फॉरेंसिक साइंस में बनाएं शानदार करियर

अपराधी आजकल अपराध करने के लिए एडवांस्ड टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हैं। अपराध नियंत्रण के साथ ही इस दुरूपयोग को रोकना अति आवश्यक है। इसके अतिरिक्त जांच की गुणवत्ता में समानता लाना भी ज़रूरी है। यह तभी संभव है, जब हमारे पास बड़ी तादाद में कुशल फोरेंसिक साइंटिस्ट्स हों।
वर्तमान में कुल आरोपियों में से लगभग 50 प्रतिशत को ही अदालत दोषी पाती है। इस फीसदी में वृद्धि करने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार की योजना है कि फोरेंसिक साइंस-आधारित जांच को न्यायिक व्यवस्था के साथ शामिल कर दिया जाये। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में यह घोषणा की है कि जिन अपराधों में छह वर्ष या उससे अधिक की सज़ा का प्रावधान है, उनमें फोरेंसिक साक्ष्य आवश्यक होगा। भारत की पहली महिला फोरेंसिक साइंटिस्ट रुक्मिणी कृष्णमूर्ति का कहना है कि लोग अधिक जागृत होते जा रहे हैं कि फोरेंसिक्स के तहत क्या आता है। उनके अनुसार, ‘इसमें विविध विषय आते हैं जैसे विज्ञान और सामाजिक विज्ञान। जब भी किसी कानूनी मुद्दे को साक्ष्यात्मक मूल्य की आवश्यकता होती है, तो उसमें फोरेंसिक्स शामिल होती है। आज, साइबर फोरेंसिक्स का महत्व बढ़ता जा रहा है क्योंकि साइबर क्राइम मामलों में वृद्धि होती जा रही है।’ 
कृष्णमूर्ति गुजरात की नेशनल फोरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी की अकेडमिक काउंसल सदस्य हैं। वह महाराष्ट्र के इंस्टिट्यूट ऑफ फोरेंसिक साइंस की तकनीकी सलाहकार और महाराष्ट्र के ही डायरेक्टरेट ऑफ फोरेंसिक साइंस लैबोरेट्रीज की निदेशक भी रह चुकी हैं। उनका कहना है कि 50-60 साल पहले अधिकतर सरकारी विभागों में फोरेंसिक साइंस लैबोरेट्रीज होती थीं। रसायनशास्त्र, बायोकेमिस्ट्री, भौतिकशास्त्र व इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि वाले लोगों को फोरेंसिक केस हैंडल करने के लिए ट्रेनिंग दी जाती थी। बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि अपराध किस प्रकार का है और प्रदर्शनीय वस्तु की गुणवत्ता क्या है? फोरेंसिक साइंटिस्ट्स को स्टैंडर्ड टेस्ट्स छोटी सी प्रदर्शनीय वस्तु पर करने होते हैं और गवाह के तौर पर अदालत में भी मौजूद रहना पड़ता है। इस वजह से वरिष्ठ फोरेंसिक साइंटिस्ट्स को यह एहसास हुआ कि कुशल फोरेंसिक साइंटिस्ट्स का टैलेंट पूल विकसित किया जाये, बजाए इसके कि विभिन्न विषयों के लोगों को लेकर उन्हें ट्रेनिंग दी जाये।
फोरेंसिक साइंसेज में जांच के बुनियादी सिद्धांतों को सीखते हैं और अपराधस्थल से साक्ष्य एकत्र करने की उन्हें हैंड्स-ऑन ट्रेनिंग दी जाती है। केन्द्र सरकार की योजना सभी राज्यों में नेशनल फोरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी स्थापित करने की है। इस ब्रांच के छात्र विभिन्न विश्वविद्यालयों के फोरेंसिक्स विभागों में लेक्चरार के रूप में भी कार्य कर सकते हैं। आज सभी बैंकिंग व इंश्योरेंस कम्पनियों को फ्रॉड रोकने व पकड़ने के लिए फोरेंसिक विशेषज्ञों की ज़रुरत है। प्रिवेंटिव फोरेंसिक्स की कॉर्पोरेट सेक्टर में महत्वपूर्ण भूमिका है। हर राज्य में फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी और रीज़नल लैबोरेट्रीज हैं, जहां फोरेंसिक साइंटिस्ट्स कार्य कर सकते हैं। अब तो अनेक प्राइवेट कॉलेज व यूनिवर्सिटी भी फोरेंसिक्स में पाठ्यक्रम उपलब्ध करा रहे हैं।
फोरेंसिक्स में करियर बनाने के लिए छात्र को अपराधस्थल से सैंपल एकत्र करना आना चाहिए और यह भी कि चेन ऑ़फ कस्टडी क्या है, जोकि एसेट की मूवमेंट ट्रैक करने की प्रक्रिया है। यह तभी संभव है जब छात्र ऑप्रेशनल फोरेंसिक लैबोरेट्री से जुड़ा हुआ हो। छात्र को यह भी मालूम होना चाहिए कि केस पर केवल रिपोर्ट देना पर्याप्त नहीं है, फाइंडिंग्स को सामाजिक मामलों से जोड़ना ज़रूरी है ताकि सामाजिक परिवर्तन लाया जा सके।                                

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