतरी हुई है, परन्तु इसके इस बार उभार की कम ही उम्मीद की जाती है। इसने वर्ष 2019 में हुए चुनावों में प्रदेश में 10 सीटें जीती थीं परन्तु अब इसका भारी क्षरण हो चुका है। इसके सात विधायक पार्टी छोड़ कर अन्य पार्टियों में शामिल हो चुके हैं। इनके अतिरिक्त चाहे कई और भी पार्टियां चुनावों के लिए मैदान में हैं परन्तु किसी भी अन्य पार्टी का प्रदेश में कोई ज्यादा आधार बना दिखाई नहीं देता। 
आम आदमी पार्टी पिछले चुनावों में भी बड़े ज़ोर-शोर से मैदान में उतरी थी परन्तु आज तक उसके हिस्से इस प्रदेश से कुछ भी नहीं आया। इस बार भी विगत लम्बी अवधि से इसने हरियाणा के चुनाव मैदान में उतरने का खूब शोर मचाया हुआ है। पंजाब का मुख्यमंत्री भगवंत मान अब तक यहां चुनाव प्रचार के लिए अनेक चक्कर लगा चुका है। पहले-पहले तो उसने यह प्रभाव दिया था कि जैसे हरियाणा के चुनाव प्रचार का वही पूर्ण कर्ता-धर्ता होगा परन्तु अब इस पार्टी के दिल्ली के कुछ नेताओं की ओर से भी प्रदेश में गतिविधियां दिखाई जाने लगी हैं। इन सभी ने लगातार बयान द़ागते हुए यह दावा किया था कि वे हरियाणा की सभी 90 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करेंगे परन्तु अब पार्टी के नेताओं का यह चुनावी ब़ुखार उतरा हुआ दिखाई देता है। आम आदमी पार्टी कांग्रेस के साथ मिल कर चुनाव लड़ने की चाहत दिखा रही है। इस संबंध में दोनों पार्टियों के नेताओं की कुछ बैठकें भी हुई हैं, जिनसे यह प्रभाव मिलता है कि यह पार्टी हर स्थिति में कांग्रेस के साथ समझौता करना चाहती है चाहे मिल रहे समाचारों के अनुसार हरियाणा के बड़े-छोटे कांग्रेस नेता ऐसा गठबंधन एवं समझौता करने के विरुद्ध हैं। उन्हें तो यह प्रतीत होता है कि यदि इस पार्टी को कुछ सीटें दे भी दी गईं तो वहां स्थानीय कांग्रेसी नेताओं एवं कार्यकर्ताओं की ओर से खुल कर ब़गावत किये जाने की सम्भावना है।
प्राप्त समाचारों के अनुसार कांग्रेसी नेताओं का यह मानना है कि यदि यह गठबंधन करना भी है तो आम आदमी पार्टी को 3-4 सीटें ही दी जानी चाहिएं। इसके साथ ही ये समाचार भी मिल रहे हैं कि आम आदमी पार्टी के नेता 90 सीटों से नीचे उतर कर अब 10 सीटों पर आ गए हैं। क्या कांग्रेस इस पार्टी को ये सीटें देने के लिए भी सहमत होगी, इस संबंध में भी अभी प्रश्न-चिन्ह लगा हुआ प्रतीत होता है। इस संबंधी पंजाब के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता तथा विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने बहुत ही स्पष्ट प्रतिक्रिया दी है तथा कहा है कि आम आदमी पार्टी से जितनी दूरी बना कर रखी जाए, कांग्रेस के लिए उतना ही अच्छा होगा। उन्होंने यह भी कहा कि पंजाब में लोकसभा चुनावों में यह बात स्पष्ट हो चुकी है। पंजाब के कांग्रेसी नेताओं ने दिल्ली में अपने हाईकमान के समक्ष आम आदमी पार्टी के साथ समझौता करने के लिए शुरू से ही इन्कार कर दिया था क्योंकि उन्हें अहसास था कि अब इस पार्टी का लोगों में ज्यादा आधार नहीं रहा। 
स. बाजवा ने यह भी कहा है कि इस पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनावों में प्रदेश में 92 सीटें जीत कर अपनी सरकार बनाई थी, परन्तु लोकसभा के चुनाव कांग्रेस इससे अलग होकर लड़ी थी। इस चुनाव के परिणामों ने साबित कर दिया था कि यह 92 से 32 सीटों पर ही सिमट कर रह गई थी। उन्होंने इसी ही क्रम में दिल्ली, गुजरात तथा हरियाणा का उदाहरण दिया कि आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस ने समझौता करके सीटों का विभाजन करके इकट्ठे चुनाव लड़े थे, परन्तु इन प्रदेशों में इस पार्टी के साथ मिल कर चुनाव लड़ने का परिणाम शून्य आया है। अब भी हरियाणा में कांग्रेस ऐसी ही दुविधा में फंसी दिखाई देती है, क्योंकि उसे यह अहसास है कि पड़ोसी प्रदेश पंजाब में अपने कार्यकाल में यह पार्टी जो हवाई तीर चला रही है, वह तुक्का ही बने दिखाई देते हैं।
नि:संदेह इस समय इस पार्टी का हरियाणा में न तो कोई आधार है तथा न ही इसके पास वहां कोई एक भी ऐसा नेता दिखाई देता है, जिस पर कोई विश्वास कर सके। ऐसे हालात में इसके साथ कोई भी समझौता करने के लिए कांग्रेस का असमंजस लगातार बढ़ती जा रही है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द