तकनीक ने जोड़े रिश्तों के तार


मीलों के फासले अब अंगुलियों पर ही सिमट कर रह गये हैं। न लम्बा इंतज़ार, न खर्चे की चिन्ता, ऑनलाइन हुये तो मिल बैठता है सारा परिवार और बंट जाते हैं खुशियां और ़गम। तकनीक के द्वारा मिटाई जा रही है दिलों की दूरियां और ऐसा लगता है कि जैसे फिर रिश्तों में अपनापन-सा आ गया है। आपसी समझदारी आवश्यकताओं और मनोबल को बांटने का एक सशक्त साधन बन रहा है सोशल साइट्स और एप्स। कोरोना काल में तो यह वरदान साबित हुये। इस महामारी के समय कोई भी अपने रिश्तेदार या मित्र का हाल-चाल पूछने उसके घर नहीं जा सकता था और न ही कोई अस्पताल मरीज़ को मिलने जा सकता था। उस समय तकनीक ही मिलने के लिए काम आई और मोबाइल के द्वारा एक-दूसरे के हाल-चाल का पता चला। एकांतवास में रह रहे मरीज़ों को भी बस इन तकनीकों का ही सहारा था। यह एक साधन था मीलों दूर बैठे लोगों के साथ सम्पर्क करने का और किसी अन्य का हाल-चाल पूछने का। कोरोना काल में यह तकनीकें अहम भूमिका निभा रही हैं। 
अब न पत्रों का इंतजार है, न फोन के लम्बे बिल का डर और न ही बसों-गाड़ियों और हवाई जहाज़ के इंतजार का। क्योंकि इन सब की जगह तो सोशल साइट्स ने ले ली है। रोजी-रोटी, शिक्षा या किसी अन्य कारण से देश-विदेश में बैठे दूर लोगों को नज़दीक लाने का काम कर रही हैं। इससे समय और पैसे की भी बचत हो रही है और इससे लोगों की चिन्ताएं भी खत्म हो गई हैं। क्योंकि अब माता-पिता अपने बच्चों की पल-पल की ़खबर ले सकते हैं और बच्चे भी अपनी हर समस्या उनसे खुल कर शेयर करते हैं। दूर होते हुये भी वह एक-दूसरे के पास होने का अहसास महसूस करते हैं। तकनीक के द्वारा अब तो प्रतिदिन एक-दूसरे से मिलना हो जाता है। पहले तो किसी के पास जाना होता था तो कई बार सोचना पड़ता था। लेकिन आज के समय में स्विच ऑन करते हुए बातचीत शुरू हो जाती है। चाहे किसी रैसिपी के बारे में पूछना है, एक-दूसरे द्वारा की गई खरीदारी को दिखाना हो। पढ़ाई में कोई समस्या आ रही हो तो उसका हल पूछना हो तो वह सब कुछ ऑनलाइन हो सकता है। कोरोना काल में तो स्कूल-कालेजों, विश्व विद्यालयों में पढ़ाई भी ऑनलाइन करवाई जा रही है। बैंकों, कार्यालयों, न्यायालय के सभी कार्य इस तकनीक के माध्यम से करवाए जा रहे हैं। जिस तकनीक से हम परहेज़ करते थे आज इसके बिना अधूरा सा लगता है। यह जीवन का अटूट अंग बन गया है। यहां तक कि लोगों ने अपने ग्रुप बनाये हुए हैं जिसके द्वारा वह अपने विचार, यादों और आवश्यकताओं को सांझा करते हैं। इनके द्वारा कई वर्षों से बिछुड़े हुए मित्र, रिश्तेदार फिर आपस में मिल रहे हैं। एक ग्रुप जो मनोरंजन का बहुत बड़ा साधन है वहीं इनकी सहायता से बहुत कुछ नया और कीमती सीखने को और सुनने को मिलता है। जिससे हम अपने समय का लाभ भी उठा सकते हैं। बच्चे और बुजुर्ग भी इसके दीवाने हैं। तकनीक ने लोगों की सोच को बदल दिया है और अपने जीवन के प्रति सभी लोग सकारात्मक हो गये हैं। सोशल साइट्स न सिर्फ लोगों के दिलों की धड़कन में आपस में जोड़ने का काम करता है अपितु लोगों में सामाजिक जागरुकता पैदा करने में भी सहायता करता है। प्रश्न चाहे ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’, ‘महिला सशक्तिकरण’ या ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का हो सिर्फ एक छोटी-सी क्लिप या वीडियो मिनटों में ही हर जगह अपने सन्देश को पहुंचा देती है और लोगों की सोच में परिवर्तन आ जाता है। हम कह सकते हैं कि सोशल साइट्स के तार आज पूरे विश्व में जुड़ चुके हैं।