बात-बात पर टोंक कर बच्चों का आत्मविश्वास न तोड़ें


नहीं तुम नहीं कर सकते
 अरे हटो, तुम्हें नहीं मालूम इसे कैसे करना है?
यह तुम्हारे बस का नहीं है
ये वो जुमले हैं, जो हम अपने छोटे बच्चों से अकसर बोलते हैं, जब वे हमारी देखा-देखी हमारे किसी काम में हाथ बंटाने की कोशिश करते हैं। हम नहीं जानते कि ये जुमले कितने खतरनाक हैं। लगभग हर मनोवैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर सहमत है कि इस तरह के जुमले छोटे बच्चों के आत्मविश्वास को छलनी कर देते हैं। जबकि हकीकत यह है कि कोई मां-बाप नहीं चाहेगा कि उसका बच्चा आत्मविश्वास में कमजोर हो, लेकिन अपनी नासमझी के कारण आमतौर पर मां-बाप ही अपने बच्चों के आत्मविश्वास को तहस-नहस कर देते हैं। उन्हें लगता है कि जब वे अपने बच्चों को किसी काम से रोकते हैं, यह कहकर कि यह उनके बस में नहीं है और खुद कर देते हैं। उन्हें लगता है कि उनके मां-बाप उन्हें कुछ करने ही नहीं देते।
इससे बच्चों में विकसित होने वाले आत्मविश्वास में भारी कमी आ जाती है। जब हम किसी बच्चे से कहते हैं कि वह अपने आप नहा नहीं सकता, तो इसे सुनकर बच्चा बहुत निराश होता है। इस जुमले से सिर्फ  हम उसके आत्मविश्वास को ही कमजोर नहीं करते बल्कि उसके सीखने की प्रक्रिया को भी बाधित करते हैं; क्योंकि सच बात यही है कि हम सब अपने आसपास घटित होने वाली गतिविधियों और उनके नतीजों से ही सीखते हैं। सच तो यह है कि हम रेडियो को सुनकर और टीवी को देखकर भी अनगिनत चीजें सीखते हैं। क्योंकि जब हम किसी को कुछ करते हुए देखते हैं तो उसकी नकल करते हैं। यह नकल करना वास्तव में सीखने की प्रक्रिया है। हम चीजों को पढ़कर और पढ़े हुए को जीवन में प्रयोग करके तथा अपने आसपास की चीजों में जिज्ञासा रखकर भी चीजों को जानते और सीखते हैं।
हालांकि सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा ज्यादा से ज्यादा चीजों को सीखें, लेकिन उन्हें इस बात का एहसास नहीं रहता कि वे ही उन्हें इस प्रक्रिया से वंचित कर रहे हैं। कई बार हमें लगता है कि बच्चा कुछ प्रयोग करेगा तो अपने को किसी तरह का नुकसान न पहुंचा ले। यह आशंका हवाहवाई नहीं होती, कई बार ऐसा होता भी है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कुछ जानने और सीखने की प्रक्रिया चीजों को व्यवहारिक रूप से जानने और उनके टकराने में ही निहित है। इसके अलावा और कोई तरीका नहीं है, जिससे हम ज्यादा से ज्यादा चीजें सीख सकें।
याद रखिए बच्चा सबसे पहले चिल्लाता है, फि र कुछ शब्दों को बोलता है। इसका मतलब यह हुआ कि बच्चा अपने कंठ के साथ प्रयोग कर रहा है। जब वह कुर्सी को एक जगह से दूसरी जगह खिसकाता है और इस प्रक्रिया में होने वाली आवाज को सुन आपको झल्लाहट होती है लेकिन बच्चा पुलकित होता है क्योंकि उसे लगता है कि यह उसकी उपलब्धि है। वह कुर्सी को एक जगह से दूसरी जगह खिसका सकता है। अगर आप उसे इस तरह से काम करने की अनुमति देंगे तो उसके अंदर की यह भावना कि ‘मैं कर सकता हूं’ और भी मजबूत होगी। इसलिए जरूरत इस बात की है कि आप चीजों या घटनाओं को अपनी नजर से नहीं बल्कि बच्चे की नजर से देखें।  -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर